Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). 12 PrakashShakti.

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१२-प्रकाशशक्तिः ७१

छे. भाई! जरा स्थिर थईने, अने धीर थईने तुं पोते पोताना चैतन्य अरीसामां अंतर्मुख जुए तो तेमां पोतानुं शुद्धस्वरूप देखाय ने साथे लोकालोक पण जणाई जाय. अहो! आवो आश्चर्यकारी चैतन्यचमत्कार प्रभु तुं आत्मा छो. माटे हे भाई! तुं परने जाणवानी आकांक्षाथी-आकुळताथी बस कर, ने अंतर्मुख थई स्वरूपमां ठरी जा. अहाहा...! तेथी परमसुखनी प्राप्तिरूप आत्मोपलब्धि थशे अने तारा स्वच्छ उपयोगमां लोकालोक स्वयमेव झळकशे. अहा! आवुं स्वच्छत्वशक्तिनुं परिणमन छे! अहा! केवी स्वच्छता!

प्रश्नः– लोकालोकनुं ज्ञान थाय तेमां लोकालोक निमित्त छे, निमित्त छे के नहि? उत्तरः– लोकालोकनुं अहीं पोतानी पर्यायमां ज्ञान थयुं तेमां लोकालोक अवश्य निमित्त छे, निमित्त छे नहि एम कयां वात छे? पण तेथी करीने अहीं स्वच्छतानी जे पर्याय थई तेनो कर्ता कांई लोकालोक नथी. उपयोगनी स्वच्छतानी पर्यायमां अनेकरूपता आवी ते पोतानी पर्यायनो स्वभाव छे, तेमां लोकालोकनुं कांई ज कार्य नथी. समजाणुं कांई...? निमित्त नथी एम वात नथी, पण निमित्तथी उपादाननुं कांई कार्य थाय एम त्रणकाळमां नथी. भाई! आ तो जैनदर्शननी मूळ वात छे.

जुओ, शास्त्रमां आवे छे के-लोकालोकमां केवळज्ञान निमित्त छे. आखो लोकालोक-छ द्रव्यो, तेना द्रव्य-गुण- पर्यायो, अनंता सिद्धो अने अनंता निगोदना जीव आदि-एमां केवळज्ञान निमित्त छे. शुं तेथी एम अर्थ छे के केवळज्ञाने लोकालोक बनाव्यो छे? एम कदीय नथी. न तो लोकालोक केवळज्ञाननुं वास्तविक कारण छे, न केवळज्ञान लोकालोकनुं कारण छे. आ वस्तुस्थिति छे.

अहा! आ स्वच्छत्वशक्ति द्रव्यना अनंत भावोमां व्यापक छे, जेथी द्रव्य स्वच्छ, गुण स्वच्छ ने स्वाभिमुख थयेली पर्याय पण स्वच्छ छे; बधुं ज स्वच्छ-ज्ञान स्वच्छ, दर्शन स्वच्छ, आनंद स्वच्छ, वीर्य स्वच्छ इत्यादि अनंत स्वभावो स्वच्छ छे, निर्मळ छे. भाई! तारी स्वच्छत्वशक्ति एवी छे के तारा द्रव्य-स्वभावमां विकार समातो नथी, ने द्रव्यस्वभावमां अभेदपणे परिणमतां प्रगट पर्यायमां पण विकार समातो नथी. अहाहा...! आंखमां जेम रजकण समाय नहि तेम आत्माना स्वच्छ उपयोगमां विकारनो कण पण समाय नहि. अहो! आवी अद्भुत स्वच्छत्वशक्ति छे. ल्यो, -

आ प्रमाणे अहीं स्वच्छत्वशक्तिनुं वर्णन पूरुं थयुं.

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१२ः प्रकाशशक्ति

‘स्वयं प्रकाशमान विशद (-स्पष्ट) एवा स्वसंवेदनमयी (-स्वानुभवमयी) प्रकाशशक्ति.’ अहीं शुं कहे छे? के भगवान आत्मामां एवी प्रकाशशक्ति छे जे स्वयं एटले पोताथी ज प्रकाशमान छे, अने स्पष्ट स्वसंवेदनमयी छे. अहा! पोताथी पोतानुं प्रत्यक्ष वेदन थाय एवी आत्मामां त्रिकाळ प्रकाशशक्ति छे. आमां महत्त्वनी बे वात छे. के आत्मानो प्रकाशस्वभाव-

(१) पोते पोताथी ज प्रकाशमान छे; एने कोई परनी अपेक्षा नथी. (२) स्पष्ट स्वसंवेदनमयी छे. स्वानुभवमां आत्मा प्रत्यक्ष स्पष्ट जणाय एवो आत्मानो प्रकाशस्वभाव छे. अहा! जेम दीवो स्वयं पोताथी ज प्रकाशमान छे, तेने देखवा-प्रकाशवा बीजा दीवानी जरूर नथी तेम भगवान आत्मा चैतन्यप्रकाशनुं बिंब प्रभु स्वयं पोताथी ज प्रकाशमान छे, अहाहा...! स्वसंवेदनमां पोते ज पोताने प्रकाशी रह्यो छे; तेने प्रकाशवा-जाणवा बीजा कोईनी-रागनी, व्यवहारनी के निमित्तनी अपेक्षा नथी. अहाहा...! व्यवहारनी (व्रतादि रागनी) के निमित्तनी (देव-गुरु आदिनी) अपेक्षा विना ज स्वसंवेदनमां-स्वानुभवमय दशामां प्रत्यक्ष थाय एवो आत्मानो प्रकाशस्वभाव छे. भाई! बाह्य निमित्तथी के व्यवहारथी प्रत्यक्ष वेदनमां आवे एवुं आत्मानुं स्वरूप नथी. सूक्ष्म वात छे प्रभु?

अहाहा...! आत्मामां जेम ज्ञान, दर्शन आदि छे तेम एक प्रकाशशक्ति छे. तेनुं कार्य शुं? तो कहे छे- स्वसंवेदनमां आत्मा प्रत्यक्ष थाय ते तेनुं कार्य छे. सम्यग्दर्शन थतां मति-श्रुतज्ञानमां स्वसंवेदन द्वारा आत्मा प्रत्यक्ष थाय-अनुभवाय ते आ शक्तिनुं कार्य छे. कोई कहे के मने अरूपी आत्मा केम जणाय? तो कहे छे-स्वसंवेदनमां आत्मा