ज नथी तेने कारणपरमात्मा कयां छे? देखवानी शक्तिनो धरनारो अनंत शक्तिसंपन्न प्रभु कारणपणे शाश्वत विद्यमान छे, पण तेनुं भान कर्या विना, तेनो द्रष्टिमां स्वीकार कर्या विना कारणपरमात्मा छे ए कयां रह्युं? भाई! उपयोगने अंतरमां वाळी त्रिकाळी द्रव्यनां ज्ञान-श्रद्धान प्रगट करे तेने ज हुं कारणपरमात्मा छुं एम निश्चय थाय छे अने तेने ज अंतर्लीनता वडे केवळदर्शन-केवळज्ञानरूप कार्य प्रगट थाय छे.
आत्मा पूर्णानंद प्रभु अनंत शक्तिनो पिंड त्रिकाळ एकरूप द्रव्य छे. अहा! शक्ति अने शक्तिवाननो भेद पण जेमां नथी एवा आ अभेद एकरूप सामान्यने विषय बनावी तेनां प्रतीति अने अनुभव करे तेनुं नाम सम्यग्दर्शन छे. त्रिकाळी वस्तु तो वस्तुमां छे, पण आवुं हुं त्रिकाळी ध्रुव चैतन्यतत्त्व छुं एम श्रद्धानी पर्यायमां तेनो स्वीकार थाय त्यारे कारणपरमात्मानो यथार्थ निर्णय थाय छे. त्रिकाळी चीज छे ते कांई पर्यायमां आवती नथी, पण त्रिकाळी द्रव्यनुं ज्ञान अने श्रद्धान पर्यायमां प्रगटे छे, अने त्यारे ‘आ हुं कारणपरमात्मा छुं’ एम एनो वास्तविक स्वीकार थाय छे. अरे भाई! द्रशिना विषयने-द्रष्टाने देख्या विना तेनी प्रतीति केवी? अने विना प्रतीति कारणपरमात्मा छुं ए वात कयां रहे छे?
अहीं कहे छे-आत्मामां अनाकार उपयोगमयी एक द्रशिशक्ति छे. तेनुं कार्य शुं? तो कहे छे-आ आत्मा, आ ज्ञान, आ दर्शन, आ पर्याय, आ हेय ने आ उपादेय-एम कोई भेद पाडया विना जे सामान्य प्रतिभास थाय छे ते द्रशिशक्तिनुं कार्य छे. अहाहा...! भेद जेनो विषय नथी एवी अनाकार उपयोगमयी द्रशिशक्ति छे. अनाकार एटले विशेष विना सामान्यपणे देखवुं. अहाहा...! जेमां ज्ञेयरूप आकार नथी, विशेष नथी, जेमां सत्तामात्र पदार्थनो प्रतिभास थाय छे एवी सामान्य अवलोकनमात्र द्रशिशक्ति छे. आ द्रशिशक्ति सूक्ष्म छे. भेद पाडीने विशेषपणे जाणवुं ए तो ज्ञाननुं कार्य छे. आ आत्मा छे एम निर्णय थयो ए तो ज्ञान छे. ते ज्ञानना थवा पहेलां (छद्मस्थने) द्रशिशक्तिमां सामान्य प्रतिभासरूप उपयोग वर्ते छे. (केवळीने ज्ञान ने दर्शन बन्ने उपयोग साथे वर्ते छे).
द्रशिशक्ति एक गुण छे, तेनो धरनार आत्मा गुणी छे. ज्यारे गुणी एवा त्रिकाळी द्रव्यनो अंतरमां स्वीकार थाय त्यारे द्रशिशक्ति पर्यायमां उछळे छे, तेनुं पर्यायमां परिणमन थाय छे, देखवारूप पर्याय प्रगट थाय छे. देखवारूप स्वभाव ध्रुवपणे हतो तेनुं पर्यायमां परिणमन थईने देखवारूप कार्य प्रगट थाय छे. हवे आवी पोतानी चीजनी दिगंबरमां जन्मेलानेय खबर न मळे; शुं थाय? कुळथी कांई दिगंबर धर्म नथी, दिगंबर धर्म तो वस्तुनुं स्वरूप छे.
अहाहा...! आत्मा अंतरमां विकल्पना वस्त्ररहित (निर्विकल्प) अनंत शक्तिओनो पिंड छे तेने दिगंबर कहीए, अने ज्यारे आवा आत्माना भान सहित अंतरंग दशामां मुनिपणुं प्रगट थाय त्यारे बहारमां पंचमहाव्रत ने नग्नदशा निमित्तपणे होय छे तेनुं नाम दिगंबर धर्म छे. आ कोई पक्षनी वात नथी प्रभु! आ तो वस्तुनुं स्वरूप ज आवुं छे. समजाणुं कांई...?
अनाकार उपयोगमयी द्रशिशक्ति छे. एटले शुं? के जेमां ज्ञेयरूप आकार नथी, विशेषता नथी, बधुं सामान्य सत्तामात्र देखवामां आवे छे एवा उपयोगमय दर्शनशक्ति छे. दर्शननी पर्याय स्वने अने परने देखे छे, पण एमां आ स्व अने पर एम भेद होतो नथी. भेद ए दर्शनशक्तिनो विषय नथी. वळी एकला परने देखे ए दर्शनशक्तिनुं वास्तविक कार्य नथी. आत्मा सहित सर्व पदार्थोनी सत्ताने देखे ते ज एनुं वास्तविक कार्य छे. अहा! द्रव्य-गुणमां व्यापक आ दर्शनशक्ति वास्तविक कयारे परिणमे?-के ज्यारे उपयोगने अंतरमां अभेद करी स्वने ग्रहे-देखे त्यारे. आ सिवाय एकला परने जाणता पहेलां अज्ञानीने तेनुं जे सामान्य दर्शन थाय छे ते शक्तिनुं वास्तविक कार्य नथी, ए तो अदर्शन छे, अज्ञानता छे.
द्रशिशक्तिवाळा द्रव्यने देखवाथी पोताने अने परने भेद पाडया विना देखवानी पर्याय उत्पन्न थायछे, अने तेनी साथे बीजा अनंत गुणनी निर्मळ पर्याय प्रगट थाय छे. अहीं विकारनी-रागनी वात लीधी नथी, केमके विकार कोई शक्तिनुं कार्य नथी. विकार तो पर्यायबुद्धिथी पर तरफ लक्ष करवाथी उत्पन्न थाय छे, खरेखर ते जीवना त्रिकाळी स्वरूपमां नथी; अने दर्शन गुणनी निर्मळ पर्याय प्रगटवा साथे जे अनंत गुणनी निर्मळ पर्याय प्रगट थाय तेमांय रागादि व्यवहार नथी, एनो अभाव-नास्ति छे. आम बधुं अनेकान्त छे.
केटलाक कहे छे-व्यवहारथी निश्चय थाय, पण ए बराबर नथी, अहीं तेनी ना पाडे छे. अरे भाई! जरा समजणमां तो ले के आ शुं वात छे? पछी अंतरमां प्रयोग करे ए तो अलौकिक वात छे. त्रिकाळी द्रव्यना आश्रये ज्ञानमात्र