Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). 7 PrabhutvaShakti.

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४४ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११

७ः प्रभुत्वशक्ति

‘जेनो प्रताप अखंडित छे अर्थात् कोईथी खंडित करी शकातो नथी एवा स्वातंत्र्यथी (-स्वाधीनताथी) शोभायमानपणुं जेनुं लक्षण छे एवी प्रभुत्वशक्ति.’

अहाहा...! जुओ, आ प्रभुत्वशक्ति! आ तो अलौकिक वात प्रभु! आ अध्यात्मवाणी छे. अहाहा...! भगवान जैन परमेश्वरे कहेली भगवान आत्मानी भगवान थवानी आ भागवतकथा छे. नियमसारमां कह्युं छे के- आ भागवतशास्त्र छे. कळश टीकामां आवे छे के-आ शास्त्र परमार्थरूप छे, वैराग्य-उत्पादक छे, भारत-रामायण पेठे रागवर्धक नथी. आ शास्त्र वीतरागभावनी प्रेरनारी रामायण अने भागवत कथा छे.

अहीं कहे छे- ‘जेनो प्रताप अखंडित छे...’ कोनो? के आत्मद्रव्यमां एक प्रभुत्व नामनी शक्ति छे तेनो प्रताप अखंडित छे, अबाधित छे. अहाहा...! प्रभुत्वशक्ति कहो के इश्वरशक्ति कहो के परमेश्वरशक्ति कहो-बधुं एक ज छे. ते पोताना प्रभुपद-परमात्मपदने भूली गयो छे. भाई! आ तुं जेनुं स्मरण करे छे ते वीतराग सर्वज्ञ परमेश्वर साचा परमेश्वर छे, पण ते पर होवाथी तेमना स्मरण आदि वडे राग ज उत्पन्न थाय छे. पण जो कोई तेमने जोईने पोताना चैतन्यपरमेश्वरने याद करी ले छे, जाणी ले छे तो तेने भवना अभावना बीज रूप सम्यग्दर्शन आदि प्रगट थाय छे, ओहो! जेणे पोताना प्रभुने-चैतन्य महाप्रभुने अंतरमां दीठा तेने पर्यायमां प्रभुता प्रगट थाय छे.

समयसारनी गाथा ३८मां कह्युं छेः- “जेम कोई मूठीमां राखेलुं सुवर्ण भूली गयो होय ते फरी याद करीने ते सुवर्णने देखे ते न्याये, पोताना परमेश्वर-(सर्व सामर्थ्यना धरनार) आत्माने भूली गयो हतो तेने जाणीने, तेनुं श्रद्धान करीने तथा तेनुं आचरण करीने (-तेमां तन्मय थईने) जे सम्यक् प्रकारे एक आत्माराम थयो, ते हुं एवो अनुभव करुं छुं के हुं चैतन्यमात्र ज्योतिरूप आत्मा छुं के जे मारा ज अनुभवथी प्रत्यक्ष जणाय छे. ... आम सर्वथी जुदा एवा स्वरूपने अनुभवतो आ हुं प्रतापवंत रह्यो.”

अहाहा...! पोतानी प्रभुतानुं भान थयुं अर्थात् पोते ज पोतानो परमेश्वर छे एम जाण्युं तो मोहनो नाश थईने अखंड प्रतापथी स्वाधीन शोभायमान निज चैतन्य परमेश्वरनां ज्ञान-श्रद्धान अने आचरण उदय पाम्यां. आनुं नाम धर्म अने आ मोक्षमार्ग. समजाणुं कांई...?

अहाहा...! भगवान आत्मा चिदानंद प्रभु अनंत गुणरत्नोथी भरेलो चैतन्यरत्नाकर छे. तेमां जेम ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य आदि गुणो छे तेम प्रभुत्व नामनो एक गुण छे. अहा! आ प्रभुत्व गुण बीजा अनंत गुणमां व्यापक छे. ज्ञानमां प्रभुत्व, दर्शनमां प्रभुत्व, आनंदमां प्रभुत्व, वीर्यमां प्रभुत्व, अस्तित्वमां प्रभुत्व, कर्ता, कर्म, करण आदि षट्कारक शक्तिओमां प्रभुत्व-एम अनंतगुणमां प्रभुत्व व्यापक छे. अहाहा...! आ प्रभुत्वशक्ति द्रव्यमां व्यापक छे, गुणमां व्यापक छे, ने अखंड प्रतापथी स्वाधीन शोभायमान त्रिकाळी ध्रुव द्रव्यनी दृष्टि थतां पर्यायमां पण व्यापक थाय छे. आम द्रव्य-गुण-पर्यायमां-त्रणेयमां प्रभुत्वशक्ति व्यापे छे. द्रव्य-गुण-पर्याय त्रणे य अखंड प्रतापथी स्वाधीन शोभी ऊठे छे. अहा! एना प्रतापने तोडी शके एवी कोई चीज जगतमां नथी. गाथा ३८नी टीकामां आव्युं ने के-

“आम सर्वथी जुदा एवा स्वरूपने अनुभवतो आ हुं प्रतापवंत रह्यो. एम प्रतापवंत वर्तता एवा मने, जो के (मारी) बहार अनेक प्रकारनी स्वरूपनी संपदा वडे समस्त परद्रव्यो स्फुरायमान छे तो पण, कोई पण परद्रव्य परमाणुमात्र पण मारापणे भासतुं नथी के जे मने भावकपणे तथा ज्ञेयपणे मारी साथे एक थईने फरी मोह उत्पन्न करे; कारण के निजरसथी ज मोहने मूळथी उखेडीने-फरी अंकुर न ऊपजे एवो नाश करीने महान ज्ञानप्रकाश मने प्रगट थयो छे.”

जुओ, आ अप्रतिहत श्रद्धान ने अप्रतिहत वीर्य! अंतरमां प्रभुता प्रगट थई पछी एना प्रतापने कोण तोडी-हणी शके? अहा! पोताना परमेश्वरना भेटा थया ए दशानी शी वात!

प्रश्नः– पण आकरां कर्म उदयमां आवे तो?-तो आत्माने लूंटी जाय ने? उत्तरः– आकरां कर्म उदयमां आवे तो आत्माने लूंटी जाय ए वात बराबर नथी. केटलाक लोको कहे छे के कर्म