Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१२४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ शरीरनी अवस्था ते हुं नहि’-आवुं (स्वसंवेदन) ज्ञान ते निर्मळ भेदज्ञान छे. इन्द्रियो पर अने हुं स्व-एम एकलुं विकल्प द्वारा धारी राखवुं ते कांई निर्मळ भेदज्ञान नथी.

आ जीव धर्म केम पामे एनी अहीं वात करे छे. जोके वात क्रमे समजावे छे पण अंदरमां क्रम नथी. समजाववामां क्रम पडे छे, पण ज्यारे भिन्न पडे छे त्यारे एकीसाथे भिन्न थाय छे. निर्मळ भेद-अभ्यास एटले परथी भेद पाडवानो अभ्यास. ते निर्मळ भेद-अभ्यासनी प्रवीणताथी एटले के ज्ञाननी पर्यायने ज्ञायक तरफ ढाळवाथी अंदरमां प्रगट जे अतिसूक्ष्म चैतन्यस्वभाव ते प्राप्त थाय छे. अने तेना अवलंबनना बळथी द्रव्येन्द्रियोने सर्वथा पोताथी जुदी कराय छे. कथंचित् जुदी कराय छे एम नहि, सर्वथा जुदी कराय छे. शरीर परिणामने प्राप्त द्रव्येन्द्रियो अति स्थूळ अने जड छे. अने निर्मळ भेद-अभ्यासनी प्रवीणताथी प्राप्त अंतरंगमां प्रगट जे द्रव्यस्वभाव ते अति सूक्ष्म अने चैतन्यस्वरूप छे. आवा अंतरंगमां प्रगट अति सूक्ष्म चैतन्यस्वभावना अवलंबनना बळ वडे द्रव्येन्द्रियोने जुदी पाडवामां आवे छे. आ सम्यग्दर्शन पामवानी कळा छे. आवी वात सांभळवा मळे नहि अने बिचारा अहोनिश वेपार-धंधामां मशगुल रहे ते धर्म केम करी पामे? अरे! आत्माना ज्ञान विना जिंदगी चाली जाय छे!

अनादिथी अज्ञानी जड शरीरने अने आत्माने एकपणे माने छे. तेने श्रीगुरु कहे छे के-प्रभु! तुं (आत्मा) तेनाथी (इन्द्रियोथी) भिन्न छे. त्यां श्रीगुरुनी वात धारणामां लई ते अंतरमां एकाग्र थवानो प्रयोग करे छे. अतिसूक्ष्म चैतन्यस्वभाव अंदरमां वस्तु तरीके जे प्रगट छे तेने निर्मळ भेद-अभ्यासथी प्राप्त करी तेमां एकाग्र थतां, तेनो आश्रय करतां द्रव्येन्द्रियो सर्वथा जुदी पडे छे. आ सम्यग्दर्शन एटले धर्मनुं पहेलुं पगथियुं प्राप्त करवानी रीत छे. जुओ, केटली वात करी छे? एक तो कर्मना उद्रयने वश थवाथी विकार-मिथ्याभाव थाय छे. ते वडे जीव पोताने अने द्रव्येन्द्रियोने एकपणे माने छे पण जुदाई मानतो नथी. बीजुं शरीर परिणामने प्राप्त जड इन्द्रियोने पोताथी जुदी पाडवानो अभ्यास ते निर्मळ भेदज्ञान छे. आवा निर्मळ भेदज्ञान वडे प्राप्त अंतरंगमां प्रगट अतिसूक्ष्म चैतन्यस्वभावमां एकाग्र थतां द्रव्येन्द्रियो जुदी पडी जाय छे. आ धर्म पामवानी रीत छे.

अतिसूक्ष्म चैतन्यस्वभाव अंदरमां वस्तु तरीके प्रगट छे. गाथा ४९ मां तेने अव्यक्त कह्यो छे. त्यां तो पर्याय जे व्यक्त छे तेनी अपेक्षाए अव्यक्त कह्यो छे. वस्तु तरीके तो ते प्रगट, सत्, मोजूद, अस्तिपणे विद्यमान छे. आवा अंतरंगमां विद्यमान अतिसूक्ष्म चैतन्यस्वभावना अवलंबन-आश्रय वडे द्रव्येन्द्रियोने पोताथी सर्वथा जुदी करवी तेने द्रव्येन्द्रियोनुं जीतवुं कहेवाय छे. कानमां खीला नाखवा के आंखो बंध करी देवी इत्यादि