Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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७-प्रभुत्वशक्तिः ४प

जीवने हेरान करे छे, कर्म वेरी छे, जीवने लूंटी ले छे, पण तेमनी ए वात खोटी छे; केमके कर्म तो जड अने पर छे. ए परद्रव्य तो जीवना द्रव्य-गुण-पर्यायने स्पर्श सुध्धां करतां नथी तो पछी ते जीवने हेरान करे ने लूंटी ले ए वात कयां रहे छे? भाई! आ तारी उंधी मान्यतानुं शल्य ज तने हेरान करे छे. भाई! भगवान आत्मानो प्रताप अखंडित छे, कोईथी बाधित न थाय एवो अबाधित छे तेनी तने खबर नथी. ते अखंडित छे केमके ते स्वाधीन छे. हा, जेम भरत चक्रवर्तीनो प्रताप बाहुबली वडे खंडित थयो तेम मोटा राजा-महाराजाओनो प्रताप खंडित थाय, केमके ते पुण्यकर्मने आधीन छे; पण आ चैतन्यचक्रवर्ती-चैतन्य महाप्रभु भगवान आत्मानो प्रताप कोईथी खंडित न थाय तेवो अखंडित, स्वाधीन छे. अहा! जेने अंतरमां पोतानुं प्रभुत्व भास्युं, परमेश्वर स्वरूप भास्युं तेने आकरां कर्म ने आकरा परिषह आदि शुं करे? कर्म तो एनी सामे बिचारां छे. एक पदमां आवे छे ने के-

कर्म बिचारे कौन, भूल मेरी अधिकाई;
अग्नि सहै घनघात, लोह की संगति पाई.
अहीं प्रभुत्व शक्तिमां चार बाबतो बतावी छेः
१. प्रताप (जयवंत तेज)
२. अखंडितता
३. स्वातंत्र्य अर्थात् स्वाधीनपणुं
४. शोभा, शोभायमानपणुं.

आ प्रमाणे भगवान आत्मा चैतन्य-प्रभु स्वाधीनपणे पोताना अखंडित प्रताप वडे नित्य शोभायमान छे ते तेनुं प्रभुत्व छे. गुजराती भाषामां एक कविए (दलपतरामे) लख्युं छे-

प्रभुता प्रभु तारी तो खरी,
मुजरो मुज रोग ले हरी.

जो के कविए तो कोई बीजा प्रभुने (जगत-परमेश्वरने) लक्ष करीने आ भाव प्रगट कीधो छे, पण अहीं ए वात नथी. अन्य कोई परमेश्वर आनो रोग हरी ले ए जैनमत नथी. अहीं तो आत्मा पोते ज राग अने अज्ञानना रोगने हरी ले एवो प्रभु छे एम वात छे. अहाहा...! अखंडित प्रतापथी स्वाधीन शोभायमान भगवान आत्मा पोते ज जन्म-मरणना रोगने हरी ले एवो प्रभु छे. भाई!-

- तारुं आत्मद्रव्य अखंडित प्रतापथी स्वाधीन शोभायमान, - तारा गुण अखंडित प्रतापथी स्वाधीन शोभायमान, ने - स्व-आश्रये प्रगट थयेली तारी पर्याय पण अखंडित प्रतापथी स्वाधीन शोभायमान छे. अहा! द्रव्य-

गुण-पर्याय त्रणेमां प्रभुता व्यापी छे. अहाहा...!

सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप निर्मळ पर्याय प्रगट थई तेमां प्रभुता व्यापक छे. अहा! तेनी प्रभुताने कोई आकरा उपसर्ग अने परिषह, आकरो कर्मोदय खंडित करी शके नहि एवुं तेनुं स्वरूप छे. अहा! तारा द्रव्य-गुण-पर्यायनी प्रभुतामां अशुद्धतानो अभाव छे, केमके अशुद्धता तो बहार ने बहार छे. ते शुं करे? ऊलटुं प्रगट थयेली प्रभुता वृद्धिगत थई अशुद्धताना-रागना खंड-खंड करी दे एवो तेनो स्वभाव छे. समजाणुं कांई...?

प्रश्नः– हा, पण ते अशुद्धता नाम व्यवहार रत्नत्रयनो राग प्रभुतानुं साधन तो छे ने? उत्तरः– ना, एम नथी; केमके कोईपण राग छे ते पामरता छे, ने पामरता प्रभुतानुं साधन थाय एम बनी शके नहि. तेने साधन कहीए ए तो उपचारमात्र छे. त्रिकाळी द्रव्यमां ने श्रद्धा, ज्ञान, आनंद आदि गुणोमां तो प्रभुता त्रिकाळ भरी ज छे, अने तेनी वर्तमान दशा तो त्रिकाळीनी सन्मुख दृष्टि करी, तेमां रमणता करतां प्रगट थाय छे, कांई व्यवहार रत्नत्रयना रागथी प्रगट थाय छे एम नथी. भाई! त्रिकाळी शुद्ध द्रव्यना आलंबन वडे ज अखंड प्रतापथी शोभित प्रभुता प्रगट थाय छे; ते काळे व्यवहारनो राग हो भले, पण ते आत्मा माटे कांई ज लाभदायक नथी. आवी वात छे. समजाणुं कांई...?