Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). 18 UtpadVyayDhruvatvaShakti.

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१८ः उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्ति

क्रमवृत्तिरूप अने अक्रमवृत्तिरूप वर्तन जेनुं लक्षण छे एवी उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्ति. (क्रमवृत्तिरूप पर्याय उत्पादव्ययरूप छे अने अक्रमवृत्तिरूप गुण ध्रुवत्वरूप छे).’

जुओ, अनंत शक्तिओनो पिंड प्रभु आत्मा छे. तेमां एक उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्ति त्रिकाळ छे. केवी छे आ शक्ति? तो कहे छे-‘क्रमवृत्तिरूप अने अक्रमवृत्तिरूप वर्तन जेनुं लक्षण छे एवी उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्ति, आमां क्रमवृत्तिरूप अर्थात् एक पछी एक वर्तवारूप पर्यायो छे, ने अक्रमवृत्तिरूप अर्थात् एक साथे त्रिकाळ वर्तवारूप गुणो छे. द्रव्यमां गुणो बधा अक्रमवृत्तिरूप त्रिकाळ एक साथे पडया छे, ने पर्याय एक पछी एक सळंग उंचाई- उर्ध्वप्रवाहरूपे क्रमबद्ध थाय छे. पर्यायो क्रमवर्ती छे, तेथी क्रमे प्रवर्तवुं जेनुं लक्षण छे एवी पर्यायो उत्पादव्ययरूप छे, ने अक्रमवृत्तिरूप गुणो ध्रुवत्वरूप छे. आम आखुं द्रव्य क्रम-अक्रमवृत्ति वडे उत्पादव्ययध्रुव स्वभाववाळुं छे. समजाणुं कांई...!

अरे भाई, एक समयनी पर्यायमां भूल छे, तेने टाळतां केटलो काळ लागे? तो कहे छे-एक समयमां ते भूल मटी शके छे, केमके क्रमे वर्तवुं जेनुं लक्षण छे एवी पर्याय क्रमवृत्तिरूप छे. अहा! जे समये निज स्वभावने जाणी स्व-आश्रये परिणमे ते ज समये भूल मटी निर्मळ परिणमन अर्थात् मोक्षमार्ग प्रगट थाय छे. शुं थाय? अज्ञानी जीव अनादिथी निज स्वभावने भूली पर-आश्रये परिणमे छे तेथी तेने विकारी परिणमन नाम भूल अने संसार छे. अहाहा...! क्रम-अक्रमवृत्तिरूप वर्तवाना स्वभाववाळुं जे स्वद्रव्य तेना रुचि अने लीनतारूप परिणमता जीव निर्मळ रत्नत्रयरूपे परिणमे छे; आ धर्म छे ने आ ज शक्तिनुं वास्तविक परिणमन छे.

पर्यायमां क्रमवर्तीपणुं तो ज्ञानी अज्ञानी बन्नेने छे; त्यां अज्ञानीने पराश्रये परिणमवाने लीधे क्रमवर्ती अशुद्ध-भूलवाळी मलिन पर्यायो थाय छे, ज्यारे ज्ञानीने स्वाश्रये परिणमवाने लीधे क्रमवर्ती निर्मळ-निर्मळ समकित आदि मोक्षमार्गनी पर्यायो थाय छे. आ पर्यायमां भूल होवानुं ने भूल मटाडवानुं संक्षेपमां रहस्य छे. आवी वात छे.

आ क्रम-अक्रमपणे वर्तवानो स्वभाव आत्मानी एकेक शक्तिमां लागु पडे छे, केमके क्रमवृत्तिरूप अने अक्रमवृत्तिरूप वर्तन जेनुं लक्षण छे एवी उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्ति आत्मानी एकेक शक्तिमां व्यापक छे. ए तो प्रथम कहेवाई गयुं छे के क्रम अने अक्रमरूप प्रवर्तता अनंत धर्मोनो समुदाय ते आत्मा छे. आम दरेक शक्तिनुं उत्पादव्ययपणे क्रमे प्रवर्तवुं अने अक्रमपणे ध्रुव रहेवुं ते स्वरूप छे. अहाहा...! ज्ञानमात्र भावनी अंदर आवी जती अनंत शक्तिओ एक साथे पर्यायमां उल्लसे छे, उछळे छे. अहो! द्रव्यना बधाय गुणनो एवो स्वभाव छे के गुणपणे ध्रुव रहीने ते क्रमवर्ती पर्याये परिणमे छे.

तुं सांभळ तो खरो बापु! तारा आत्मद्रव्यनी- -एकेक शक्ति अनंत गुणोमां व्यापक छे. -एकेक शक्ति अनंतमां (गुणोमां) निमित्त छे. -एकेक शक्ति द्रव्य, गुण, पर्याय त्रणेमां व्यापे छे. -एकेक शक्ति ध्रुव उपादान छे, अने तेनी पर्याय क्षणिक उपादान छे. तेमां अक्रमे रहेवुं ते ध्रुव उपादान छे,

ने क्रमे वर्तवुं ते क्षणिक उपादान छे.

-एकेक शक्तिमां व्यवहारनो-रागनो ने निमित्तनो अभाव छे. एकेक शक्ति क्रमे प्रवर्ते छे ते निर्मळ परिणतिए प्रवर्ते छे, ने तेमां व्यवहारनो-रागनो ने निमित्तनो अभाव नाम नास्ति छे. आ अनेकान्त छे. व्यवहारना के निमित्तना कारणे अहीं शक्तिनुं परिणमन थयुं छे एम छे नहि.

अहीं आ शक्तिना अधिकारमां व्यवहारनी वात ज करी नथी. साधकने दया, दान, व्रत, भक्ति इत्यादि व्यवहारना-शुभरागना परिणाम होय छे खरा, पण तेने ते मात्र जाणे ज छे, तेमां तन्मय नथी. ज्ञान रागथी छूटुं ने छूटुं ज ज्ञानपणे रहे छे. तेनी ते ज्ञान पर्याय पोतामां पोताना सामर्थ्यथी पोताथी ज थाय छे, तेमां व्यवहारनो- रागनो अभाव ज छे. ज्ञाननी पर्याय, समकितनी पर्याय, चारित्रनी पर्याय, आनंदनी पर्याय, परनी अपेक्षा विना ज पोताथी थाय छे. आवी सूक्ष्म वात! समजाणुं कांई...!