Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). 19 ParinamShakti.

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१०२ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ सूक्ष्म छे. ते स्थूळ स्कंधमां भळतां स्थूळरूपे परिणमन करे छे, त्यां ते पोतानी पर्यायनी योग्यताथी सूक्ष्ममांथी स्थूळरूपे परिणमे छे; तेमां स्थूळ स्कंध तेने कारणभूत नथी. बे गुण चीकाशवाळो एक परमाण, चार गुण चीकाशवाळा अन्य परमाणुं साथे भळतां चार गुण चीकाशरूपे परिणमी जाय छे ते पोतानी पर्यायनी शक्तिनी योग्यताथी चार गुण चीकाशरूपे परिणमे छे. निमित्तना कारणे ते परमाणु चार गुण चीकाशपणे परिणमे छे एम नथी. अहा! उत्पादव्ययध्रुवत्व ए प्रत्येक द्रव्यनो स्वभाव छे, अने तेथी ते (द्रव्य) स्वतंत्रपणे पोताथी ज उत्पादव्ययरूपे परिणमे छे. अहा! स्वसन्मुखताना अंतःपुरुषार्थपूर्वक निर्विकल्प अनुभव थया विना आ क्रमबद्ध आदिनुं यथार्थ ज्ञान थतुं नथी. खाली क्रमबद्धनुं नाम लई पुरुषार्थहीन थवुं ए तो स्वच्छंदता छे, अज्ञान छे.

अहा! आत्माने पोताना अंतरंग स्वरूपनुं ज्ञान थाय त्यारे ज अन्य जीवपुद्गलादि द्रव्योना द्रव्य-गुण- पर्यायनुं यथार्थ ज्ञान थाय छे. आ वात समयसार कळशटीका, कळश ६०मां कही छे. त्यां कह्युं छे-“जेम अग्नि अने पाणीना उष्णपणा अने शीतपणानो भेद निजस्वरूपग्राही ज्ञानथी प्रगट थाय छे तेम. भावार्थ आम छे के-जेम अग्निसंयोगथी पाणी ऊनुं करवामां आवे छे, कहेवामां पण ‘ऊनुं पाणी’ एम कहेवाय छे, तो पण स्वभाव विचारतां उष्णपणुं अग्निनुं छे, पाणी तो स्वभावथी शीतळ छे-आवुं भेदज्ञान, विचारतां ऊपजे छे.” जुओ, आ भेदज्ञान! उष्णता पाणीनुं स्वरूप नथी, तेम राग-विकार आत्मानुं स्वरूप नथी. हवे आम छे त्यां रागथी- व्यवहारथी निश्चय थाय एम कयां रह्युं? एम छे नहि.

अहा! सत् छे ते उत्पाद-व्यय-ध्रुवस्वरूप छे. तत्त्वार्थसूत्रमां आवे छे के ‘उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तम् सत्’, तेनुं अहीं उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्तिरूपे वर्णन कर्युं छे. कहे छे-क्रमवृत्तिरूप अने अक्रमवृत्तिरूप वर्तन जेनुं लक्षण छे एवी उत्पादव्ययध्रुवत्व शक्ति. तेमां क्रमवृत्तिरूप पर्यायो उत्पादव्ययरूप छे, ने अक्रमवृत्तिरूप गुणो ते ध्रुवतारूप छे. आवा क्रम-अक्रमवर्ती भावोनो समूह अर्थात् गुणपर्यायोना एक पिंड ते द्रव्य छे. आत्मा अने जगतना सर्व द्रव्यो आवा उत्पाद-व्ययध्रुवस्वरूप सहज पोताथी छे. अहा! आवा निज आत्मद्रव्यनो निर्णय करी द्रव्यस्वभावमां एकाकार थई परिणमे तेने स्वभाव-आश्रित निर्मळ निर्मळ पर्यायोनो उत्पाद थाय छे. आनुं नाम धर्म छे.

प्रश्नः– समयसार, गाथा ३८नी टीकामां पर्यायने क्रम-अक्रमरूप प्रवर्तती कही छे ते शुं छे? उत्तरः– हा, त्यां बीजी अपेक्षाथी वात छे. त्यां ‘अक्रम’ एटले पर्याय आगळ-पाछळ थाय छे एवो अर्थ नथी. त्यां कह्युं छे-“चिन्मात्र आकारने लीधे हुं समस्त क्रमरूप तथा अक्रमरूप प्रवर्तता व्यावहारिक भावोथी भेदरूप थतो नथी माटे हुं एक छुं.” हवे आमां गतिनी पर्याय एक पछी एक थाय छे तेथी तेने क्रमरूप प्रवर्ततो भाव कहेल छे; ने योग, कषाय, लेश्या आदि भावो एक साथे होय छे तेथी तेने अक्रमरूप प्रवर्तता भावो कहेल छे. प्रत्येक गुणमां थतुं परिणमन तो क्रमवर्ती ज होय छे एम यथार्थ जाणवुं. ल्यो,

आ प्रमाणे अहीं उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्ति पूरी थई.

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१९ः परिणामशक्ति

‘द्रव्यना स्वभावभूत ध्रौव्य-व्यय-उत्पादथी आलिंगित (-स्पर्शित), सदृश अने विसदृश जेनुं रूप छे एवा एक अस्तित्वमात्रमयी परिणामशक्ति.’

जुओ, त्रिकाळी स्वद्रव्यना लक्षे थतां ज्ञानमात्र भावना परिणमनमां एकलुं ज्ञान ज नथी, पण ज्ञाननी साथे श्रद्धा, आनंद, वीर्य आदि अनंत शक्तिओ भेगी उल्लसे छे; तेमां एक ‘परिणामशक्ति’ छे. केवी छे आ परिणामशक्ति? तो कहे छे-‘द्रव्यना स्वभावभूत ध्रौव्य-व्यय-उत्पादथी आलिंगित सदृश अने विसदृश जेनुं रूप छे एवा एक अस्तित्वमात्रमयी परिणामशक्ति छे.’ जुओ, शुं कीधुं? के आत्मा द्रव्य छे तेना स्वभावभूत ध्रौव्य-व्यय- उत्पाद छे. ध्रौव्य-नित्य टकवापणुं द्रव्यना स्वभावथी ज छे, ने क्षणे क्षणे पर्यायना थतां उत्पाद-व्यय पण द्रव्यना स्वभावथी ज छे. मतलब के उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य त्रणेय परथी नथी. परने-निमित्तने लीधे आत्माना परिणाम उपजे छे एम नथी.