Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 406 of 4199

 

गाथा ३१ ] [ १२प कांई जितेन्द्रियपणुं नथी. हजी द्रव्येन्द्रियो कोने कहेवाय एनी पण खबर नथी ते इन्द्रियोने जीते शी रीते?

हवे भावेन्द्रियोने जीतवानी वात करे छे. जुदा जुदा पोतपोताना विषयोमां व्यापारपणाथी जेओ विषयोने खंडखंड ग्रहण करे छे ते भावेन्द्रियो छे. काननो उघाड शब्दने जाणे, आंखनो क्षयोपशम रूपने जाणे, स्पर्शनो उघाड स्पर्शने जाणे इत्यादि पोतपोताना विषयोमां व्यापार करी जे विषयोने खंडखंड ग्रहण करे छे ते भावेन्द्रियो छे. आ बाह्य इन्द्रियोनी वात नथी. एक एक इन्द्रिय पोतपोतानो व्यापार करे छे तेथी ज्ञानने ते खंडखंडरूप जणावे छे. जेम द्रव्येन्द्रियो अने आत्माने एकपणे मानवां ते अज्ञान छे तेम ज्ञानने खंडखंडरूपे जणावनार भावेन्द्रियो अने ज्ञायकने एकपणे मानवां ए पण मिथ्यात्व छे, अज्ञान छे. जुदा जुदा पोतपोताना विषयोने जे खंडखंड ग्रहण करे छे अने अखंड एकरूप ज्ञायकने जे खंडखंडरूपे जणावे छे ते भावेन्द्रियोनी ज्ञायक आत्मा साथे एक्ता करवी ते मिथ्यात्व छे.

द्रव्येन्द्रियो छे ते शरीरपरिणामने प्राप्त छे, ज्यारे भावेन्द्रियो ज्ञानना खंडखंड परिणामने प्राप्त छे. जे ज्ञान एक एक विषयने जणावे, ज्ञानने खंडखंडरूपे जणावे, अंशी (ज्ञायक) ने पर्यायमां खंडरूपे जणावे ते भावेन्द्रियो छे. जेम जड द्रव्येन्द्रियो ज्ञायकनुं परज्ञेय छे तेम भावेन्द्रियो पण ज्ञायकनुं परज्ञेय छे. अहीं ज्ञेय-ज्ञायकना संकर-दोषनो परिहार करावे छे. जेम शरीर परिणामने प्राप्त जड इन्द्रियो ज्ञेय अने आत्मा ज्ञायक भिन्न छे तेम भावेन्द्रियो पण परज्ञेय छे अने आत्मा ज्ञायक भिन्न छे. अहाहा! एक एक विषयने जाणनार ज्ञाननो क्षयोपशम तथा अखंड ज्ञानने खंडखंडपणे जणावनार भावेन्द्रिय ते ज्ञायकनुं परज्ञेय छे अने ज्ञायक प्रभु आत्माथी भिन्न छे. आमां अखंड एक चैतन्यशक्तिपणानी प्रतीतिनुं जोर लीधुं छे. पहेलां द्रव्येन्द्रियोने भिन्न करवामां एना (ज्ञायकभावना) अवलंबननुं बळ लीधुं छे. ज्ञायकभाव एक अने अखंड छे, ज्यारे भावेन्द्रिय अनेक अने खंडखंडरूप छे. अखंड एक ज्ञायकभावरूप चैतन्यशक्तिनी प्रतीति थतां अनेक अने खंडखंडरूप भावेन्द्रिय जुदी थाय छे-भिन्न जणाय छे. आ रीते अखंड ज्ञायकभावनी प्रतीति वडे ज्ञानने खंडखंडरूप जणावनार परज्ञेयरूप भावेन्द्रियने सर्वथा जुदी करवी ए भावेन्द्रियोनुं जीतवुं छे एम कहेवाय छे.

आ गाथामां ज्ञेय-ज्ञायकना संकरदोषना परिहारनी वात छे. शरीर परिणामने प्राप्त जड इन्द्रियो परज्ञेय होवा छतां ते मारी छे एवी एकत्वबुद्धि ते मिथ्यात्वभाव, संकर-खीचडो छे. जेनी आवी मान्यता छे तेणे जडनी पर्याय अने चैतन्यथी पर्यायने एक करी छे. तेवी रीते एक एक विषय (शब्द, रस, रूप, इत्यादि) जाणवानी योग्यतावाळो क्षयोपशमभाव ते भावेन्द्रिय छे. ते पण खरेखर परज्ञेय छे. परज्ञेय अने