-लोकालोकनी कोई अपेक्षा नथी. अहाहा...! पोतामां सर्वदर्शित्वशक्तिनुं स्वरूप छे ते परिणमतां ते शक्ति आत्मदर्शनमयी थाय छे. एमां परने देखुं एम वात ज नथी. जे आत्मदर्शनमय परिणाम छे, ते कांई परदर्शनमय थतुं नथी.
आखुं विश्व, अनंता द्रव्य, तेना गुणो तथा तेनी पर्यायो-आ आखुं लोकालोक सामान्य सत्तापणे महासत्तारूप छे. महासत्ता नामनी कोई भिन्न सत्ता छे एम नथी, पण बधुं छे... , छे... , छे एवुं भेद पाडया विना सामान्यरूपे जे होवापणुं तेने महासत्ता कहे छे. आ महासत्ताने ग्रहवारूपे परिणमित आत्मदर्शनमयी सर्वदर्शित्वशक्ति छे. आ सर्वदर्शित्वशक्ति अने शक्तिवान आत्मद्रव्य-एवो भेद दूर करी त्रिकाळी आत्मद्रव्यनी अभेदद्रष्टि करतां शक्तिनुं पर्यायमां परिणमन थाय छे, अने ते आत्मदर्शनमयी छे एम कहे छे. समजाणुं कांई...?
अहाहा...! परमात्मा केवळी कहे छे-आत्मामां जेम जीवत्व, चिति, दृशि आदि शक्तिओ छे तेम तेमां अनादि-अनंत एक सर्वदर्शित्व नामनी शक्ति छे. एम तो द्रशिशक्तिमां आ सर्वदर्शित्वशक्ति गर्भित छे. पण द्रशिशक्तिमां त्यां सर्वदर्शीपणानी वात न करी ते कारणे आ सर्वदर्शित्वशक्ति अलगथी दर्शावी छे. अहा! सर्वदर्शित्वशक्तिनुं धरनार त्रिकाळी आत्मद्रव्य ज्यां द्रष्टिमां आव्युं के सर्वदर्शित्वशक्तिनुं पर्यायमां परिणमन थयुं अने त्यारे स्व-परने सर्वने देखवानी पर्याय पोतामां पोताथी पोतारूप सहज ज प्रगट थई छे. सर्व-लोकालोक छे तो ते देखवारूप पर्याय अहीं प्रगट थई छे एम नथी, अने तेमां सर्वने-लोकालोकने देखवानी अपेक्षा छे एम पण नथी; केमके सर्वदर्शित्वशक्ति आत्मदर्शनमयी छे.
सर्वदर्शित्वशक्ति परिणत थतां सर्वने देखे तेमां परनी अपेक्षा छे एम नथी, सर्वने देखवारूप परिणाम सहज ज पोतामां पोताने कारणे प्रगट थया छे. आ विषय पर सं. १९८३ मां एक चर्चा थयेली. जामनगरमां एक मुमुक्षु वकील हता. तेमने दिगंबर शास्त्रोनो सौथी प्रथम अभ्यास हतो. तेमनी साथे एक दामनगरना शेठने चर्चा थई. शेठ कहे के-लोकालोक छे तो सर्वज्ञपर्याय प्रगट थाय छे. अहीं वकील कहे-एम नहि, सर्वज्ञपर्याय पोताना कारणे प्रगट थाय छे, लोकालोक छे माटे सर्वज्ञदशा छे एम छे नहि. पछी ते बन्ने आव्या अमारी पासे. त्यारे अमे कह्युं- भाई! आत्मा ज्ञस्वरूप-सर्वज्ञस्वरूप छे. तेने परसंबंधी ने पोतासंबंधी जाणवानी ज्ञाननी जे पर्याय प्रगट थाय ते पोतामां पोताथी थाय छे, परना कारणे नहि. लोकालोक छे माटे भगवान केवळीने सर्वज्ञदशा प्रगट थई छे एम छे नहि.
अरे भगवान! तारामां केटली अपार ऋद्धि भरी छे-तने तेनी खबर नथी! तुं परमां मूढ थयो छो, पण आंही आचार्यदेव कहे छे-तारामां एक सर्वदर्शित्व नामनी शक्ति त्रिकाळ पडी छे. तेनो आधार अंदर त्रिकाळी द्रव्य छे. अहा! ते त्रिकाळी द्रव्यनो आश्रय लेतां सर्वदर्शित्वशक्तिनुं पर्यायमां स्वपरने देखवारूप परिणमन थाय छे ते, कहे छे, आत्मदर्शनमयी छे, ते परिणमन परदर्शनमय नथी, परना लक्षे थयुं नथी, परमय नथी. हवे आमां केटलाकने कांई फरक न लागे, पण आमां तो पूर्व-पश्चिमनो फेर छे भाई!
आ सर्वदर्शित्वशक्ति छे ते पोताना सहज स्वभावरूप पारिणामिकभावे छे. अहाहा...! जेम सहज स्वाभाविक पारिणामिकभावमय आत्मा छे तेम तेनी सर्वदर्शित्वशक्ति पारिणामिकभावरूप छे. तेमां कोई परनी- निमित्तनी अपेक्षा नथी. अहाहा...! पारिणामिकभावमय निज त्रिकाळी आत्मद्रव्यनो आश्रय लेतां पर्यायमां सर्वदर्शित्वशक्तिनुं परिणमन थाय छे ते क्षायोपशमिक के क्षायिकभावरूप होय छे. शक्तिनी पूर्ण पर्याय ते क्षायिकभाव छे, ने तेनी अधुरी पर्याय ते क्षायोपशमिकभावरूप छे, साथे सम्यग्दर्शन अने सम्यक्चारित्रनी पर्याय प्रगटे छे ते औपशमिक, क्षायोपशमिक के क्षायिकभावे होय छे, ने ते काळे जे राग बाकी छे ते औदयिकभाव छे. जुओ, साधक आत्माने-
-प्रतीति उपशम, क्षयोपशम के क्षायिकभावरूप होय छे, -चारित्रनी दशा उपशम के क्षयोपशमभावरूप होय छे. अने -ज्ञान-दर्शन क्षयोपशमभावरूप होय छे. समस्त विश्वना सामान्यभावने देखवारूपे परिणत एवी आत्मदर्शनमयी सर्वदर्शित्वशक्ति-आम कह्युं छे एमां ‘परिणत’ शब्द कह्यो छे ते सूक्ष्म अर्थनुं सुचन करे छे. शरुआतमां ज एम कह्युं हतुं के क्रमरूप अने अक्रमरूप प्रवर्ततो-ज्ञाननी साथे अविनाभावी संबंधवाळो अनंत धर्मसमूह जे कांई जेवडो लक्षित थाय छे, ते सघळोय खरेखर एक आत्मा छे. अहीं क्रममां विकारी परिणामनी वात ज नथी, केमके आत्मानी शक्तिओ त्रिकाळ शुद्ध ज छे ने तेनी परिणति क्रमसर शुद्ध ज थाय छे एम अहीं वात छे. जे शक्तिओ-गुण छे ते अक्रमरूप छे, अने तेनी व्यक्तिओ क्रमसर शुद्ध छे एम