Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२६ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ भावनुं परिणमन थतां अंदर द्रशिशक्ति उछळे छे-परिणमे छे, अने साथे अनंत शक्तिओ उछळे छे-पर्यायमां प्रगट थाय छे. आ बधी क्रमबद्ध प्रगट थाय छे अर्थात् ते काळे तेमनी जन्मक्षण छे तो प्रगट थाय छे. प्रवचनसारना ज्ञेय अधिकारमां गाथा १०२मां आ वात आवी छे. ज्ञेयनो (द्रव्यनो) आवो स्वभाव छे एम त्यां वर्णन कर्युं छे.

श्री जयसेनाचार्यदेवे आ (प्रवचनसारना) ज्ञेय अधिकारने सम्यग्दर्शननो अधिकार कह्यो छे. त्यां ज्ञेयनो स्वभाव एटले द्रव्यना स्वभावनी वात छे. छए द्रव्योनो आ स्वभाव छे के तेनी प्रत्येक पर्यायनी जन्मक्षण छे. अर्थात् जे समये जे पर्याय थवानी होय ते पर्याय ते समये प्रगट थाय ज छे. द्रव्यनी प्रत्येक पर्याय पोताना स्वकाळे प्रगट थाय छे. त्यारे तो कह्युं के-क्रमवर्ती पर्याय अने अक्रमवर्ती गुणोनो समुदाय ते आत्मा छे. भाई! भगवाननो पंथ जेवो छे तेम ख्यालमां लेवो जोईए.

एकेक शक्ति पोताना स्वभावथी ज परिणमन करे छे, ने तेमां व्यवहारनो-रागनो अभाव छे. आ वस्तुस्वभाव छे. व्यवहारथी पण शक्ति प्रगट थाय ने निश्चयथी पण प्रगट थाय एम छे नहि. लोकोने सत्यार्थनी खबर नथी तेथी तेओ आ वातनो विरोध करे छे, पण खरेखर तो तेओ पोतानो विरोध करे छे. शुं थाय? एकेक शक्ति निर्मळपणे परिणमे छे तेमां व्यवहारनो अभाव ज छे. आ स्याद्वाद अने आ अनेकान्त छे. अनेकान्तनो अर्थ एवो नथी के निर्मळ पर्याय व्यवहार-रागना लक्षेय थाय ने पोताना निश्चय द्रव्यना लक्षेय थाय. ए तो फूदडीवाद छे भाई!

आत्मा चैतन्यवस्तु छे ते द्रव्य छे. तेमां अनंत शक्तिओ छे. शक्तिनुं परिणमन थाय ते पर्याय छे. अने जे वेदन थाय ते पर्यायमां थाय छे. शक्ति तो नित्य ध्रुवस्वरूपे छे, तेमां कार्य नथी, कार्य पर्यायमां थाय छे. वेदन- अनुभव पर्यायमां थाय छे. ‘अनुभव करो, अनुभव करो’ -एम केटलाक कहे छे. पण बिचाराओने अनुभव शी चीज छे एनी खबर नथी. निराकुल आनंदनुं वेदन थाय ते अनुभव छे, अने ते पर्याय छे. जुओ, पर्यायमां दुःख छे, द्रव्य-गुणमां दुःख नथी. स्वानुभव करतां पर्यायमां जे दुःख छे तेनो नाश थाय छे, ने आनंदना वेदननी नवी अवस्था उत्पन्न थाय छे. पण हवे वेदांतीओनी जेम पर्याय शुं चीज छे एनीय खबर न मळे अने अनुभवनी वात करे, पण तेने अनुभव शी रीते थाय? एने तो दुःखनो ज अनुभव रहे. भाई! उपयोगनी दशाने अंतर्मुख- स्वाभिमुख कर्या विना स्वानुभवनी दशा प्रगटती नथी. वीतराग सर्वज्ञ परमेश्वरे कहेली वस्तु जेम छे तेम यथार्थ जाणवी जोईए.

आत्मानी शक्तिओ छे ते पारिणामिकभावस्वरूप छे. द्रशिशक्ति ते भाव (त्रिकाळी) अने आत्मद्रव्य ते भाववान. तथा ते बन्ने परिणामिकभावे छे. पर्यायमां जे भाव प्रगटे छे ते बीजी चीज छे. आ तो शक्ति अने शक्तिवान सहज अकृत्रिम स्वभावरूप छे ते पारिणामिकभावे छे. ते नवीन उत्पन्न थतो नथी, ने तेनो अभाव थतो नथी. अहा! आवा पारिणामिकभावरूपे द्रशिशक्ति छे. पर्यायो नवी नवी उत्पन्न थाय छे, ज्ञान, दर्शन आदि गुणो छे ते उत्पन्न थता नथी, विनशता पण नथी, त्रिकाळ शाश्वतपणे रहे छे. अहो! आ जैनदर्शन बहु सूक्ष्म अलौकिक छे. तेनो पत्तो लागी जाय तेना भवनो अंत आवी जाय छे. एना विना बधा क्रियाकांड-व्रत, तप आदि सर्व-फोगट छे, संसारनुं-बंधनुं ज कारण बने छे.

अहा! त्रिकाळी द्रशिशक्ति छे ते पारिणामिकभावे छे. ३२०मी गाथामां मोक्षनुं कारण कया भाव छे तेनो खुलासो कर्यो छे. औदयिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक-आ चार भाव पर्यायरूप छे, ने द्रव्य-गुण छे ते पारिणामिकभाव छे. तेमांथी मोक्षनुं कारण कोण? त्यां खुलासो कर्यो छे के-

-पारिणामिकभाव छे ते मोक्षनुं कारण नथी, केमके ते अक्रिय छे, तेमां कार्य थतुं नथी. -औदयिकभाव मोक्षनुं कारण नथी, केमके रागादि औदयिकभाव छे ते बंधरूप ने बंधनाकारणरूप छे. -बाकीना उपशम, क्षयोपशम अने क्षायिक ए त्रण भाव मोक्षनुं कारण थाय छे; केमके ते शक्तिना निर्मळ

कार्यरूप छे.

अहीं दर्शनशक्तिनी वात चाले छे. अहा! तेनुं अंशे निर्मळ परिणमन छे ते क्षयोपशमभावे छे, केवळदर्शन क्षायिकभावरूप छे ने दर्शनमां उपशमभाव होतो नथी ने शक्तिना परिणमनमां औदयिकभावनो तो अभाव ज छे. आवी वात छे.

चोथा गुणस्थानके क्षायिक समकित थाय छे ते क्षायिकभाव छे. श्रेणीक राजा प्रथम बौद्धधर्मी हता. तेमने मुनिराजनो