‘जे अन्यथी करातुं नथी अने अन्यने करतुं नथी एवा एक द्रव्य स्वरूप अकार्यकारणत्वशक्ति. (जे अन्यनुं कार्य नथी अने अन्यनुं कारण नथी एवुं जे एक द्रव्य ते-स्वरूप अकार्यकारणत्वशक्ति.)’
ओहो...! ज्ञानस्वरूपी प्रभु आत्मा अनंत शक्तिओनो एक पिंड छे. तेमां ज्ञान-दर्शननी जेम एक अकार्यकारणत्व शक्ति छे. केवी छे आ? तो कहे छे-‘जे अन्यथी करातुं नथी अने अन्यने करतुं नथी एवा एक द्रव्य स्वरूप अकार्यकारणत्व शक्ति छे.’ शुं कीधुं आमां? के आत्माना द्रव्य-गुण-पर्यायने कोई पर वस्तु करे नहि तेथी आत्मा अकार्य छे, ने परद्रव्यना द्रव्य-गुण-पर्यायने आत्मा करे नहि तेथी आत्मा अकारण छे. ओहो...! परद्रव्य साथे कार्य-कारणभाव रहित आत्मानो आ अलौकिक अकार्यकारणत्व स्वभाव छे. समजाणुं कांई...?
त्यारे कोई अहीं एम कहे छे के-आ तो द्रव्यनी वात छे, एम के द्रव्य कोईनुं कारण नहि अने द्रव्य कोईनुं कार्य नहि एम अहीं वात करी छे.
अरे भाई! तारी आ समजण बराबर नथी, केम के प्रस्तुत विषय द्रव्यनी शक्तिने लगतो छे. अहा! शक्ति जेनी छे एवा शक्तिवान, द्रव्यनो अनुभव थतां पर्यायमां पण अकार्यकारण दशा प्रगट थई जाय छे. अहा! जे पर्याय द्रव्यना आश्रये प्रगट थई ते परनुं-रागनुं कारण नथी अने ते परनुं-रागनुं कार्य पण नथी. जेम द्रव्य- गुण कोईनुं कारण नथी अने कोईनुं कार्य पण नथी तेम तेनी जे पर्याय प्रगट थाय छे ते पर्याय पण कोई परनुं कारण नथी ने कोई परनुं कार्य पण नथी. आ अकार्यकारणत्व शक्ति छे ते द्रव्य-गुण-पर्याय त्रणेमां व्याप्त थई जाय छे. समजाणुं कांई...?
द्रव्य-गुण तो परथी न थाय, पण पर्याय परथी थाय एम मानवा तुं प्रेराय छे, पण भाई! एम वस्तु नथी. आ अकार्यकारण स्वभाव छे ते द्रव्य-गुण-पर्याय त्रणेमां व्यापे छे. अहाहा...! द्रव्य अकार्यकारणस्वभावमय, गुण अकार्यकारणस्वभावमय अने पर्याय पण अकार्यकारणस्वभावमय छे. अहो! जेम द्रव्य-गुण अन्य वडे कराय नहि तेम पर्याय पण अन्य वडे कराती नथी एवो आ वस्तुनो अलौकिक स्वभाव छे. पर्याय समये समये नीपजतुं नवुं कार्य छे ए बराबर, पण तेथी कांई ते बीजा वडे कराय छे एम कयांथी आव्युं? कारण विना कार्य न होय ए खरुं, पण ते कारण पोतामां होय के परमां? कार्य पोतामां ने कारण परमां-एम छे नहि, ए जिनमत नथी.
अरे भाई! जो पोतानुं कार्य पर-बीजो करे तो पराधीन एवो पोते पोतानुं हित केवी रीते करी शके? अने जो पोते परनां कार्य करे तो पोतानुं कार्य कोण करे? ने कयारे करे? भाई! पोताना कार्यनुं कारण पोतामां ज छे, परनी साथे पोताने कार्यकारणपणुं छे ज नहि-आवो ज वस्तुनो स्वभाव छे.
आचार्यदेवे आ अकार्यकारणत्व शक्ति ७२मी गाथानी टीकामांथी काढी छे. अमे सम्मेदशिखरजीनी यात्रामां गयेला त्यारे त्यां ७२मी गाथा उपर प्रवचनो थयेलां. भाई! आ अकार्यकारणत्व शक्ति छे ते द्रव्य-गुणमां तो त्रिकाळ व्यापक छे ज, पण त्रिकाळी द्रव्यनी द्रष्टि थतां ते पर्यायमां पण व्यापक थाय छे. अहाहा...! दरेक गुणनी परिणति परनुं कारणेय नहि ने परनुं कार्य पण नहि-एम आ शक्ति छे तेनो विकास-विस्तार थाय छे. भगवानने जे केवळज्ञाननी दशा प्रगट थई ते कांई चार घातीकर्मनो नाश थयो माटे प्रगट थई छे एम नथी. पं. फुलचंदजीए जैन तत्त्वमीमांसामां बराबर खुलासो कर्यो छे के-चार घातीकर्मनो नाश थईने तेनी अकर्मरूप दशा थई छे, जे कर्मरूप पर्याय हती ते अकर्मरूप पर्याय थई. (कांई केवळ ज्ञानरूप थई छे एम नथी) केवळज्ञान तो जीवना गुणनी दशा छे. तेथी घातीकर्मना नाशथी केवळज्ञान प्रगट थयुं छे एम नथी.
तो शास्त्रमां एम कह्युं छे ने? ए तो निमित्तनुं (निमित्तनी मुख्यताथी) कथन छे भाई! पं. श्री फुलचंदजीए खानिया तत्त्वचर्चामां दरेक विषय बहु सारी रीते स्पष्ट कर्यो छे. आ एक ऐतिहासिक तत्त्वचर्चा बनी छे. अरे भाई! वस्तुनुं यथार्थ स्वरूप जेवुं छे तेवुं यथार्थ समजवाथी वितरागता सिद्ध थाय छे; कांई वाद विवादे आ वात पार पडे एम नथी. कोईने जुठा पाडवा अने पोतानी वात साची मानवी एवी वात अहीं नथी.