Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१प-परिणम्य-परिणामकत्वशक्तिः ८३

जुओ, आत्माने परद्रव्य साथे कार्य-कारणपणुं नथी एवी अकार्यकारणत्वशक्तिनी वात आवी गई. हवे कहे छे-पर अने पोते जेमनां निमित्त छे एवा ज्ञेयाकारो तथा ज्ञानाकारोने ग्रहण करवाना अने ग्रहण कराववाना स्वभावरूप आत्मामां परिणम्य-परिणामकत्वशक्ति छे. थोडी सूक्ष्म वात छे भाई! जरा ध्यान राखी समजवुं. परज्ञेयोने ग्रहण करवाना स्वभावरूप जे शक्ति छे ते प्रमाण नाम परिणम्यशक्ति छे, अने ज्ञानाकारोने ग्रहण कराववाना स्वभावरूप जे शक्ति छे ते प्रमेय नाम परिणामकत्वशक्ति छे. धीरे धीरे समजो बापु अहीं शुं कहेवुं छे? के आत्मामां प्रमाण नामनी एक शक्ति छे अने प्रमेय नामनी पण एक शक्ति छे. प्रमाण ते परिणम्य शक्ति छे अने प्रमेय ते परिणामकत्व शक्ति छे. आ बन्ने मळीने आत्मामां एक परिणम्य-परिणामकत्व नामनी शक्ति त्रिकाळ छे.

‘परिणम्य’ एटले परज्ञेयो वडे आत्मा परिणमावाय छे वा परज्ञेयो आत्माने ज्ञानने परिणमावे छे एम नहि, पण सामे जेवा परज्ञेयो छे तेवुं ज्ञाननुं सहज ज परिणमन पोताना स्वभावथी थाय छे. आवो आत्मानो परिणम्य स्वभाव छे. स्वभावथी ज परने जाणवारूप परिणमवानी आत्मानी शक्ति छे. आ परिणम्य शक्ति छे.

वळी ‘परिणामकत्व’ एटले सामा अन्य जीवना ज्ञानने आ आत्मा परिणमावे छे एम नहि, पण पोते सहज ज ज्ञेयपणे सामा जीवना प्रमाणज्ञानमां झळके एवो आत्मानो परिणामकत्व स्वभाव छे. परना ज्ञानमां ज्ञेयपणे झळकवानो आत्मानो परिणामकत्व स्वभाव छे. अहा! आत्मा परने जाणे अने परना ज्ञानमां पोते जणाय. आवा बन्ने स्वभाव तेमां एकीसाथे रहेला छे. तेने अही ‘परिणम्य-परिणामकत्व’ शक्ति कही छे.

आत्मानी शक्तिनुं अहीं आ सूक्ष्म वर्णन छे. आत्मा परनो कर्ता थाय अथवा पर वडे आत्मानुं कार्य थाय एवो तो आत्मानो स्वभाव नथी. परंतु सर्व ज्ञेयाकारोने-जे ज्ञेय वस्तुओ अनंत छे तेने विशेषपणे ग्रहण करवाना स्वभावरूप आत्मामां प्रमाण नाम परिणम्य नामनी शक्ति छे; तेमज परना प्रमाणमां प्रमेय थवानी अर्थात् पोताना ज्ञानाकारोने ग्रहण कराववाना स्वभावरूप आत्मामां प्रमेयत्व नाम परिणामकत्व नामनी शक्ति छे. आमां स्व अने पर एम बे वस्तुओ सिद्ध करी छे. एकलो पर परब्रह्मस्वरूप आत्मा ज छे एम नहि, तथा एकला परज्ञेयो छे एम पण नहि. अहा! ज्ञेयो (जीव-अजीवरूप) पण अनंत छे अने ज्ञानस्वरूपी आत्मा जे प्रमाण-प्रमेय स्वभावमय छे ते पण भावथी अनंतरूप छे.

अहाहा...! आत्मामां अनंत शक्ति, अनंत गुण, अनंत स्वभाव भर्या छे. तेमां एक प्रमाण नामनी शक्ति-स्वभाव छे. तेनुं कार्य शुं? तो कहे छे-स्वपर सर्व ज्ञेयाकारोनुं तेना विशेषो सहित ज्ञान करवुं ते प्रमाण शक्तिनुं कार्य छे. अहीं सर्व ज्ञेयाकारो कह्या तेमां पोतानो आत्मा पण एक ज्ञेयाकार तरीके आवी गयो. तेथी जो कोई एम कहे के-आत्मा परने जाणे पण स्वने न जाणे तो तेनी ए वात जूठी छे, केम के आत्मामां स्व-परने जाणवारूप आ प्रमाण शक्ति छे. वळी कोई एम कहे के-आत्मा स्वने जाणे, पण परने न जाणे तो तेनी ए वात पण जूठी छे, तेने आत्मामां स्वपरने जाणवारूप प्रमाण शक्ति छे तेनी खबर नथी.

वळी आत्मामां एक प्रमेय नामनी शक्ति पण छे. तेनुं कार्य शुं? तो कहे छे-परना प्रमाण ज्ञानमां पोताना ज्ञानाकारोने ग्रहण कराववानो अर्पण करवानो एनो स्वभाव छे. आ प्रमाणे प्रमाण-प्रमेय-बन्ने मळीने आ एक परिणम्य-परिणामकत्व शक्ति अहीं आचार्यदेवे कही छे. परने रचे-रचावे के करे-करावे एवो कोई आत्मानो स्वभाव नथी, पण परनो ज्ञाता पण थाय अने ज्ञेय पण थाय एवो आत्मानो आ परिणम्य-परिणामकत्व स्वभाव छे. आवी सूक्ष्म वात भाई!

प्रश्नः– आत्मामां स्व-परना ज्ञानमां ज्ञेय थवानो स्वभाव छे तथा स्वपरने जाणवानो स्वभाव छे तो अमने आत्मा जणातो केम नथी?

उत्तरः– अरे भाई! आत्मा इन्द्रियज्ञानथी न जणाय एवो सूक्ष्म अतीन्द्रिय अरूपी पदार्थ छे. तेने जाणवा इन्द्रियज्ञान काम नहि आवे; तारे तारो उपयोग अंतर्मुख अतीन्द्रिय सूक्ष्म करवो जोईशे. आत्मा अतीन्द्रिय स्वसंवेदनमां ज जणाय एवी चीज छे. समजाणुं कांई...?

अहींथी आ सत्-शास्त्र नाम जिनवाणी बहार पडे छे ने? ते ज्ञेय छे. ते ज्ञेयनुं ज्ञान करवुं ते भगवान आत्मानो स्वभाव छे. अहाहा...! अनंता ज्ञेयोने जाणे एवो भगवान! तारो स्वभाव छे. ते अनंता ज्ञेयोनी रचना करवी के तेनुं कार्य करवुं एम नहि (एवो तारो स्वभाव नहि), तेम ते ज्ञेयो वडे तारा कार्यनी रचना (ज्ञानाकारोनी रचना) थाय-कराय