परिणमे छे एम वात छे, अहीं अशुद्धताना परिणमननी वात ज नथी. परिणमन थाय ते परिणामशक्तिनुं कार्य छे, पण ते परिणमन द्रव्यमांथी उठे छे, गुणमांथी नहि. द्रव्य पोते गुण-लक्षणरूपे परिणमे छे तेथी क्रम-अक्रमस्वभाव द्रव्यनो कह्यो छे. आवी झीणी वात! भाषा तो सरळ छे, पण भाव उंडो गंभीर छे.
द्रवे छे एम कहीने भेदनी वासना मटाडी द्रव्यद्रष्टि करावी छे. पाणीमां जेम तरंग उठे छे तेम वस्तु जे द्रव्य छे तेमां तरंग उठे छे. गुण द्रवे छे, पर्याय द्रवे छे एम कहेवामां आवे छे ते भेदनुं कथन छे. वास्तवमां आनंदनी जे परिणति उठे छे ते आनंद गुणमांथी नहि, द्रव्यमांथी उठे छे. सम्यग्दर्शनरूप निर्मळ श्रद्धाननी जे परिणति उठे छे ते श्रद्धा गुणमांथी नहि पण द्रव्यमांथी उठे छे. श्रद्धा गुण सम्यग्दर्शनरूपे थयो छे ए तो भेदकथन छे. परमार्थे त्रिकाळी द्रव्य जे भगवान आत्मा छे ते सम्यग्दर्शनरूपे परिणत थाय छे. आम गुण परिणमे छे एम न लेता द्रव्य परिणमे छे एम लेवुं परमार्थ छे. भाई! आ तो वीतराग भगवाननो मार्ग! ए तो वीतरागतामय ज होय छे. अहा! ते वीतरागता केम प्राप्त थाय? तो कहे छे-त्रिकाळी शुद्ध जे निज आत्मद्रव्य छे तेनुं लक्ष करी परिणमता वीतरागता प्राप्त थाय छे. आवो मारग जेम छे तेम यथार्थ जाणवो-समजवो जोईए. अहा! आत्मा एक समयमां अनंत स्वभावनो सागर छे. तेनो आश्रय लेता अनंत शक्तिना परिणमन सहित द्रव्य-आत्मा उछळे छे; तेने परिणामशक्ति कार्यरूप-परिणत थई एम भेदथी कहेवामां आवे छे.
प्रश्नः– हवे आवो नवो मारग कयांथी काढयो? उत्तरः– आ नवो मारग नथी भाई! आ तो अनंता तीर्थंकरोए दिव्यध्वनि द्वारा बतावेली वात छे. अने ते परंपराए अनादिथी प्रवाहरूपे चाली आवी छे. आ वात हमणां चालती न हती अने अहींथी प्रसिद्धिमां आवी तेथी नवी लागे छे.
प्रश्नः– शुं आवुं समज्या विना धर्म न थाय? उत्तरः– भाई! प्रथम धर्म शुं छे, ने ते केम थाय ते बधुं जाणवुं-समजवुं जोईए. तत्त्वनी वास्तविक समजण कर्या विना तत्त्वद्रष्टि-अंतर्मुख द्रष्टि केवी रीते थाय? अने अंतर्मुख द्रष्टि थया विना धर्म केवी रीते थाय? अनंत काळनां दुःख मटाडवानो उपाय तो बराबर जाणवो जोईए ने?
प्रश्नः– तो शुं तिर्यंच समकित पामे तेने आवुं बधुं ज्ञान होय छे? उत्तरः– हा, तिर्यंचोने सम्यग्दर्शन थतां साते तत्त्वोनुं ज्ञान-श्रद्धान थई जाय छे. मारुं द्रव्य जे आ पूर्ण आनंदस्वरूप छे ते हुं जीवतत्त्व छुं, दुःखनुं वेदन ते आस्रव, बंध छे; आ आनंदनुं वेदन थयुं ते संवर, निर्जरा छे. आम, शब्दोनुं भले तेने ज्ञान न होय तो पण, भावनुं भासन तिर्यंच सम्यग्द्रष्टिने पण बराबर होय छे. मोक्षमार्ग प्रकाशकमां आ विषयनो खुलासो कर्यो छे. भोगभूमिमां क्षायिक समकिती तिर्यंचो छे तेमने सात तत्त्वना भावनुं भासन यथार्थ होय छे. सम्यग्दर्शन थवा पहेलां तिर्यंचना आयुष्यनो बंध पडी गयो होय तो ते जीव भोगभूमिनो तिर्यंच थाय छे. ते क्षायिक समकित लईने पण तिर्यंचमां जाय छे. हवे ते जीवने त्यां कदाच सात तत्त्वना नामनी खबर न होय पण, साते तत्त्वोना भावनुं यथार्थ भासन तो होय छे.
द्रव्य सत्, गुण सत् अने पर्याय सत् एम ते त्रणे सत् कहेवाय, पण वास्तवमां सत् त्रण नथी, त्रणे मळीने एक सत् छे. सत् द्रव्यनुं लक्षण छे. अहाहा...! ध्रौव्य-व्यय-उत्पादथी आलिंगित सत् द्रव्यनुं लक्षण छे. आ रीते जगतनां सर्व द्रव्यो सत् छे. तेथी सर्व द्रव्योनुं टकीने बदलवापणुं छे ते पोतपोताना स्वभावथी ज छे, कोईना कारणे बीजा कोईनुं बदलवापणुं छे ज नहि. आ प्रमाणे स्व-परनी सत्ता भिन्न-भिन्न होवा छतां, परवस्तुना कार्यो हुं करुं छुं एम जे माने छे ते परवस्तुनी स्वतंत्र सत्तानो इन्कार करी, परने पोताने आधीन मानी तेनी स्वाधीनताने हणवा इच्छे छे. पण अरे, परवस्तु तेने आधीन थईने परिणमती नथी. परिणामे अज्ञानी जीव परना आश्रये परिणमतो थको आकुळ-व्याकुळ थई पोतानी सत्ताने ज हणे छे. अज्ञानी परनी सत्तामां घालमेल करवा जाय छे, पण एम बनवुं संभवित नथी, तेथी त्यां विसंवाद ऊभो थाय छे, तेनी शांति हणाय छे, तेने अशांति अने दुःखपूर्ण संसार ज फळे छे. आ प्रमाणे तत्त्वना वास्तविक स्वरूपने जाण्या विना जीव दुःखी थाय छे.