Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१४-अकार्यकारणत्वशक्तिः ८१

अहीं तो कहे छे-आत्मानो एवो अकार्यकारण स्वभाव छे के जेथी तेनी स्वाश्रये जे निर्मळ पर्याय प्रगट थाय छे ते रागनुं कार्य नथी. व्यवहार (व्यवहार रत्नत्रय) छे माटे निर्मळ पर्याय प्रगट थई छे एम नथी. व्यवहार रत्नत्रय कारण ने निश्चय रत्नत्रयनी निर्मळ पर्याय कार्य एम नथी. तेम आत्मा (निर्मळ पर्याय) रागनुं-विकारनुं कारणेय नथी. आत्मा संसारनी उत्पत्तिनुं कारण नथी. आवी वस्तुस्थितिनी मर्यादा छे भाई! द्रव्य सत्, गुण सत् ने पर्याय पण सत् छे; त्रणे स्वतंत्र छे. तेथी निश्चये पर्याय पोताथी उत्पन्न थाय छे, कोई बीजुं (अन्य द्रव्य) कारण छे माटे ते उत्पन्न थाय छे एम छे नहि.

निश्चयथी तो एम छे के सम्यग्दर्शन के केवळज्ञाननी जे पर्याय उत्पन्न थई ते तेनी जन्मक्षण छे. तेनी उत्पत्तिनो ते काळ हतो माटे ते पर्याय त्यां उत्पन्न थई छे; ते तेनी काळलब्धि छे. ते समये भव्यतानो भाव उत्पन्न थवानो काळ हतो माटे ते पर्याय पोताथी प्रगट थई छे, परनुं एमां जराय कारणपणुं नथी. जुओ, स्वस्वरूपमां लीन-स्थिर थाय त्यारे चारित्रमोहकर्मनो नाश थाय छे. त्यां चारित्रमोहकर्मना नाशनुं कार्य कांई जीवनुं कार्य नथी. (जीवनुं कार्य तो स्वरूपलीनता छे). तेम चारित्रमोहकर्मनो अभाव थयो ते कारण अने स्वरूपलीनतारूप निर्मळ चारित्र ते कार्य एम पण नथी.

हा, पण निमित्त तो छे ने? अरे भाई! निमित्त छे एनो अर्थ शुं? ए छे बस एटलुं ज, बाकी निमित्त कांई करे छे एम छे नहि. जुओने, आ चोक्खुं तो कह्युं छे के-जे अन्यथी करातुं नथी अने अन्यने करतुं नथी एवा एक द्रव्यस्वरूप अकार्यकारणत्वशक्ति त्रिकाळ जीवद्रव्यमां पडेली छे. हवे आम छे त्यां निमित्त-परवस्तु उपादानमां शुं करे? कांई ज ना करे. वास्तवमां एकेक समयनी पर्याय पोते ज पोताना कारण-कार्यपणे वर्ते छे. परम शुद्धद्रष्टिमां तो कार्य- कारणना भेद ज नथी, भेद पाडवो ते व्यवहार छे.

अहीं द्रव्यनी शक्तिनी वात करी छे, पण द्रव्यमां जे शक्ति छे ते पर्यायमांय व्यापे छे. अहाहा...! त्रिकाळी शक्तिवान निज द्रव्यनो ज्यां स्वाभिमुखपणे स्वीकार थयो त्यां शक्ति पर्यायमां व्यापी जाय छे. तेथी पर्यायमां पण परनुं कार्य-कारणपणुं नथी अहाहा...! जेणे अकार्यकारणरूप द्रव्य स्वभाव स्वीकार्यो ते पर्याय पण अंतर्मुख थईने द्रव्यमां अभेद थयेली छे, तेथी ते पर्याय पण परनुं कार्य-कारण नथी. अहा! द्रव्यनो-द्रव्य स्वभावनो जेमां निर्णय थयो ते पर्याय छे ते प्रगटेली पर्याय एम जाणे छे के हुं आनंदनी मूर्ति चिदानंदघन प्रभु रागनुं कारणेय नथी अने रागनुं कार्य पण नथी. राग रागना कारणे थयो छे अने आनंद आनंदना कारणे. समजाणुं कांई...?

त्यारे कोई कहे छे-रागनुं कारण जड कर्म तो छे ने? तो ए वात पण नथी. जड कर्म निमित्त हो, पण निमित्त निमित्तमां स्वतंत्र छे अने राग रागना कारणे स्वतंत्र थाय छे. अहा! गजब वात छे भाई! कोई जडनी अवस्था के रागनी अवस्थानुं आत्मा कारण नथी, कार्य पण नथी. आवो वस्तुस्वभाव छे.

समयसारनी ७२मी गाथामां आवे छे के-आस्रवो आकुळताना उत्पन्न करनारा छे तेथी दुःखना कारण छे, अने भगवान आत्मा तो सदाय निराकुळ-स्वभावने लीधे कोईनुं कारण नथी, कोईनुं कार्य नथी. ल्यो, आमांथी आचार्यदेवे आ अकार्यकारणत्व शक्ति काढी छे. कोई इश्वर जगतने बनावे ए वात तो दूर रहो, अहीं तो कहे छे- आत्मा परद्रव्यने करे अने परद्रव्य आत्माने करे एवुं परस्पर कार्य-कारणपणुं नथी. भाई! आ तो तुं न्याल थई जाय एवी वात छे. अज्ञानी पण परनुं कांई करे छे एम नथी, ए तो हठथी हुं परनुं करुं छुं एम (मिथ्या) माने छे बस, बाकी वस्तुनो अकार्यकारणस्वभाव तो जेम छे तेम छे; एनो अंतरमां स्वीकार करे ते ज्ञानी छे. आवी वात!

प्रश्नः– तो तत्त्वार्थ राजवार्तिकमां बे कारणथी कार्य उत्पन्न थाय छे एम कथन छे ने? उत्तरः– ए तो कार्य थयुं त्यारे निमित्त कोण छे तेनुं ज्ञान कराववा माटे त्यां ए वात करी छे. पर्याय कोईनुं कारण नहि अने कार्य पण नहि ए मूळ वातने राखीने पछी त्यां निमित्त कोण छे तेनुं प्रमाणज्ञान कराववा बे कारणथी कार्य थाय छे एम कह्युं छे. निश्चयथी पर्याय पोताथी प्रगट थाय छे, पर तेनुं कारण-कार्य नथी ए वात राखीने प्रमाण, निमित्तनुं ज्ञान करावे छे; बाकी निश्चयने जूठो मानीने (उडाडीने) निमित्तनुं ज्ञान करावे तो ते साचुं प्रमाणज्ञान ज नथी, ए तो मिथ्याज्ञान छे. आवी वात! समजाणुं कांई...?

अकार्यकारणत्वशक्तिनी व्याख्यामां जे ‘एक द्रव्यस्वरूप’ एवो शब्द छे तेथी केटलाकने एम लागे छे के आ तो