वळी द्रव्यनी जे सत्ता-अस्तित्व छे ते ध्रौव्य-उत्पाद-व्ययथी आलिंगित छे. मतलब के ध्रौव्य-ध्रुवता ने उत्पाद-व्यय कांई त्रण भिन्न-भिन्न सत्ता नथी, पण त्रणेय मळीने एक सत्ता-अस्तित्व छे. अहाहा...! त्रणेयथी आलिंगित एक अस्तित्वमात्रमयी परिणामशक्ति छे. ध्रौव्यनी अपेक्षाए ते (-अस्तित्वए) सदृश छे ने उत्पाद- व्ययनी अपेक्षाए ते विसदृश छे. अहा! आवा सदृश-विसदृशरूप एक अस्तित्वमात्रमयी परिणामशक्ति छे. बहु झीणुं भाई! पण ध्यान राखे तो पकडाय एवुं छे.
भाई! आ कांई कथा वार्ता नथी. आ तो तत्त्वज्ञाननो विषय-बहु सूक्ष्म बापु! कहे छे-भगवान आत्मा द्रव्य छे ते ध्रौव्य-उत्पाद-व्यय त्रणेने एक समयमां आलिंगन करे छे. गजब वात भाई! जो ध्रौव्य न होय तो परिणाम शामां थाय? ने जो उत्पाद-व्यय न होय तो परिणाम केवी रीते थाय? ध्रौव्य-उत्पाद-व्यय त्रणेय एकी साथे होया विना परिणामशक्ति बनी शके नहि. तेथी कह्युं के-ध्रौव्य-व्यय-उत्पादथी आलिंगित एवा एक अस्तित्वमात्रमयी परिणाम शक्ति छे. ‘सद्द्रव्य लक्षणम्’ ने ‘उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तम् सत्’-एवा जे बे महान सूत्रो तत्त्वार्थसूत्रमां आव्या छे ते आमां समाई जाय छे. अहीं अस्तित्वमात्र कहीने एक सत्-सत्ता बतावी छे.
भाई! प्रत्येक द्रव्य प्रतिसमय पोताना ध्रौव्य-उत्पाद-व्ययने आलिंगन करे छे. समयसार गाथा त्रणमां आवे छे के-प्रत्येक द्रव्य पोताना धर्मोना चक्रने चुंबे छे, पण परने स्पर्शतुं नथी. त्यां कह्युं छे के-“केवा छे ते सर्व पदार्थो? पोताना द्रव्यमां अंतर्मग्न रहेल पोताना अनंत धर्मोना चक्रने चुंबे छे-स्पर्शे छे तोपण जेओ परस्पर एकबीजाने स्पर्श करता नथी.” जुओ, आम वस्तुस्वरूप छे छतां केटलाक लोको माने छे के-कर्मथी विकार थाय छे, पण ते मान्यता बराबर नथी. कर्मनो उदय जीवनी पर्यायने अडतो सुद्धां नथी तो कर्मना उदयथी जीवने विकार केम थाय? ए तो जीव पोते परनो संग करे छे माटे रागादि विकार थाय छे. अरे! पोताना असंग स्वरूपने भूली अज्ञानी जीव परनो संग करे छे तेथी तेने पर्यायमां रागद्वेषादि विभाव भावो उत्पन्न थाय छे. भाई! विकार थाय छे ते जीवनी पोतानी तेवी योग्यताथी थाय छे. परथी-कर्मथी ते थाय छे एम छे ज नहि.
प्रवचनसारमां ४७ नयनो अधिकार छे. तेमां एक इश्वरनय कह्यो छे. त्यां कह्युं छे-“आत्मद्रव्य इश्वरनये परतंत्रता भोगवनार छे, धावनी दुकाने धवडाववामां आवता मुसाफरना बाळकनी माफक.” आम जीव पोते निमित्तने आधीन थईने पर्यायमां पराधीन थई विकाररूपे परिणमे एवी तेनामां योग्यता छे. कर्मने लईने विकार थाय छे एम छे नहि.
अहीं कहे छे-भाई! तारी चीजमां ध्रौव्य-उत्पाद-व्ययथी आलिंगित एवा एक अस्तित्वमात्रमयी परिणाम- शक्ति छे. शक्ति ध्रुव छे ते उत्पाद-व्ययरूपे पर्यायमां परिणमे छे. तेमां ध्रुव छे ते सदृश एकरूप छे, अने उत्पाद- व्यय छे ते विसदृश छे. उत्पाद-व्यय एक सरखा नथी, परस्पर विरुद्ध छे माटे तेने विसदृश कहेल छे. धवलमां तेमने (उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यने) विरुद्ध अने अविरुद्ध कह्या छे. उत्पाद-व्यय विरुद्ध छे, अने त्रिकाळी ध्रुव सदृश ते अविरुद्ध छे. व्यय छे ते पूर्व पर्यायनो अभाव छे, ने उत्पाद छे ते वर्तमान पर्यायनो भाव छे. एक भावरूप ने बीजो अभावरूप छे, तेथी उत्पाद-व्यय छे ते विरुद्ध अर्थात् विसदृश छे; अने ध्रौव्य छे ते अविरुद्ध अर्थात् सदृश छे. ध्रुव कहो, एक कहो, सामान्य कहो, सदृश कहो-बधु एक ज छे.
आ समजे तो जन्म-मरणना अंत आवी जाय एवी आ चीज छे. दया, दान, पूजा, भक्ति इत्यादि भाव तो जीव अनादिथी कर्या करे छे, पण ते कांई धर्म नथी. अंदर आत्मा शुद्ध चैतन्यमूर्ति प्रभु छे, तेनी अंतरमां द्रष्टि थया विना धर्म थई जाय एवुं स्वरूप नथी. अरे भाई, आत्मामां कोई एवी शक्ति नथी के विकार करावे, भवभ्रमण करावे. शक्ति अने शक्तिवान द्रव्य त्रिकाळ ध्रुव पवित्र परमात्मस्वरूप छे, ने तेने द्रष्टिमां लेता पवित्रतानो-निर्मळ परिणामनो उत्पाद थाय छे. अहीं निर्मळ-पवित्र परिणामनी ज वात छे, अहीं मलिनतानी वात ज नथी. निर्मळ परिणाम ते क्रमवर्ती अने निर्मळ गुणो ते अक्रमवर्ती-ते बधानो समुदाय ते आत्मा छे एम अहीं वात छे.
तो नियमसार, गाथा ३८मां त्रिकाळी ध्रुवने निश्चय आत्मा कह्यो छे? हा, त्यां द्रष्टिनो विषय सिद्ध करवो छे. जेनी द्रष्टि करी परिणमता निर्मळ-निर्मळ परिणाम थया करे ते द्रष्टिनो विषय त्यां बताववो छे. तेथी त्यां त्रिकाळी ध्रुवने निश्चय आत्मा कह्यो ने पर्याय निर्मळ हो तोपण ते व्यवहार आत्मा छे एम त्यां कह्युं छे. ध्यान राखीने समजवुं बापु! आ विषय बहु सूक्ष्म गंभीर छे. कोई निश्चय- निश्चय एक एकलुं