तो धर्मकथा छे बापु! सावधान थईने समजवुं.
युक्ति, आगम अने अनुभवथी भगवान आत्मा ने तेना अनंत धर्मोनो यथार्थ निर्णय थाय छे. परंतु जेओ स्वसन्मुख थई आत्मवस्तुनो निर्णय करता नथी तेमने अनंत धर्मोनो निश्चय थतो नथी. तेमने अनंतशक्तिमय आत्मा त्रिकाळ विद्यमान होवा छतां नहि होवा बराबर ज छे, केमके तेमने शक्तिओ उल्लसती नथी, ज्ञान उल्लसतुं नथी, आनंद उल्लसतो नथी. समजाय छे कांई...? अहो! ‘हुं तो अनंत धर्ममय एकभावस्वरूप ज्ञायकमात्र आत्मा छुं, -आम निर्णय करी ज्यां अंतर्मुख थयो त्यां अंतःपुरुषार्थनी जागृतिपूर्वक शक्तिओ पर्यायमां उल्लसे छे, अने तेनो भेगो एकरस स्वानुभवमां-वेदनमां आवे छे. आनुं नाम सम्यग्दर्शन- सम्यग्ज्ञान छे, अने आ मारग छे.
शक्ति-गुण तो त्रिकाळ छे, ने तेनी पर्याय क्रमवर्ती प्रगट थाय छे. आ क्रमवर्ती पर्यायो ने अक्रमवर्ती गुणो-ए बधुं मळीने अहीं आत्मा कह्यो छे. तेमां विकारनी वात नथी, केमके शक्ति छे ते निर्मळ छे, ने शक्तिवान द्रव्य जे छे तेय निर्मळ शुद्ध छे, तथा त्रिकाळी शुद्ध द्रव्यनुं भान थतां जे पर्यायो प्रगट थई ते पण निर्मळ छे, तेमां विकार समातो नथी. विकारनो तो निर्मळ पर्यायमां अभाव छे. आनुं नाम स्याद्वाद, अने आ अनेकान्त छे. हवे लोकोने द्रव्य-गुण-पर्याय शुं? ए कांई खबर न मळे अने परनां-शरीर, महेल-मकाननां ने कुटुंबनां ने समाजनां- काम हुं करुं एम अभिमान कर्या करे छे. पण ए तो संसार परिभ्रमणनो मारग छे बापु! परनां काम करे एवी तारी वस्तु ज नथी भगवान! ने राग करे एय तारो स्वभाव नथी.
प्रश्नः– तो शुं कुंभार घडो करतो नथी? उत्तरः– ना, कुंभार घडो करतो नथी; घडो थाय छे ते माटीथी थाय छे, कुंभारथी थतो नथी. कुंभारमां घडो करवानी कर्तृत्वशक्ति छे एम केटलाक कहे छे, पण ते बराबर नथी, सत्य नथी. समयसार, गाथा ३७२ मां आचार्यदेव पोकारीने कहे छे-कुंभारथी घडो थाय छे एम अमे देखता नथी; माटीथी घडो थाय छे एम अमे देखीए छीए. भाई! आ तो वस्तु ज आवी छे; अने जैनदर्शन तो वस्तुदर्शन छे, ए कांई वाडानी-संप्रदायनी चीज नथी.
हा, पण कुंभार निमित्त तो छे ने? भाई! निमित्त छे एनो अर्थ शुं? निमित्त छे एटले ज कर्ता नथी एम एनो अर्थ छे. निमित्तथी कार्य थाय एवी मान्यता ते जैनदर्शन नथी. निमित्त तो परद्रव्य छे, अने उपादान तेनाथी भिन्नस्वरूप छे. तेथी निमित्त उपादाननुं कांई ज करतुं नथी, केमके परद्रव्यनी पर्याय बीजा परद्रव्य वडे थती नथी. कार्यकाळे निमित्त छे, बस एटलुं.
अहा! पोतामां अनंतधर्मत्वशक्ति त्रिकाळ विद्यमान छे; तेनुं परिणमन पोताथी थाय छे. पोतामां निर्मळ पर्यायने करे एवो कर्ता नामनो गुण छे. शुं कीधुं? ज्ञान, आनंद, प्रभुता इत्यादि अनंत गुणनी पर्यायनो कर्ता थाय एवो कर्ता नामनो पोतामां गुण छे, ने ते अनंत गुणमां व्यापक छे. आ रीते शक्ति पोते ज पोताथी परिणमे छे. हवे आम छे त्यां परद्रव्य परद्रव्यनुं करे ए वात कयां रहे छे?
प्रवचनसार, गाथा १०२ मां आवे छे के-प्रत्येक पर्यायनी जन्मक्षण अर्थात् उत्पत्तिनो काळ छे, अने त्यारे ते (पर्याय) उत्पन्न थाय छे. हवे आमां निमित्त करे छे ए कयां रह्युं? चिद्विलासमां निश्चय-व्यवहारना अधिकारमां वात लीधी छे के-जे समये जे पर्याय थवानी होय ते समये ते ज थाय ते निश्चय छे.
प्रश्नः– बधुं होनहार छे तो आपणे शुं करवानुं रह्युं? उत्तरः– कांई ज नहि; पण होनहारनो निर्णय कयारे थाय? त्रिकाळी एक ज्ञायकभाव सन्मुखनो अंतःपुरुषार्थ करे त्यारे होनहारनो साचो निर्णय थाय छे. थवावाळी पर्याय तो ते ज समये (थवाकाळे ज) थाय छे, पण ते होनहारनो निर्णय द्रव्यसन्मुखनी द्रष्टिना पुरुषार्थथी थाय छे. ल्यो, आ करवानुं छे; शुं? के द्रव्यसन्मुखनी द्रष्टिनो पुरुषार्थ. आवी वात!
अमारे संप्रदायमां सं. १९७२मां आ प्रश्ने खूब चर्चा थयेली. प्रश्न एम थयेलो के-भगवाने केवळज्ञानमां दीठुं हशे एम थशे, आपणो पुरुषार्थ शुं काम करी शके?
अमे बे वर्ष आवी वात सांभळी, पण अमने आ वात खटकती हती; तो अमे त्यारे कहेलुं-भगवाने केवळज्ञानमां दीठुं छे एम थशे ए वात तो एम ज बराबर छे, पण केवळज्ञाननुं स्वरूप शुं छे एनुं श्रद्धान छे के नहि? अहाहा...!