Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 4023 of 4199

 

१०४ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ कह्या करे तो एम वात नथी. अहाहा...! अंदर कारणपरमात्मा-नित्यानंद, चिदानंद ध्रुव प्रभु-त्रिकाळ बिराजे छे. तेनी प्रतीति-अंतर्द्रष्टि अने अनुभव थतां जे निर्मळ-निर्मळ पर्यायनो उत्पाद थाय तेने अहीं आत्मा कह्यो छे. अपेक्षा बराबर समजवी जोईए.

जुओ, अहीं परिणामशक्तिनी वात चाले छे. कोईने एम थाय के १८मी उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्ति अने आ १९मी परिणामशक्ति बन्ने एक छे; पण एम नथी. क्रमवृत्तिरूप अने अक्रमवृत्तिरूप वर्तन जेनुं लक्षण छे एवी उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्ति कही, ज्यारे अहीं आ परिणामशक्तिमां, ध्रौव्य-व्यय-उत्पादथी आलिंगित सदृश अने विसदृश जेनुं रूप छे एवा एक अस्तित्वमात्रमयी परिणामशक्ति-एम कहेल छे. आम बन्नेमां फेर छे.

भाई! सदृश अने विसदृश एवा बन्ने स्वभाववाळुं तारुं अस्तित्व छे. उत्पाद-व्यय विसदृश अर्थात् विरुद्ध छे, ने ध्रुव ते सदृश अर्थात् अविरुद्ध छे. समयसार, गाथा ३नी टीकामां आ वात आवी छे. त्यां कह्युं छे-“जेओ टंकोत्कीर्ण जेवा (शाश्वत) स्थित रहे छे अने समस्त विरुद्ध कार्य अने अविरुद्ध कार्यना हेतुपणाथी जेओ हंमेशां विश्वने उपकार करे छे-टकावी राखे छे.” आमां उत्पाद-व्ययने विरुद्ध कार्य कहेल छे, ने ध्रौव्यने अविरुद्ध. अहीं शक्तिना वर्णनमां तेने सदृश-विसदृश कहेल छे. ध्रौव्य त्रिकाळ एकरूप छे तेथी सदृश अने पर्याय उत्पाद-व्ययरूप- भाव-अभावरूप एम बेपणे छे तेथी विसदृश छे. अहा! आवा सदृश-विसदृशरूप एक अस्तित्वमात्रमयी परिणामशक्ति छे.

हवे जे परिणमन थाय छे ते गुणमांथी थाय छे के द्रव्यमांथी थाय छे? ‘चिद्दविलास’मां आनुं समाधान कर्युं छे के-द्रव्य परिणमे छे, गुण नहि. परिणमनशक्ति द्रव्यमां छे ए बाबत चिद्दविलासमां नीचे मुजब स्पष्टीकरण कर्युं छेः “कोई प्रश्न करे छे के-गुणद्वारथी जे परिणति ऊपजी ते गुणनी छे के द्रव्यनी छे? जो गुणनी होय तो गुणो अनंत छे तेथी परिणति पण अनंत होय; अने (जो ते परिणति) द्रव्यनी होय तो गुणपरिणति शा माटे कहो छो?-

तेनुं समाधानः– ए परिणमनशक्ति द्रव्यमां छे; द्रव्य गुणोनो पुंज छे, ते पोताना गुणरूपे पोते ज परिणमे छे; तेथी गुणमय परिणमता (तेने) गुणपर्याय कहीए. तेथी द्रव्यनी परिणति, गुणनी परिणति-एम तो कहीए छीए; परंतु आ परिणमनशक्ति द्रव्यमांथी उठे छे, गुणमांथी नहि. एनी साक्षी सूत्रजीमां (तत्त्वार्थसूत्रमां) दीधी छे के- ‘द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः’ द्रव्यना आश्रये गुण छे, गुणना आश्रये गुण नथी. ‘गुणपर्ययवद् द्रव्यम्’ (- गुणपर्यायवाळुं द्रव्य छे)-एम पण कह्युं छे. पर्यायवाळुं द्रव्य ज कह्युं, (पण) गुण न कह्यो.”... “परिणमनशक्ति द्रव्यथी छे. द्रव्य गुणलक्षणरूपे परिणमे छे, तेथी क्रम-अक्रम स्वभाव द्रव्यनो कह्यो छे.” अने अहीं पण क्रमवर्ती पर्याय अने अक्रमवर्ती गुणोनो समुदाय ते आत्मा एम प्रथम वात करी छे.

जुओ, ध्रौव्य-व्यय-उत्पाद एम त्रणथी आलिंगित सदृश अने विसदृश जेनुं रूप छे एवी परिणामशक्ति परिणमे छे तो परिणति द्रव्यमांथी उठे छे, गुणमांथी नहि. माटे शक्ति अने शक्तिवान एवो जे भेद छे तेनुं लक्ष छोडी दे, केमके भेदना लक्षे सम्यग्दर्शन आदि निर्मळ परिणाम थता नथी. भेद छे ते तो अभेदने बताववा पूरतो छे. तेथी भेदनुं लक्ष छोडी अभेदने ग्रहण कर. अहाहा...! अभेद एकरूप सामान्य अबद्धस्पृष्ट जे ध्रुव स्वभावभाव छे तेनी द्रष्टि करी तेमां ज एकाग्र था; तेथी सम्यग्दर्शन आदि धर्म प्रगट थशे. मारग आ छे भाई!

अहीं द्रव्यद्रष्टि कराववी छे. परिणामशक्ति छे अर्थात् परिणाम द्रव्यनो स्वभाव छे एटले द्रव्यनुं परिणमन थतां तेनी विशेषता-गुणनुं परिणमन-थाय छे, तेथी परिणति द्रव्यथी उठे छे, गुणथी नहि. द्रव्य पोते ज पोतानी विशेषतारूप परिणमी जाय छे. अहाहा...! धर्म करवो होय तो आवी जे पोतानी चीज छे तेनुं ज्ञान भली प्रकार करवुं पडशे भाई! आ तमारां हीरा-मोती ने बाग-बंगला तेमां काम नहि आवे. आ तो फुरसद लईने समजवा जेवी चीज छे बापु!

परिणामशक्ति कही तेमां शक्तिथी परिणति उठती नथी. खरेखर द्रव्य ज द्रवे छे, द्रव्यथी परिणति उठे छे. पंचास्तिकाय गाथा ९मां मूळ पाठमां कह्युं छे के-“ते ते सद्भावपर्यायोने जे दवियदि–द्रवति-द्रवे छे-गच्छदि– गच्छति- पामे छे, तेने (सर्वज्ञो) द्रव्य कहे छे-के जे सत्ताथी अनन्यभूत छे.” आ मूळ पाठ छे. अहीं गुण द्रवे छे एम नथी कह्युं, पण द्रव्य द्रवे छे एम कह्युं छे. श्री जयसेनाचार्यदेवनी टीकामां पण अहींनी माफक ज ‘द्रवति गच्छति’ नो एक अर्थ तो ‘द्रवे छे अर्थात् पामे छे’ एम करवामां आव्यो छे, ते उपरांत ‘द्रवति एटले स्वभावपर्यायोने द्रवे छे अने गच्छति एटले विभावपर्यायोने पामे छे’ एवो बीजो अर्थ पण त्यां करवामां आव्यो छे. अहीं तो द्रव्य शुद्धतारूपे