वीर्य, अस्तित्व, वस्तुत्व आदि अनंत धर्मो-गुणो तेमां भेगा आवी जाय छे. ज्ञानमां आ अनंत गुणनुं रूप छे छतां ते अनंत गुण बधा भिन्न भिन्न छे; अने अनंत गुण प्रत्येक भिन्न होवा छतां बधा मळी अखंड अभेद एक आत्मा छे. अहो! आवुं वस्तुनुं अनेकान्तमय स्वरूप कोई अद्भुत अलौकिक छे.
आ तो वीतरागनो मार्ग छे बापु! आ कोई साधारण चीज नथी; अंतर-अनुभवना महान पुरुषार्थ वडे प्राप्त थाय एवी चीज छे. पण अरे! पोताना त्रिकाळी स्वरूपने भूलीने अनादिथी एणे पर्याय उपर लक्ष कर्युं छे! एक समयनी पर्यायनी पाछळ पूरण परमात्मतत्त्व अंदर पडयुं छे, पण अरे! एनी द्रष्टिना अभावे एना भवना अंत आव्या नहि! अहा! भाई! पंचमहाव्रतादिना क्रियाकांडमां मंद राग करे तो देवना भव मळे, पण भवना अंत न आवे. आवुं बधुं तो एणे अनंत काळमां अनंत वार कर्युं छे, ए पहेलुं-नवुं नथी. अहाहा...! अंदर भगवान आत्मा अनंत शक्तिनो सागर चैतन्य निधान प्रभु छे तेनी अंतःद्रष्टि वडे आनंदनो अनुभव आवे, निराकुळ शांतिनो स्वाद आवे ते अपूर्व छे. अहाहा...! अंतःपुरुषार्थ जाग्रत करी स्वरूपमां स्फुरायमान वीर्य वडे अनंत गुणनी निर्मळ पर्यायना स्वरूपनी रचना करे तेने भवना अंत आवी जाय छे. आवो मारग छे.
अहाहा...! अंदर आत्मामां एक वीर्यगुण छे, आत्मबळ नामनो अंदर एक गुण छे. ते स्फुरायमान थवा वडे चेतना गुणना परिणमननी साथे बीजा अनंता गुणनी निर्मळ परिणतिनी ते रचना करे छे. अहा! रागनी रचना करे ते वीर्यगुणनुं कार्य नहि; दया, दान, व्रत, भक्ति इत्यादिना शुभरागनी रचना करे ए तो नपुंसकता छे. अहा! जेम हीजडाने वीर्य नथी तो तेने प्रजोत्पत्ति थती नथी तेम भगवान आत्माने भूलीने शुभाशुभ भावनी रचना करे तेने (-नपुंसकने) धर्मनी पर्यायरूप प्रजानी उत्पत्ति थती नथी.
भाई! शुभाशुभ भाव थाय ते आत्मानी चीज नथी, स्वभावपर्यायनी उत्पत्ति थाय ते आत्माना वीर्यगुणनुं कार्य छे, अने ते अंतःसन्मुख पुरुषार्थ वडे द्रष्टिमां भगवान आत्मानो स्वीकार कर्ये प्रगट थाय छे. अहा! भगवान आत्मानो ज्यां द्रष्टिमां स्वीकार कर्यो त्यां अनंत शक्तिओ पर्यायमां निर्मळ उछळे छे. आ अंतःसन्मुख थई जे निज परमात्मद्रव्यनो स्वीकार करे तेनी वात छे हों, मात्र उपर उपरथी हा पाडे एनी आ वात नथी. अरे भाई! निज परमात्मद्रव्य तो त्रिकाळ शुद्ध एक चित्स्वभावपणे अंतरंगमां विराजे छे; पण अज्ञानीने एनो स्वीकार कयां छे? ए तो अंतःसन्मुख थई एनी द्रष्टि करतां एनो स्वीकार थाय छे अने त्यारे एने ज्ञानमात्र भावनी अंदर जीवत्व, चिति, द्रशि, वीर्य आदि अनंत शक्तिओ पर्यायमां प्रगट थाय छे. आनुं नाम धर्म ने आ मोक्षमार्ग छे. आ सिवाय व्रत, तप, भक्ति आदि बधुं थोथां छे.
जुओ, अहीं बीजी चितिशक्तिनुं वर्णन चाले छे. आत्मद्रव्यने कारणभूत पहेलां जीवत्वशक्ति कहीने तेना चार-दर्शन, ज्ञान, आनंद ने वीर्य-चैतन्यभावप्राण कह्या. अहाहा...! आवा चैतन्यभावप्राण वडे जीव अनादिथी जीवे छे, जीवतो हतो ने अनंतकाळ जीवशे.
तो लोको कहे छे ने के-‘जीवो अने जीववा दो’-आ भगवान महावीरनो संदेश छे. अरे जैनो पण रथयात्रा प्रसंगे सूत्रो पोकारे छे के-
अरे भाई! ‘जीववा दो’ एटले बीजा जीवोनुं जीवन आना हाथमां छे-एवो भगवान महावीरनो संदेश नथी. बीजो बीजाने जिवाडे, अने बीजानो जीवाडयो बीजो जीवे ए भगवान महावीरनी वाणी नथी. कोई कोईने जिवाडे के हणे ए वस्तुस्वरूप नथी, अने ए भगवाननी वाणी नथी. जीवमां त्रिकाळ जीवत्व नामनी शक्ति छे, अने त्रिकाळ चैतन्यभावप्राण वडे अनादि-अनंत जीवनुं जीवन छे. अहा! आवी निज जीवनशक्तिने ओळखी अंतर्मुख निराकुल जीवन जीव जीवे ते यथार्थ जीवन छे. अहा! आवुं जीवन ‘पोते जीवो ने सौ कोई जीवो’-एवो भगवान महावीरनो संदेश छे, उपदेश छे. समजाणुं कांई...?
समयसारनी बीजी गाथामां ‘जीवो’ शब्द छे एमांथी आचार्यदेवे आ जीवत्वशक्ति काढी छे, ने जीवत्वनुं चितिशक्ति लक्षण छे तेथी अहीं बीजी चितिशक्ति कही. अहाहा...’ आ जीवत्वशक्ति, चितिशक्ति इत्यादि शक्तिओ छे