Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). 6 ViryaShakti.

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३८ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११

६ः वीर्यशक्ति

‘स्वरूप (-आत्मस्वरूपनी) रचनाना सामर्थ्यरूप वीर्यशक्ति’ अहाहा...! आत्मामां जेम ज्ञान गुण छे तेम वीर्य नामनो एक गुण छे. आ पुत्र-पुत्री थवाना निमित्तरूप जे शरीरनुं वीर्य-जड वीर्य छे तेनी अहीं वात नथी. वीर्य एटले बळ नामनी आत्मामां एक शक्ति छे. आ शक्ति वडे आत्मा बळवान छे. अहाहा...! पोताना स्वरूपनी रचना करे-स्वरूपने धारी राखे एवो जे आत्मानो स्वभाव ते वीर्यशक्ति छे.

अहाहा...! वीर्यशक्तिनो स्वभाव आत्माना स्वरूपनी रचना करवानो छे. शुं कीधुं? ज्ञान, दर्शन, आनंद, प्रभुता, स्वच्छता आदि अनंत गुणो ते आत्मानुं स्वरूप छे. अहाहा...! अनंत गुणनो स्वामी आत्मा अनंतनाथ भगवान छे. तेनी सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र, अनाकुळ अतीन्द्रिय आनंद, सम्यक् वीर्य इत्यादि निर्मळ पर्यायने रचे ते वीर्यशक्तिनुं कार्य छे. पण रागनी रचना करे, के जडनी-शरीरनी, मकाननी, समाजनी के देशनी रचना करे ते आत्मानी वीर्यशक्तिनुं कार्य नहि. भाई! आत्मामां जे बळशक्ति-वीर्यशक्ति छे ते निर्मळ स्वस्वरूपनी रचना करवाना सामर्थ्यरूप छे; अने जडनी रचना तो जडनी शक्तिनुं कार्य छे. समजाणुं कांई...?

जुओ, नेमिनाथ भगवान गृहस्थदशामां हता त्यारनो एक प्रसंग पुराणमां वर्णवेलो छे. श्रीकृष्ण-वासुदेवनी राजसभामां एक वार चर्चा नीकळी के अहीं सौथी बळवान कोण? कोई कहे पांडवो बळवान छे, बीजो कहे के बळभद्र बळवान छे, त्रीजो कहे के श्रीकृष्ण-वासुदेव बळवान छे, चोथो कहे के धर्मराजा बळवान छे. एवामां ते ज वखते राजसभामां नेमिकुमार पधार्या. त्यारे बळभद्रे कह्युं के-बधा बळवान भले हो, पण नेमिकुमारना तोले नहि; नेमिकुमार बावीसमा तीर्थंकर छे अने ते ज सौमां बळवान छे. श्रीकृष्णने आ वात रुचि नहि; एटले तेमणे नेमिकुमारने कुस्ती करीने पोतानुं बळवानपणुं साबित करवा आह्यान आप्युं. नेमिकुमारे कह्युं-बंधुवर! मोटाभाईनी साथे कुस्ती न कराय, पण बळनी परीक्षा ज करवी छे तो आ मारो पग अहींथी तमे खसेडी दो. श्रीकृष्णे घणी महेनत करी, पण ते नेमिकुमारनो पग खसेडी शकया नहि. पछी नेमिकुमारे पोतानी टचली आंगळी सीधी करी कह्युं-आ मारी टचली आंगळी वाळी आपो. श्रीकृष्ण टचली आंगळी पर पूरी ताकातथी आखा टींगाई गया, पण आंगळी वळी नहि. पण आ तो शरीरनुं -जडनुं बळ बापु! तेमां आत्माने कांई नहि. नेमिकुमार तो त्यारेय जाणता हता के आ शरीरबळ ते हुं नहि, ने आ कसोटीनो विकल्प उठयो तेय हुं नहि. हुं तो निज चैतन्यस्वरूपने धारण करनारी वीर्यशक्ति जेनुं बळ छे एवो स्वरूपनी रचनारूप तेने शक्तिनुं फळ-कार्य प्रगट नहोतुं; पण ज्यां निज वीर्य शक्तिनो महिमा लावी शक्तिमान द्रव्यमां अंतर्द्रष्टि करी के तत्काल स्वरूपनी रचना करनारुं वीर्य पर्यायमां प्रगट थयुं. अहाहा...! आ रीते द्रव्यमां वीर्य, गुणमां वीर्य ने पर्यायमां वीर्य-एम द्रव्य-गुण-पर्याय त्रणेयमां वीर्यशक्ति व्यापक थाय छे, अने निर्मळ ज्ञान, आनंद, सुख, प्रभुता, जीवत्व, स्वच्छत्व आदि अनंतगुणस्वभावोनी पर्यायनी रचना करे छे. अहाहा...! आवी छे आ वीर्य शक्ति! समजाय छे कांई...!

ओहो! केवळी परमात्माए बतावेलो परमात्मा थवानो मार्ग अहीं संतो प्रसादरूपे खुल्लो करे छे. अहा! जेम बाळकनी माता तेने सुवाडवा तेनी प्रशंसानां मधुर हालरडां गाय छे के-

‘दीकरो मारो डाह्यो ने पाटले बेसी नाह्यो’-इत्यादि. तेम अहीं संतो-केवळीना केडायतीओ-अज्ञानीओने जगाडवा तेनी (आत्मानी) प्रशंसाना मधुर गीत गाय छे. कहे छे-जेनी स्फुरणा थतां तुं त्रणलोकनो नाथ थाय एवी वीर्यशक्तिनो स्वामी तुं भगवान छो. जाग रे जाग! जागवाना तारे आ अवसर आव्या छे. भगवान! तारे भगवान थवाना अवसर आव्या छे; इत्यादि.

अमे नानी उंमरमां वडोदरामां एक नाटक जोयेलुं. ‘अनसूया’नुं नाटक हतुं. अनसूया सती गणाती. ते एक अंध बाह्मणने परणी हती. तेने एक बाळक थयुं. ते पोताना बाळकने सुवाडवा पारणुं झुलावी मीठी हलके गाती- ‘बेटा!

शुद्धोऽसि, बुद्धोऽसि, उदासीनोऽसि, निर्विकल्पोऽसि

‘हे पुत्र! तुं शुद्ध छो, ज्ञानी छो, उदासीन छो, निर्विकल्प छो.’ -आम वखाण करती. आ तो ए वखतनां नाटको