Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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३-द्रशिशक्तिः २७

समागम थतां ते समकित पाम्या. आत्मज्ञान थया पछी ते भगवान महावीरना समोसरणमां पधार्या. त्यां क्षायिक समकित पाम्या; भगवानना कारणे नहि हों, पोताना अंतःपुरुषार्थथी; भगवान तो तेमां निमित्तमात्र छे. क्षायिक समकित थया पछी कदी तेनो अभाव न थाय. क्षायिक समकित पर्याय छे एटले पलटे खरी, पण अभाव थईने कदी मिथ्यात्व न थाय. समकित थया पहेलां तेमने नरकगतिनुं आयुष्य बंधाई गयेलुं. वर्तमानमां तेओ प्रथम नरकमां छे. पण नरकमांय तेमने शील छे. सम्यग्दर्शन-ज्ञान ने स्वरूपाचरणरूप शील तेमने त्यांय छे. ते शीलना प्रतापे त्यांथी नीकळी आवती चोवीसीमां भरतना प्रथम तीर्थंकर थई मोक्ष पामशे. पांचमा, छट्ठा गुणस्थानमां शीलनी विशेषता होय छे, तथापि चोथेय शील होय छे. अनंतानुबंधी कषायनो अभाव छे एटलुं त्यां नरकमांय चोथे गुणस्थाने शील छे. शील एटले बहारमां ब्रह्मचर्य होय एनी वात नथी. आ तो स्वरूपनां श्रद्धान-ज्ञान ने लीनतारूप परिणाम तेने शील कहे छे. अरे! अनंत वार मुनिपणुं लईने ए नवमी ग्रैवेयकनो देव थयो, पण आत्मभान विना एने शील न थयुं अहा! एना पंचमहाव्रतना भाव शील न हता. समजाणुं कांई...?

भाई! आ बधुं खास अभ्यास करीने समजवुं पडशे हों. बहार (चतुर्गतिमां) रखडवानो अभ्यास तो अनादि काळथी करतो आवे छे. सारी नोकरी मळे, बाग-बंगला मळे ने पासे पांच-दस लाखनी मूडी थई जाय ए बधुं तो धूळधाणी छे. बहारमां लाखोनी पेदाश थाय ए बधो खोटनो धंधो छे. बहारना एम. ए. , ने एल. एल. बी. ना अभ्यासमां वर्षो गाळे ए एकलो पापनो अभ्यास छे. तेना फळमां तने दुःखनां निमित्तो मळशे. अने अहा! आ अध्यात्मविद्यानो अभ्यास करे तो तेना फळमां स्वाधीन अतीन्द्रिय आनंद मळशे. आ संयोगोनी द्रष्टि जवा दे भाई! संयोग तो जे आववायोग्य हशे तेज आवशे. ‘दाणे दाणे खानारनुं नाम’-लोकमां एम कहे छे ने? एनो अर्थ शुं? ए ज के जे रजकणो संयोगमां आववाना छे ते आवशे ज, अने नहि आववायोग्य संयोग क्रोड उपाय कर्ये पण नहि आवे. भाई! संयोग मेळववानो उधम करे छे माटे ते मळे छे एम नथी. (हवे तत्त्वाभ्यास विना आ केम समजाय?)

भाई! आ शक्तिनो अधिकार सूक्ष्म छे; माटे शांतिथी सांभळवुं. आ आत्माना अंतरनी हितनी वात छे. दुनिया माने न माने एनाथी कांई ज संबंध नथी. अहीं कहे छे-दर्शनशक्ति अनाकार उपयोगमयी छे. दर्शन एटले श्रद्धा शक्तिनी आ वात नथी. आत्मानी प्रतीतिरूप-सम्यग्दर्शनरूप जेनुं कार्य छे ते श्रद्धाशक्तिनी आ वात नथी. आ तो निर्मळ देखवाना उपयोगरूप दर्शनशक्तिनी वात छे. पोताना द्रव्य अने अनंत गुण-पर्यायोने पर्यायमां देखे एवी अनाकार उपयोगमयी दर्शनशक्तिनी आ वात छे. अहाहा...! द्रशिशक्ति सहित अंदर द्रव्यमां जयां देखवा जाय त्यां ते द्रव्य-गुण-पर्याय त्रणेमां व्यापी जाय छे. वळी परने देखवाथी दर्शनशक्तिनो उपयोग साकार थई जाय छे एम नथी. दर्शन उपयोग तो स्वने, परने-सर्वने भेद पाडया विना ज सामान्यपणे देखे छे. द्रशिशक्ति, तेनी साथे अनंता गुणो, अने एकरूप त्रिकाळी द्रव्य ए बधुं दर्शन उपयोगमां सामान्यसत्तामात्र देखवामां आवे छे. भाई! आ दर्शन उपयोग सूक्ष्म छे. अनाकार छे ने? तेथी छद्मस्थ तेने पकडी न शके, पण आगम, अनुमान अने अंतर्मुख थयेला ज्ञान वडे ते समजाय एम छे. आ तो बापु! अंतरनी पोतानी चीजने पहोंचवानी वात छे. बाकी ११ अंगनुं जाणपणुं थई जाय तोय आत्मा देखाय एम नथी.

अहाहा...! अनाकार उपयोग (शक्तिपणे) तो त्रिकाळ छे, परंतु अज्ञानीने अनादिथी वर्तमान वर्ततो उपयोग केवळ परसन्मुख प्रवर्ततो होवाथी तेने शक्तिनुं वास्तविक परिणमन प्रगटतुं नथी, तेने शक्तिनुं यथार्थ फळ आवतुं नथी. पण ज्यारे ते स्वसन्मुख थई स्व-आश्रये परिणमे छे त्यारे निर्मळ उपयोग (स्व-परने देखवारूप) प्रगट थाय छे अने साथे अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद आवे छे. अहाहा...! अनंत गुणोनुं रूप तेमां आवी जाय छे. बीजा गुण तेमां आवी जाय एम नहि, पण बीजा गुणनुं रूप तेमां आवी जाय छे. अहाहा...! बधुं देखाय पण आकार नहि, उपयोग निराकार निर्विकल्प होय छे. बधाने देखे पण उपयोग साकार न थाय, सत्तामात्र देखे बस. ज्ञान छे ते सविकल्प छे, ते स्व-परने सर्वने भेद पाडीने जाणे छे. परंतु दर्शनशक्तिनो उपयोग तो सत्तामात्र वस्तुमां उपयुक्त थवारूप छे. दर्शनक्रियामात्र छे. भाई! आ तारा आत्माना गुणोनो खजानो खोलवामां आवे छे. (एम के सावधान थई खजानो जो.)

अहा! भगवान केवळी कहे छे-भाई! तारी चैतन्य वस्तुमां अनाकार उपयोगमयी एक दर्शनशक्ति छे. अहाहा...! आ उपयोग अने आ उपयोगवान एवा भेदनुं लक्ष छोडी अभेद एक चैतन्य वस्तुनुं ज्यां अंतर-आलंबन करे के तत्काल निर्मळ उपयोगनी दशारूपे शक्ति प्रगट थाय छे; ते द्रव्य-गुण-पर्याय त्रणेमां व्यापे छे. अहाहा...! द्रव्य