तो पण प्रदेशोनी संख्या वधती नथी. जीवना प्रदेशोनी संख्या तो त्रणे काळ एटली ने एटली-असंख्य रहे छे.
जीव सिद्धदशाने प्राप्त थतां तेनी अवगाहना छेल्ला शरीरथी किंचित् न्यून जेटली रहे छे. आ अवगाहना सादि-अनंत काळ रहे छे. संसारदशामां असंख्य प्रदेशोनो संकोचविस्तार थाय छे ते जाणवालायक छे. संसारदशामां एकरूप अवगाहना रहेती नथी. कपडाने संकेली लेतां तेना प्रदेशनी संख्या घटती नथी, ने कपडाने पहोळुं-खुल्लुं करतां तेना प्रदेशोनी संख्या वधती नथी; प्रदेश जेटला छे तेटला ज रहे छे.
जुओ, निगोदियानुं शरीर अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटलुं होय छे अने एक शरीरमां अनंता निगोदना जीव होय छे. केटला? अनंता. छ मास अने आठ समयमां छसो ने आठ जीवो मुक्ति पामे छे. अनादिथी आज सुधीमां अनंत पुद्गल परावर्तन काळ व्यतीत थयो. ते काळमां अनंता जीव मोक्षदशाने पाम्या छे. अहा! तेमनी संख्या करतां निगोदना एक शरीरमांना जीवनी संख्या अनंतगुणी छे. त्यां निगोदमां जीवना प्रदेशो संकोचाई गया छे.
तो शुं जीवनो एक प्रदेश जेटलो छे तेनाथी संकोचाई जाय छे? ना, एम वात नथी. त्यां एकेक प्रदेशमां संकोच थाय छे एम वात नथी. प्रदेशमां संकोच थतो नथी. प्रदेश तो अविभागी अंश छे, ते जेवडो छे तेवडो ज छे, तेमां संकोच न थाय; परंतु संसारदशामां जीवना प्रदेशो संकेलाय अथवा विस्तृत थाय छे. सर्व प्रदेशोनी अवगाहना ओछी-वत्ती थाय छे, प्रदेशो तो छे तेटला ज नियत रहे, अने प्रदेश पण जेवडो छे तेवडो ज रहे छे, मात्र प्रदेशो संकेलाई परस्पर अवगाहना पामे छे अथवा विस्तृत थाय छे. प्रदेशोनी संख्या तो नियत असंख्य ज रहे छे. हवे आवी वात एक सर्वज्ञना मारग सिवाय बीजे कयां छे भाई? जीवना असंख्यप्रदेशी क्षेत्रनी वात बीजे कयांय छे ज नहि.
वेदांत वगेरे अन्यमतमां आत्मा शुद्ध चैतन्य छे एम वात करी छे, पण तेनुं स्वरूप त्यां बराबर बताव्युं नथी. श्रीमद् राजचंद्रजीए वेदांतना एक अभ्यासीने पत्र लखेल छे के-“आपणे पदार्थनी व्याख्या चार प्रकारे करी शकीए. कोई पण पदार्थमां द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भाव आवा चार अंश होय छे. आत्मामां पण द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भाव एम चार बोल उतारवा जोईए.” आत्मा द्रव्ये एक छे, क्षेत्रथी असंख्य प्रदेशी छे, काळथी त्रिकाळी अथवा एक समयनी अवस्थारूप अने भावथी अनंत गुणमय छे. अन्यमतवाळा आवा चार भेद मानता नथी. तेओ आत्माने मात्र एक, सर्वव्यापक, शुद्ध चैतन्यमय, अभेद माने छे, पण ए तो कथनमात्र छे, आत्माना वास्तविक स्वरूपनी तेओने खबर नथी.
अहीं कहे छे-आत्मा असंख्य प्रदेशी छे. संसारदशामां तेना प्रदेशोनो संकोचविस्तार थाय छे. (एक) प्रदेश संकोचातो के पहोळो थतो नथी, पण प्रदेशोनो परस्पर अवगाहनारूप संकोच-विस्तार थाय छे. मुक्त थतां जीव आखरना शरीरना परिमाणथी कांईक न्यून परिमाणे अवस्थित थाय छे, अने आ अवगाहना सादि-अनंतकाळ अवस्थित रहे छे.
लोकाकाशना जेटला असंख्य प्रदेशो छे, धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकायना जेटला असंख्य प्रदेशो छे, तेटला प्रदेशोनी संख्या एक जीवनी होय छे. लोकाकाश-प्रमाण जीव व्याप्त नथी, पण लोकाकाशना जेटला-असंख्य प्रदेशो छे तेटला एक जीवना प्रदेशो छे. आत्मा अवयवी छे, ने प्रदेश तेना अवयव छे, जेम शरीर अवयवी छे अने हाथपग तेना अवयव छे तेम; जेम श्रुतज्ञान प्रमाण ते अवयवी अने निश्चय-व्यवहारनय तेना अवयव छे तेम.
श्रुतज्ञान प्रमाणमां ज्यारे आत्मानो अनुभव थाय छे त्यारे ते श्रुतज्ञाननी पर्याय-के जे प्रमाण छे ते- अवयवी छे, अने तेना निश्चय अने व्यवहारनय-एम भेद पडे ते अवयव छे. भावश्रुतज्ञान ते पर्याय छे. ते पर्यायने अखंड गणीने तेने अवयवी कहे छे अने निश्चय-व्यवहारना भेदने अवयव कहे छे. तेम भगवान आत्मा एक छे ते अवयवी छे अने असंख्य प्रदेश तेना अवयव छे. हाथ, पग, मोढुं, नाक कान इत्यादि शरीरना अवयव छे ते जड छे, ते आत्माना अवयव नथी. शरीर अने शरीरना अवयवथी पोते भिन्न छे, अने पोताथी ए बधा भिन्न छे; पण अज्ञानी जीव आवुं भेदज्ञान करतो नथी, ने स्वपरनो खीचडो करे छे तेथी ते चतुर्गति-परिभ्रमण कर्या करे छे.
आत्माना असंख्य प्रदेशी क्षेत्रमां प्रदेशे प्रदेशे अनंत गुण व्यापक छे, तेने शास्त्रमां तिर्यक् प्रचय कहे छे. तेना एक प्रदेशमां बीजा प्रदेशनो अभाव छे. भाई! आम मानीए तो ज असंख्य प्रदेशनी सिद्धि थाय. एक प्रदेशमां ज्यां एक गुण छे त्यां बीजा अनंता गुण पण व्यापक छे. असंख्य प्रदेशी आखा क्षेत्रमां दरेक प्रदेशे अनंत गुण रहेला छे. आत्मा तो अनंत गुणोनो पाटलो छे भाई; जेम सोनानो पाटलो होय छे तेम आत्मा अनंत गुणनो एक पिंड छे. हवे, पोतानुं घर-पोतानुं क्षेत्र केवुं अने केवडुं छे एनो कदी विचार ज कर्यो नथी! पोताना असंख्यप्रदेशी क्षेत्रमां गुणो केवा