ते सघळोय खरेखर एक आत्मा छे.” शुं कीधुं? जे अनंत शक्तिओ छे ते अक्रमरूप छे, ने शक्तिओनुं जे परिणमन छे ते क्रमरूप प्रवर्ते छे. अहीं क्रममां अशुद्धतानी वात न लेवी, क्रमरूप प्रवर्तता परिणाममां शुद्धतानी वात लेवी. अशुद्धतानी वात न लेवी, अशुद्धता छे तेनुं जे ज्ञान थाय छे ते पोतानी पर्यायमां पोताथी थाय छे. एवुं ज ज्ञाननुं सहज स्वपरप्रकाशक सामर्थ्य छे. ज्ञाननी पर्याय स्वपरने प्रकाशती थकी पोते पोताथी ज प्रगट थाय छे. १२मी गाथामां जे कह्युं छे के-व्यवहारनय, विचित्र (अनेक) वर्णमाळा समान होवाथी, जाणेलो ते काळे प्रयोजनवान छे तेनो पण आ ज अर्थ छे. समजाणुं कांई...?
अहीं क्रमवर्तीरूप अने अक्रमवर्तीरूप जे अनंतधर्मोनो समूह छे ते सघळोय खरेखर एक आत्मा छे एम कह्युं छे. तेमां आ शक्ति ने शक्तिवान, आ पर्याय ने पर्यायवान-एवा भेदरूप व्यवहारने दूर (गौण) करीने, शक्तिवान जे त्रिकाळी एक द्रव्य छे तेनी द्रष्टि करवी एनुं नाम सम्यग्दर्शन छे. सम्यग्दर्शननो विषय बहु सुक्ष्म, अचिन्त्य ने अलौकिक छे.
अहीं शक्तिनुं वर्णन छे ते द्रव्यनी (द्रव्यद्रष्टिनी) प्रधानताथी छे. तेथी क्रमवर्ती परिणाममां एकली शुद्धतानी ज वात करी छे. ते शुद्धताना क्रममां अशुद्धतानी-व्यवहारनी नास्ति छे, आनुं नाम अनेकान्त छे. प्रवचनसारना परिशिष्टमां छेल्ले (नयनुं) वर्णन छे ते ज्ञानप्रधान कथन छे. त्यां ज्ञानप्रधान शैली होवाथी रागनो कर्ता आत्मा छे एम कह्युं छे.
तेमां साचुं कयुं समजवुं? बन्ने वात अपेक्षाथी साची छे. ज्यां जे अपेक्षाथी वात करी छे त्यां ते अपेक्षाथी यथार्थ समजवी जोईए. शक्ति एटले स्वभाव, अने स्वभाववान जे आत्मा-तेनी द्रष्टि कराववी छे त्यां अशुद्धतानी वात छे ज नहि, केमके द्रव्यद्रष्टि निर्विकल्प छे, तेनो विषय पण निर्विकल्प छे. अशुद्धता थाय एवी द्रव्यमां कोई शक्ति ज नथी. तथापि ज्यांसुधी साधकपणुं छे त्यांसुधी राग होय छे. द्रव्यद्रष्टिनी साथे जे ज्ञान थयुं छे ते रागने पण जाणे छे. ज्ञान तो स्व-परप्रकाशक छे ने? तेथी ज्ञानप्रधान ज्यां कथन होय त्यां रागनुं परिणमन पोतामां छे, तेथी रागनो कर्ता पोते छे-एम पर्याय अपेक्षा कहेवामां आवे छे. ज्ञानप्रधान कथनमां रागनो कर्ता पोते छे-एम पर्याय अपेक्षा कहेवामां आवे छे. ज्ञानप्रधान कथनमां रागनो भोक्ता पण पोते आत्मा छे एम कहेवामां आवे छे. प्रवचनसारमां विकारनो अंश जीवनो छे एम लीधुं छे; केमके एक समयना विकारी अंशने जो काढी नाखो तो, त्रण काळनी पर्यायोनो समूह ते द्रव्य-ए वात सिद्ध नहि थाय. अहीं शक्तिना अधिकारमां शुद्ध पर्यायनी ज वात लीधी छे. शुद्ध पर्याय भले अल्प हो, पण ते पर्याय परिपूर्ण द्रव्यने सिद्ध करे छे, प्रसिद्ध करे छे; अंश छे ते पूरण अंशीने सिद्ध करे छे. एक अंशने काढी नाखो तो पूर्ण द्रव्य सिद्ध नहि थाय. ल्यो, आवी वात छे.
आप्तमीमांसामां एम लीधुं छे के-अशुद्ध पर्याय हो के शुद्ध पर्याय हो, ते पर्याय आखा द्रव्यने सिद्ध करे छे, केमके नय-उपनयना विषयनो समूह ते द्रव्य छे. त्यां अशुद्धनय पण लीधो छे. अशुद्धता-जे राग छे, ते क्रमवर्ती ज्ञाननी पर्यायमां जणाय छे. राग छे तो रागनुं ज्ञान थाय छे एम नहि, स्वपरप्रकाशक ज्ञाननी क्रमवर्ती पर्याय ते समये पोताथी ज उत्पन्न थाय छे. रागने परज्ञेयपणे जाणे छे एम कहेवुं ते व्यवहार छे; निश्चयथी तो स्वपरप्रकाशक ज्ञाननी पर्याय ज्ञान ज छे.
सर्वदर्शित्वशक्ति ने सर्वज्ञत्वशक्तिने आत्मदर्शनमयी अने आत्मज्ञानमयी कही छे. सर्वज्ञ परने जाणे छे माटे सर्वज्ञ छे-शुं एम छे? ना, एम नथी. एक समयमां पोताना त्रिकाळी द्रव्य-गुण-पर्यायनुं ज्ञान करे, अने परना द्रव्य-गुण-पर्यायनुं ज्ञान करे एवी सर्वज्ञ पर्याय जे छे ते आत्मज्ञानमयी छे. स्वरूपथी ज केवळज्ञान एक समयमां स्वपरप्रकाशक छे, परने प्रकाशे छे माटे सर्वज्ञ छे एम छे ज नहि; आत्मज्ञानरूपे परिणमवुं-जाणवुं ते एनो स्वभाव छे. परने जाणे छे एम कहेवुं ए तो असद्भूत व्यवहार छे. लोकालोकने जाणे एवी ज्ञाननी पर्याय छे ते आत्मज्ञानमयी छे. लोकालोक छे तो आत्मज्ञानमयी सर्वज्ञ पर्याय छे एम छे नहि.