“आत्मद्रव्य ज्ञाननये विवेकनी प्रधानताथी सिद्धि सधाय एवुं छे.” आ बन्ने धर्मो आत्मामां एकी साथे छे. एक जीवने क्रियाथी मोक्ष थाय ने बीजा जीवने ज्ञानथी मोक्ष थाय एम बनतुं नथी. तेम ज जीवने कोईवार क्रियाथी अने कोईवार ज्ञानथी मोक्ष थाय एम पण बनतुं नथी. बन्ने धर्मो द्रव्यमां एकी साथे होय छे; मात्र विवक्षाभेद छे.
अहीं अकर्तृत्वशक्तिनुं वर्णन चाले छे. कर्मो द्वारा करवामां आवेला विकारी परिणामना करवाना अभावस्वरूप अकर्तृत्वशक्ति छे. विकारना परिणाम कर्म-निमित्तना आश्रये थाय छे तेथी कर्मो द्वारा करवामां आवेला परिणाम-एम कह्युं छे. विकार कांई स्वभावना आश्रये थतो नथी, ने आत्मामां विकार करवानो कोई स्वभाव-शक्ति नथी. पर्यायमां विकार थाय छे ते शक्तिनुं कार्य नथी. तेथी दया, दान आदि विकारना परिणामने कर्मथी करवामां आवेला परिणाम कह्या छे.
पंचास्तिकायनी गाथा ६२मां विकार पोतानी पर्यायना षट्कारकथी उत्पन्न थाय छे एम कह्युं छे. मतलब के एक समयनी पर्यायमां थती मिथ्यात्व अने रागद्वेषरूप विकृति पोतानी पर्यायना षट्कारकथी थाय छे, परना कारणे नहि ने पोताना द्रव्य-गुणना कारणेय नहि.
त्यारे समयसारनी कर्ताकर्म अधिकारनी गाथा ७प-७६-७७मां एम कह्युं छे के धर्मीने पोतानो पूर्ण स्वभावद्रष्टिमां आवतां जे निर्मळ परिणाम प्रगट थया छे ते तेनुं व्याप्य छे अने आत्मा तेनो व्यापक छे. परंतु तेने (-धर्मीने) जे विकार बाकी छे ते विकार तेनुं व्याप्य नथी. त्यां, विकार छे ते व्याप्य छे अने पुद्गल कर्म तेने व्यापक छे एम कह्युं छे. ए तो त्यां विकारथी भिन्न त्रिकाळी द्रव्य स्वभाव सिद्ध करवो छे माटे एम कह्युं छे. राग स्वभावभूत नथी, पुद्गल कर्मना संगमां थाय छे ने तेनो संग मटी जतां मटी जाय छे तेथी तेने पुद्गल कर्मनुं व्याप्यकर्म कह्युं छे.
कळश टीका, कळश ६८मां कह्युं छे के-राग-द्वेष-मोहना परिणाम व्याप्य छे अने मिथ्याद्रष्टि जीव तेमां व्यापक छे. तेथी ते मिथ्याद्रष्टि जीव अशुद्ध चेतनपरिणामोनो कर्ता छे. अज्ञानी जीव विकारमां तन्मय थईने परिणमे छे तेथी ते विकारनो कर्ता थाय छे. भाई! कई अपेक्षाथी कयां शुं कथन कर्युं छे ते ध्यानमां राखीने तेना अर्थ समजवा जोईए. अहीं कहे छे-विकारना परिणाम कर्म द्वारा करवामां आव्या छे. अहीं स्वभावना परिणामनुं वर्णन छे ने! तेथी विभावने कर्मना उदयना निमित्ताधीन भाव गणी तेने कर्मो द्वारा करवामां आवेला परिणाम कह्या छे. आम ज्यां जे अपेक्षाथी कथन होय त्यां ते यथार्थ समजवुं जोईए. शास्त्रमां आवे छे के दरेक कथनना पांच प्रकारथी अर्थ करी तेने यथार्थपणे समजवुं. १. शब्दार्थ, २. आगमार्थ, ३. मतार्थ, ४. नयार्थ, अने प. भावार्थ-आम पांच प्रकारे अर्थ करी कथनने यथार्थ जाणवुं.
भगवान आत्मा शुद्ध ज्ञायकमात्र वस्तु छे. तेना सन्मुखनो अनुभव थतां ज्ञान अने आनंदनी निर्मळ दशा प्रगट थाय छे, तेना भेगी अनंत शक्तिओ पण उछळे छे, पण विकारना परिणाम भेगा समाता नथी, केमके विकार परिणामना उपरमस्वरूप भगवान आत्मानो अकर्ता स्वभाव छे. अक्रमे प्रवर्तता गुणो ने क्रमवर्ती निर्मळ पर्यायो-ए बन्नेनो समुदाय तेने अहीं आत्मा कह्यो छे. दया, दान, व्रत, भक्ति, पूजाना परिणाम कर्मथी करवामां आवेला विकृत परिणाम छे, ते ज्ञातृत्वमात्रथी भिन्न परिणाम छे अने तेनाथी (तेने करवाथी) ज्ञानी निवृत्तस्वरूप छे; अर्थात् ज्ञानी ज्ञातापणा सिवायना कर्मथी करवामां आवता परिणामोनो कर्ता नथी.
प्रश्नः– आमां तो आप पुण्यने उडावो छो? उत्तरः– एम नथी भाई! आमां तो विकार रहित तारा एक ज्ञायकस्वभावनी प्रसिद्धि थाय छे. तारा स्वभावनो महिमा लावी प्रसन्न था. स्वभावनी समजणना काळे तने जे पुण्य बंधाशे ते पण बहु उंचां हशे. वळी निज स्वभावने समजीने पुण्य-पापना विच्छेदरूप परिणमे तो तो शुं वात छे! तो वीतरागता ने केवळज्ञान थशे; अने ते तो कर्तव्य ज छे, इष्ट ज छे. समजाणुं कांई...?
अहाहा...! अनंत शक्तिना धारक भगवान आत्मानी अंतर्द्रष्टि करी तेनो ज्यां आश्रय लीधो त्यां धर्मी विकारना-रागना परिणामथी निवृत्तस्वरूप छे; विकारमां ज्ञानी प्रवृत्तस्वरूप नथी; माटे ज्ञानीने विकारनुं कर्तृत्व नथी. मारग बहु जुदो छे भाई! अहाहा...! जेना फळमां अनंत काळ पर्यंत रहे एवा अनंत चतुष्टय-अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख ने अनंत वीर्य प्रगटे अहाहा...! तेनो उपाय कोई अनुपम अलौकिक होय छे. अहाहा...! आवो वीतरागनो लोकोत्तर मारग कोई महा भाग्यशाळी होय तेने प्राप्त थाय छे. बाकी लोको तो व्रत करो ने दान करो ने तप करो-एम पुण्य