Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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प८ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ वात छे. ते क्रमरूप अने अक्रमरूप धर्मोना समूहने आत्मा कह्यो छे.

‘परिणत’ शब्दनी सूक्ष्मता उपर विचार आवेल छे तेनुं स्पष्टीकरण करीए छीए. अमारे तो आखो दि’ तत्त्वविचार ए ज धंधो छे ने!

अरे भाई! आत्मामां जो दर्शन गुण न होय तो आत्मवस्तु अद्रश्य थई जाय; ने आत्मवस्तु अद्रश्य थाय तो सर्ववस्तु अद्रश्य थाय. एम थतां सर्व ज्ञेयवस्तुनो अभाव ठरे. माटे दर्शन गुण प्रधान छे, सर्वदर्शित्व प्रधान छे.

अध्यात्म पंचसंग्रहमां एम कह्युं छे के अभविने ज्ञान छे पण ज्ञाननी परिणति नथी. अभवि जीवने ११ अंग अने ९ पूर्वनी लब्धि होय छे. आ ज्ञान छे, पण ज्ञाननी परिणति नथी. अहा! एक आचारांगमां अढार हजार पद होय छे, ने एक पदमां प१ क्रोडथी झाझा श्लोक होय छे. तेनाथी बमणुं सूयडांग, एम उत्तरोत्तर बमणा बमणा अगियार अंग अने नव पूर्वनुं ज्ञान अभवि जीवने होय छे, पण तेने ज्ञाननी परिणति नथी, परिणत ज्ञान नथी, केमके ज्ञानस्वरूपी भगवान आत्मानो आश्रय तेने नथी. स्व-आश्रये जे ज्ञान प्रगट थाय तेने ज्ञानपरिणति कहेवामां आवे छे. समजाय छे कांई...?

अध्यात्म पंचसंग्रहमां द्रष्टांत आप्युं छे. सीताजीने छोडाववा माटे रावण साथे लक्ष्मणजीने युद्ध थयुं; त्यारे रावणे लक्ष्मणजीने शक्ति मारी. ते वडे लक्ष्मण बेशुद्ध थई गया. ते प्रसंगे रामचंद्रजी मूर्च्छित लक्ष्मणजीने संबोधीने कहे छे-

आव्या’ता त्यारे त्रण जणा ने, जाशुं एकाएक;
माताजी खबरु पूछशे त्यारे शा शा उत्तर दईश?
लक्ष्मण जाग ने होजी, बोल एक वार जी

हे लक्ष्मण! सीताजीने रावण लई गयो, तुं आम बेशुद्ध थई गयो. माता पासे हवे हुं शुं जवाब आपीश? माटे भाई, जाग! बंधु! एक वार बोल. आम रामचंद्रजी शोकातुर थई विलाप करे छे. त्यारे तेमने कोई निमित्तज्ञानीए कह्युं, -भरतना राज्यमां एक राजानी एक कुंवारी कन्या विशल्या छे. तेने एवी लब्धि प्रगट छे के तेना स्नाननुं जळ लक्ष्मणजी पर छांटवामां आवे तो लक्ष्मणजी मूर्च्छा तजी तत्काल बेठा थशे.

आ विशल्या ते कोण? ते पूर्व भवमां चक्रवर्तीनी पुत्री हती. तेने कोईए जंगलमां छोडी दीधेली. त्यां एक मोटो अजगर तेने गळी गयो. जरा मोढुं बहार हतुं त्यां तेना पिता जंगलमां त्यां आवी पहोंच्या अने बाणथी अजगरने मारवानी तैयारी करी. तो कन्याए पिताने कह्युं, -पिताजी, अजगरने मारशो मा; में तो यावत् जीवन अन्न-जळनो त्याग कर्यो छे. हुं हवे कोई रीते बचुं एम नथी, माटे अजगरने नाहक मारशो नहि. अहा! केवी दृढता! ने केवी करुणा! आ कन्या मरीने भरतना राज्यमां एक राजाने त्यां राजकुंवरी विशल्या थई अवतरी.

सैनिको ए कन्याने लई आव्यां. विशल्याए जेवो लश्करना पडावमां प्रवेश कर्यो के घायल थयेला सैनिकोना घाव क्षणमात्रमां ज आपोआप रूझाई गया अने तेनुं स्नानजळ जेवुं लक्ष्मणजी पर छांटवामां आव्युं के तरत लक्ष्मणजीनी मूर्च्छा उतरी गई अने तेओ भानमां आव्या, क्षणवारमां लक्ष्मणजी ऊभा थई गया, रावणे मारेली शक्ति खुली गई. पछी तो विशल्या साथे लक्ष्मणजीए लग्न कर्यां.

अहीं सिद्धांत एम छे के-त्रिकाळ ज्ञानानंद-सच्चिदानंदस्वरूप भगवान आत्मा निर्मळ परिणतिरूप रमणी साथे जोडाय छे त्यां तेना अनंत गुणोरूप शक्ति पर्यायमां खुली जाय छे. शक्तिवान द्रव्य साथे जोडाईने जे निर्मळ दशा अंदर प्रगटी तेने अहीं ‘परिणत’ कही छे. शक्ति पर्यायमां खीले नहि, कार्यरूप परिणमे नहि तो शक्ति पडी छे तेनो शो लाभ! सर्वदर्शित्वशक्ति देखवारूप परिणत कही त्यां शक्तिनी निर्मळ प्रगटतानी वात छे, अने ते प्रगटता आत्मदर्शनमय छे, परदर्शनमय नथी एम कहे छे.

आ अध्यात्म वाणी बहु सुक्ष्म भाई! हवे शुभभावमां धर्म मानी संतुष्ट छे तेने आ गळे केम उतरे? पण शुभभाव ए कांई अपूर्व नथी भाई! पूर्वे अनंत वार जीवे शुभभाव कर्या छे. अहा! नवमी ग्रैवेयकना अहमिन्द्र पदने पामे एवा शुक्ललेश्याना परिणाम आ जीवे अनंतवार कर्या छे. आवे छे ने के-