९८ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११
अहाहा...! क्रम-अक्रमवर्तीपणारूप आ उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्ति आत्मानी एकेक शक्तिमां (-बधी अनंत शक्तिमां) व्यापक छे, जेथी प्रत्येक गुणमां जे समये जे पर्याय थवानो काळ छे ते त्यां उत्पन्न थाय छे. प्रत्येक समये पूर्व पर्यायनो व्यय थई क्रमवर्ती नवी पर्यायनो उत्पाद थाय एवो आ शक्तिनो स्वभाव छे; मतलब के प्रति समय क्रमे उत्पन्न थवावाळी पर्याय परने-निमित्तने लईने उत्पन्न थाय एम छे ज नहि. दया, दान, पंचमहाव्रत आदिरूप रागनी मंदताना (भेद रत्नत्रयना) परिणाम छे माटे क्रमे निर्मळ रत्नत्रयना परिणाम प्रगट थया एवुं वस्तुना स्वरूपमां छे नहि. द्रव्यना सहज परिणमनने, उत्पाद-व्ययने कोईनी अपेक्षा छे नहि, झीणी वात छे प्रभु! कह्युं छे ने के-‘वात छे झीणी, ने लोढुं कापे छीणी.’ लोढुं कापवामां लोढानी छीणी जोईए, बीजुं काम न आवे; तेम आ भेदज्ञाननी सूक्ष्म वातो छे ते अंतरना सूक्ष्म अभ्यासथी पमाय तेवी छे, तेमां स्थूळ उपयोग काम न आवे. अहाहा...! जेने अंतर्द्रष्टि थई, शक्तिनुं परिणमन शरू थयुं ते साधक छे. तेने कांईक राग छे. पण ते रागनी, शक्ति अने शक्तिना परिणमनमां नास्ति छे. आम एकेक शक्तिमां व्यवहारनो अभाव छे; आ अनेकान्त छे. अहाहा...! शक्तिनी निर्मळतानी अस्ति, ने तेमां विकारनी ने व्यवहारनी-रागनी नास्ति-आवुं अनेकान्तमय साधकनुं परिणमन होय छे.
-वळी एकेक शक्ति छे ते पारिणामिकभावे छे. कोईए प्रश्न करेलो के- प्रश्नः– मोक्षमार्ग क्यो भाव छे? त्यारे कह्युं- उत्तरः– मोक्षमार्ग उपशम, क्षयोपशम अने क्षायिकभावरूप छे. भगवान आत्मामां उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्ति छे ते पारिणामिकभावे छे. आ शक्तिना निमित्ते-कारणे जे उत्पादव्ययरूप क्रमवर्ती पर्यायो थाय छे ते निर्मळ सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूपे थाय छे, अने ते उपशम, क्षयोपशम के क्षायिकभावस्वरूपे छे. (जेमां जे भाव लागु पडतो होय ते समजवो). आ निर्मळ पर्यायोमां उदयभावनो अभाव छे, केमके उदयभाव शक्तिना कार्यरूप नथी. हवे आमां कोईने थाय के अमारे केटकेटलुं याद राखवुं? अरे भाई! आवा मोंघा मनुष्यपणा मळ्या ने एमां तुं अत्यारे आ नहि समज तो के’दि’ समजीश? (एम के हमणां नहि समजे तो पछी समजवानुं सामर्थ्य ज रहेशे नहि एवी एकेन्द्रियादि हलकी दशा आवी पडशे).
भाई! आ सर्वज्ञस्वभावी भगवान आत्मा अंदर शक्तिओनो दरियो छे. तेमां केवळज्ञाननी पर्याय जेवी अनंती पर्यायो क्रमसर थाय छे. केवळज्ञाननी पर्याय छे ते एक समय पूरती छे, बीजे समये एवी बीजी थाय छे. सादि अनंतकाळ एवी पर्यायो क्रमे थाय एवो वस्तुनो स्वभाव छे. एवी अनंत पर्यायोनो समुदाय ते ज्ञानगुण छे. तेम श्रद्धागुणनी अनंती पर्याय, चारित्र गुणनी अनंती पर्याय, आनंद गुणनी अनंती पर्याय, ... इत्यादि. अहा! आवी अनंत पर्याय अने अनंता गुणोनो पिंड ते निज आत्मद्रव्य छे. हवे आवा निज अंतःतत्त्वनो अभ्यास कदी करे नहि अने बहारमां उपवासादि करे अने माने के कल्याण थई जाय; पण धूळेय न थाय सांभळने, केमके वस्तु एवी नथी. लोकोने आ आकरुं पडे, पण भगवाननो मार्ग आवो छे भाई!
अहाहा...! आत्मा सत् शाश्वत वस्तु छे. तेमां शक्तिओ छे ते पण त्रिकाळ शाश्वत छे. द्रव्य छे ते पारिणामिकभावे छे, तेमां रहेली शक्तिओ पण पारिणामिकभावे छे. एक शक्ति छे ते बीजी अनंतने निमित्त छे, पण एक शक्ति बीजी शक्तिने (तेनी पर्यायने) उत्पन्न करे एम नथी. दरेक शक्तिमां क्रम-अक्रमवर्तीपणारूप उत्पादव्ययध्रुवत्वनुं रूप छे. ज्ञाननी पर्यायनो जे समये निर्मळपणे क्रमवर्ती उत्पाद थाय छे ते ज्ञान गुणनो क्रम- अक्रमवर्तीपणानो स्वभाव छे. उत्पादव्ययध्रुवत्व तेमां निमित्त छे. अहाहा...! एकेक शक्तिमां-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य, स्वच्छता, प्रभुता इत्यादिमां -उत्पादव्ययरूपे जे पर्याय समये समये थाय छे ते परनी अपेक्षा विना ज, पोताना षट्कारकथी थाय छे. आवो ज द्रव्यनो उत्पादव्ययध्रुवत्व स्वभाव छे. आम ज्ञानमां मतिज्ञान, श्रुतज्ञान के केवळज्ञाननी पर्यायनो जे क्रमवर्ती उत्पाद थाय छे ते आ उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्तिना कारणे थाय छे. आवी सूक्ष्म गंभीर वात छे बापु!
प्रश्नः– चार घातिकर्मना क्षयथी केवळज्ञान उत्पन्न थाय छे-शास्त्रमां-तत्त्वार्थसूत्रमां तो एम कह्युं छे? उत्तरः– हा, कह्युं छे. ते निमित्तनुं कथन छे; अर्थात् केवळज्ञान थवा काळे बाह्य निमित्त शुं होय छे तेनुं तेमां ज्ञान कराव्युं छे, बाकी ज्ञान गुणमां उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्तिनुं रूप छे तेथी ज्ञाननी केवळज्ञानरूप पर्याय तेना काळे पोताथी ज प्रगट थाय छे. कर्मनो क्षय बाह्य निमित्त हो, पण कर्मनी के बीजा कोईनी तेमां अपेक्षा नथी. आवुं ज वस्तुस्वरूप छे.
‘स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा’मां एम कह्युं छे के पूर्वपर्याययुक्त द्रव्य ते कारण छे, अने उत्तरपर्याययुक्त द्रव्य ते तेनुं