Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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७-प्रभुत्वशक्तिः ४९

शुं? के तेने कोई परवस्तुनी-निमित्तादिनी अपेक्षा नथी. निमित्त आवे तो थाय एम माननार तो एकांत निमित्तवादी अज्ञानी छे. निमित्तनी तो शुं? प्रगट थती-उत्पादरूप थती-पर्यायने पूर्व पर्यायना व्ययनी पण अपेक्षा नथी. निमित्त छे, पूर्व पर्यायनो व्यय छे (नथी एम वात नथी), पण उत्पादरूप पर्यायने तेनी अपेक्षा नथी. अहो! वीतराग सर्वज्ञ परमेश्वर सिवाय आवी बीजे क्यांय वात नथी.

प्रश्नः- पण आवुं समजवामां तो केटलो बधो वखत जाय? उत्तरः– अरे! संसारना भणतर पाछळ केटलो वखत काढे छे? वळी विदेशमां भणवा जाय छे ने लाखो रूपियानो खर्च करे छे. पण आ लौकिक भणतर शुं काम आवे? (संसार वधारवा सिवाय) कांई ज काम न आवे. माटे आ तत्त्वज्ञाननो अभ्यास क्रोड उपाय करीने पण करवो जोईए. छहढालामां कह्युं छे ने के-

‘कोटि उपाय बनाय भव्य ताको उर आनो.’

‘स्वामी कार्तिकेय अनुप्रेक्षा’ नामना ग्रंथमां गाथा ३२१-३२२-३२३मां श्री कार्तिकेय स्वामीए कह्युं छे के- सर्वज्ञदेवे जे जीवने जन्म, मरण, सुख, दुःख आदि जे देशमां, जे काळे, जे विधिथी थवानुं नियत जाण्युं छे ते जीवने ते देशमां, ते काळे, ते विधिथी ते ते थाय ज छे; तेमां इन्द्र के जिनेन्द्र-कोई कांई फेरफार करवा समर्थ नथी. आ प्रमाणे जे निश्चयथी सर्व द्रव्यो अने सर्व पर्यायोने जाणे छे ते शुद्ध सम्यग्द्रष्टि छे, अने जे शंका करे छे ते कुद्रष्टि अर्थात् मिथ्याद्रष्टि छे. अहा! दरेक द्रव्यनी, दरेक गुणनी जे काळे जे पर्याय थवायोग्य होय ते काळे ते ज पर्याय उत्पन्न थाय छे एम यथार्थ जाणनारनुं लक्ष पर्याय उपर न रहेतां त्रिकाळी द्रव्य स्वभाव उपर जाय छे अने ए ज स्वभाव-द्रष्टिनो सम्यक् पुरुषार्थ छे, आ रीते क्रमबद्ध पर्यायनो निर्णय करवामां भेगो पुरुषार्थ आवी ज जाय छे. माटे क्रमबद्ध मानवाथी पुरुषार्थ ऊडी जाय छे एवी शंका करवी योग्य नथी. भाई! नियत क्रम छोडीने कोई प्रकारे (निमित्तादि वडे) पर्याय यथेच्छ आघीपाछी थवानुं तुं माने पण ए तो मिथ्यादर्शन छे अने तारी एवी चेष्टा मिथ्या पुरुषार्थ-मिथ्या विकल्प सिवाय कांई ज नथी. समजाणुं कांई...?

प्रश्नः– हा, पण प्रवचनसारमां नय प्रकरणमां काळनय अने अकाळनय एम बन्नेनुं विधान छे. तेथी एकांते बधुं क्रमनियत-क्रमबद्ध मानवुं योग्य नथी.

उत्तरः– प्रवचनसारमां ४७ नयनो अधिकार छे; तेमां काळनय अने अकाळनयनी वात आवी छे. त्यां ३०मा काळनयथी कथन करतां कह्युं छे के-

“आत्मद्रव्य काळनये जेनी सिद्धि समय पर आधार राखे छे एवुं छे, उनाळाना दिवस अनुसार पाकता आम्रफळनी माफक.”

मतलब के जे काळे जे पर्याय थवानी होय ते काळे ते थाय एनुं नाम काळनय छे. वळी, त्यां ३१मा अकाळनयथी वर्णन करतां कह्युं छे के-

“आत्मद्रव्य अकाळनये जेनी सिद्धि समय पर आधार राखती नथी एवुं छे, कृत्रिम गरमीथी पकववामां आवता आम्रफळनी माफक.”

अहीं बन्ने-काळनय अने अकाळनय-एक ज कार्य प्रति पोतपोतानी विवक्षा रजू करे छे. जेम काळनयमां काळनी विवक्षा छे तेम अकाळनय ते ज कार्य प्रति अन्य हेतुओ-स्वभाव, पुरुषार्थ, नियत अने निमित्तनी विवक्षा दर्शावे छे. अहीं अकाळनयनो एवो अर्थ कयां छे के पर्याय थवानी होय ते न थतां आघी-पाछी थाय के बीजी थाय? अकाळनो अर्थ एम छे के स्वभाव, पुरुषार्थ, नियत अने निमित्त-ए बधा पण पर्याय थवाना काळे साथे ज छे; बाकी पर्याय थवा योग्य होय ते आगळ-पाछळ थाय के बीजी थाय एवो तेनो अर्थ नथी. वास्तवमां प्रत्येक पर्याय पोताना नियतक्रममां ज प्रगट थाय छे अने ते काळे बाह्य अने अभ्यंतर सामग्रीनो सहज ज योग होय छे.

एक पंडित अहीं आवेला. अहींनी वात सांभळी तेओ बहु खुशी थयेला. पोते बहु नरम माणस हता. तेमणे पंचाध्यायीनो हिंदीमां अनुवाद कर्यो छे. तेमां भूल रही गयेली ते बतावी तो बोल्या, -अमारी भूल होय तो सुधरावो, महाराज! त्यां पंचाध्यायीमां (तेमणे) एम वात करी छे के बुद्धिपूर्वकनो राग छठ्ठा गुणस्थाने होय छे अने अबुद्धिपूर्वकनो राग सातमा गुणस्थाने होय छे. परंतु आ कथन, कीधुं, सदोष छे. छठ्ठा गुणस्थानमां ज ख्यालमां आवे एवो जे राग