प्रगट थाय छे. भाई! परपदार्थो, राग ने पर्याय ए कांई सम्यग्दर्शननो विषय नथी. गाथा १पमां एम आव्युं के- अबद्धस्पृष्ट, अनन्य, नियत, अविशेष अने संयुक्त-एवा पांचभावोरूप आत्मानी अनुभूति छे ते निश्चयथी समस्त जिनशासननी अनुभूति छे कारण के श्रुतज्ञान पोते आत्मा ज छे; तेथी ज्ञाननी अनुभूति ते आत्मानी अनुभूति छे.
आत्मा अविशेषभाव स्वरूप छे, विशेष-गुणभेद ते आत्मा नहि; गजब वात करी छे ने! (द्रष्टिना विषयमां भेद समातो ज नथी.)
अहा! आ स्त्री, पुरुष, नपुंसक-एम देहने न देखो, ने पुण्य-पाप आदि विकारने पण न देखो; अहाहा...! अंदरमां अनंतगुणधाम चिन्मात्र भगवान आत्मा त्रिकाळ परमात्मस्वरूपे विराजे छे तेने देखो. अहाहा...! आवा निजस्वरूपने जेणे देख्युं ते सम्यग्द्रष्टि छे, ते सम्यग्ज्ञानी छे ने ते मोक्षमार्गी छे. भाई! मोक्ष शब्द ज विकार ने दुःखनी नास्ति, ने परम आनंदनी अस्ति सूचवे छे. हवे ज्यां आम छे त्यां पुण्यथी-विकारथी मोक्षनो उपाय मळे ए वात कयां रही? भगवाननो-वीतरागनो मारग तो भाई! बधी बाजुथी चोक्खो स्पष्ट छे.
अहा! जेम आ लोक अकृत्रिम छे तेम लोकनुं द्रव्य पण कोईए करेलुं नथी; तेना गुणो के पर्यायोनो पण कोई कर्ता नथी. द्रव्य अने गुणने पर्यायना कर्ता कहेवा ए व्यवहार छे. निश्चयथी पर्यायना कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान, अधिकरण पर्याय छे, पर्यायनुं कारण द्रव्य-गुण नहि अने पर तो नहि ज नहि. अहा! आवुं वस्तु-स्वरूप जाणीने जे परथी हठी, स्वस्वरूप अनंतशक्तियुक्त ज्ञानमात्र आत्मामां लीन थाय छे तेने जीवनशक्ति निर्मळ उछळे छे, तेनुं जीवन पवित्र, उज्ज्वल बने छे.
आ प्रमाणे जीवत्वशक्ति पूरी थई.
अजडत्वस्वरूप चितिशक्ति. (अजडत्व अर्थात् चेतनत्व जेनुं स्वरूप छे एवी चितिशक्ति)’ जुओ, पहेलां जीवत्वशक्तिमां जीवत्व वडे जीवनुं त्रिकाळ जीवन सिद्ध कर्युं; हवे चितिशक्ति कहीने जीवनुं ए जीवन अजडत्वस्वरूप अर्थात् चैतन्यमय छे एम कहे छे. ए तो पहेलां आवी गयुं के जीवनशक्ति छे एनुं चितिशक्ति छे ते लक्षण छे. अहीं चितिशक्ति जुदी केम कही? के ए वडे जीववस्तु त्रिकाळ अजडत्वस्वरूप-चैतन्यमय छे एम बताववुं छे. सूक्ष्म वात छे प्रभु! चितिशक्ति अजडत्वस्वरूप चैतन्यमय, ने तेने धरनार अनंत गुणधाम जीववस्तु पण अजडत्वस्वरूप चैतन्यमय. अहाहा...! द्रष्टिवंतने-समकितीने अंदर जीवनशक्ति भेगी चितिशक्ति उछळे छे. एटले शुं? के चितिशक्तिनुं परिणमन पण शुद्ध चैतन्यमय अजडत्वस्वरूप छे. अहाहा...! आ राग-द्वेष- मोह के पुण्य-पापना भाव ते आत्मानी चीज नथी, केमके ए तो बधा जड छे, ने भगवान आत्मा अजड- चैतन्यमय छे. आवी वात! समजाणुं कांई...?
पहेलां जीवत्वशक्ति कही एमां तो जीववारूप-त्रिकाळ टकवारूप एनुं परिणमन छे एम वात हती, अहीं जुदी चितिशक्ति कहीने तेनुं त्रिकाळ टकवारूप-जीववारूप जीवन छे ते चैतन्यमय छे एम सिद्ध करे छे. जीवत्वशक्तिमां चितिशक्तिनुं रूप छे ने? अर्थात् जीवत्वशक्तिनुं चितिशक्ति लक्षण छे ने? तेथी जीवना जीवत्वने अजडत्व-चेतनपणुं छे. आवी झीणी वात!
अहाहा...! ज्ञानानंदस्वभावी भगवान आत्मामां, कहे छे, एक चितिशक्ति छे. केवी छे? तो कहे छे- ‘अजडत्वस्वरूप चितिशक्ति.’ टूंका शब्दे घणी (गंभीर) वात! कहे छे-आ चितिशक्तिमां जडपणुं नथी. अने आ शरीर, मन, वाणी, इन्द्रिय अने कर्म वगेरे तो बधा जड छे. तेथी आ शरीरादि पदार्थो आत्मानी चीज नथी, आत्माथी भिन्न चीज छे, बहारनी चीज छे. हवे आवी वात, एने कांई अभ्यास न मळे एटले बेसे नहि, पण शुं थाय?
अहाहा...! आत्मामां जेम एक जीवत्वशक्ति छे, तेम एक बीजी चितिशक्ति छे. अरे, एवी एवी संख्याए अनंत अनंत शक्तिओ एक आत्मद्रव्यमां छे. केटली? अनंत... अनंत. ए तो पहेलां आवी गयुं के-आ लोक असंख्य जोजनमां छे. तेनी बहार बधे अलोक अनंत जोजनमां विस्तरेलो छे. अहाहा...! अनंत... अनंत... अनंत जोजनमां आकाश व्यापेलुं छे. कोईने थाय के-पछी शुं?... पछी शुं? पण भाई! कयांय एनो अंत आवतो नथी, एम ने एम आकाश...