Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). 16 Tyag-UpadanShunyatvaShakti.

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१६-त्याग-उपादानशून्यत्वशक्तिः ८७

अहा? आत्मा स्व-पर ज्ञेयोने-सर्वने जाणे एम कहीए ए व्यवहार छे. जाणे-एम भेद पडयो ने! माटे व्यवहार छे. आत्मा तो बस एक ज्ञायक छे. अहाहा...! ज्ञान वडे जाणे एवो भेद पण जेमां नथी एवो त्रिकाळी भूतार्थ एक ज्ञायक प्रभु आत्मा छे अने ते सम्यग्दर्शननो विषय छे. अहो! वीतराग सर्वज्ञ परमात्मानी वाणीनी आ असाधारण अमृतधारा छे.

जुओ, डुंगळीनी एक राईना दाणा जेवडी नानी कटकीमां असंख्य औदारिक शरीर छे, अने ते एकेक शरीरमां अनंत निगोदिया जीव छे. शुं कीधुं? छ महिना ने आठ समयमां छसो आठ जीव मोक्ष पामे छे. हवे आज सुधीमां जेटला (अनंता) सिद्ध थया छे तेना करतां अनंतगुणा जीवो निगोदना एक शरीरमां छे. ते बधा जीवो भगवान ज्ञायकना ज्ञाननुं ज्ञेय छे. अहो! भगवान ज्ञायकनुं कोई अद्भुत अपरिमित ज्ञान सामर्थ्य छे. भाई! लोकमां अनंता जीवो छे तेमनी मात्र दया पाळवा ज तेमनुं वर्णन छे एम नथी, पण भगवान ज्ञायकना स्व-पर ने जाणवाना परम अद्भुत ज्ञानस्वभावनो महिमा लावी अंतर्मुख थवुं एम एनो विशेष आशय छे. समजाणुं कांई...?

वळी परनी रक्षानो भाव पाप छे एम कोई लोको माने छे, पण ए मान्यता खोटी छे, मिथ्या छे. वळी परनी रक्षा करी शकाय छे ए मान्यता पण बराबर नथी, मिथ्या छे. पर जीवोनी रक्षाना परिणाम पुण्यभाव छे, अने ते ज्ञानी-धर्मीने पण थता होय छे, पण ते एटला माटे सार्थक नथी के पर जीवोनी रक्षा करी शकाय छे-एम वस्तु स्वरूप नथी. पर जीवोनी रक्षाना परिणाम थाय, पण तदनुसार पर जीवोनी रक्षा थाय के करी शकाय एवुं वस्तु स्वरूप नथी. बहु गंभीर वात छे भाई! लोको सत्यने समज्या विना विरोध करे, पण शुं थाय? भाई! निज अनंतगुणस्वभावमय द्रव्य उपर द्रष्टि जतां स्वानुभूति प्रगटे छे अने तेनुं नाम सम्यग्दर्शन अने धर्म छे.

ल्यो, आ प्रमाणे पंदरमी आ परिणम्य-परिणामकत्वशक्ति पूरी थई.

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१६ः त्याग–उपादानशून्यत्वशक्ति

‘जे घटतुं-वधतुं नथी एवा स्वरूपमां नियतत्त्वरूप (निश्चितपणे जेमनुं तेम रहेवारूप) त्यागोपादानशून्यत्वशक्ति.’

आ सोळमी शक्ति छे. भगवान आत्मा सोळे कळाए-पूर्ण भगवान छे एम आ शक्तिमां बताव्युं छे. शुं कहे छे? भगवान ज्ञायक जे ध्रुव नित्यानंद पूर्णानंद प्रभु छे तेमां, कहे छे, कमी के वृद्धि थती नथी. अहाहा...! भगवान आत्मा एक ज्ञायक प्रभु भरितावस्थ छे, अर्थात् परिपूर्ण अवस्थित छे. अहाहा...! पूरण परमात्मस्वरूप एवो ज्ञायकदेव प्रभु आत्मा छे, एमां अशुद्धतानुं तो नाम-निशान नथी.

भाई! अहीं शुद्धतानी अल्प-अपूर्ण पर्याय प्रगट छे तो अंदर त्रिकाळी ध्रुव द्रव्यस्वरूपमां विशेष शुद्धता छे, ने पूर्ण शुद्ध केवळज्ञाननी दशा प्रगट थये त्यां त्रिकाळी स्वरूपमां शुद्धतानी कमी थई गई एम छे नहि. अहा! भगवान ज्ञायकस्वरूप तो अंदर जेमनुं तेम रहेवारूप त्रिकाळ पूर्ण नियतरूप छे. हवे आवुं एक ज्ञायकतत्त्व-पूरण सारभूत वस्तु-कोईक विरला जीव पामी जाय छे. एक पदमां आवे छे ने के-

गगनमंडल में गौआ वियाणी, ने वसुधा दूध जमाया;
विरला था सो माखण पाया, छाशे जगत भरमाया....
अहाहा...!
सौ सूणो रे भाई! वलोणुं वलोवे सो तत्त्व अमृत को पाई.

अहाहा...! भगवान अरिहंत परमात्मा आकाशमां-समोसरणमां रत्नजडित सिंहासन उपर अंतरिक्ष बिराजे छे. प०० धनुषनी उंचाई छे. त्यां भगवानना श्री मुखेथी ॐकार धुनिरूपे अमृतनी धारा छुटे छे. आ रेडियो वागे छे ने? तेने आकाशवाणी कहे छे, तेम भगवाननी ॐ ध्वनि छूटी ते गगनमंडळमां गौआ वियाणी छे. अहाहा...! ए अमृतधाराने कोई विरला भव्य जीवो कर्णरूपी अंजलि वडे भरपुर पीए छे, ने अंतर्मुख द्रष्टि वडे सारभूत निज ज्ञायकतत्त्वने प्राप्त थाय छे. अने बीजा घणा (दीर्घ संसारीओ) तो पुण्यकर्मरूपी छाशमां ज भरमाई जाय छे. (एम