परिणमन बताव्युं छे, जीवनी पर्यायमां विकार पोताथी स्वतंत्र उत्पन्न थाय छे एम त्यां ‘अस्ति’ सिद्ध कर्युं छे. समजाणुं कांई...?
अत्यारे तो प्ररूपणा ज आवी उलटी थई गई छे के-व्रत पाळो, ने दया करो ने दान करो इत्यादि; पण ए तो बधो राग-विकल्प छे भाई! तारी चीज चैतन्यरत्नाकर तो अंदर कोई जुदी ज अलौकिक छे. अहाहा...! अनंत चैतन्य गुणरत्नोनो अंदर भंडार भर्यो छे. रागनी कर्ताबुद्धिमां ए भंडारनुं ताळुं बंध थई गयुं छे. ते खूले केम? तो कहे छे -राग उपरनी बुद्धि छोडी दे, अनंत स्वभावोना भेदनुं लक्ष छोडी दे, ने एकरूप-एक ज्ञायकभावरूप अंदर पोते छे तेमां द्रष्टि लगावी दे; खजाना खूली जशे, ने अद्भुत आह्लादकारी आनंद प्रगटशे.
समयसार, पांचमी गाथामां कह्युं छे ने के-
जदि दाएज्ज पमाणं चुक्केज्ज छलं ण घेत्तव्वं।।
अहाहा...! आचार्य कहे छे-भगवान सर्वज्ञदेवनी दिव्यध्वनिमां पोताना स्वभावथी एकत्व अने रागादि विकारथी विभक्त एवुं भगवान आत्मानुं स्वरूप आव्युं छे, अने एवुं ज अमे प्रत्यक्ष अनुभव करी जाण्युं छे. माटे हे शिष्य! तुं अनुभवमां स्वसंवेदन वडे प्रमाण कर. ल्यो, आम स्वसंवेदनमां भगवान आत्मा रागथी भिन्न एकत्वविभक्तस्वरूप अनुभवाय छे.
आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, ते ज्ञानथी प्राप्त थाय छे. वळी ते आनंदस्वरूप छे, तेथी आनंदनी पर्यायथी ते प्राप्त थाय छे. प्रभुत्वशक्तिथी आत्मा भर्यो पडयो छे तो प्रभुत्वनी पर्यायथी तेनी प्रभुतानुं भान थाय छे; आत्मा अकर्तृत्वशक्तिथी भर्यो छे, तेथी पर्यायमां रागना अकर्तापणे ने ज्ञानना कर्तापणे ते अनुभवाय छे. अभोक्तृत्व नामनो आत्मानो गुण छे, तो रागनुं अभोक्तृत्व अने आनंदना भोगवटाथी आखुंय द्रव्य अभोक्तास्वरूप अनुभवाय छे. आवी वात! अरे! लोकोए मार्गने वींखी नाख्यो छे. आवुं सत्य बहार आव्युं तो आ एकान्त छे, एकान्त छे एम राडो पाडी विरोध करवा मांडी पडया छे. पण भाई! जो तुं सर्वज्ञने माने, केवळज्ञानने माने तो निमित्तथी उपादाननुं कार्य थाय, व्यवहारथी निश्चय थाय ने द्रव्यनी पर्यायो सक्रम-अनियत पण थाय ए बधी विपरीत मान्यताओ सहेजे उडी जाय छे, अर्थात् एवी मान्यताओने कोई अवकाश ज नथी.
अहा! आत्मा अनंतधर्मस्वरूप एक छे; तेमां राग नथी, विभाव नथी. अहाहा...! पोते ज पोताने तारनारो अचिन्त्य देव छे; बीजो कोई तारनार नथी. अरे भाई! पोतानो स्वभाव शुं? ने देव-गुरु-धर्मनुं स्वरूप शुं?-ते यथार्थ समज्या विना, तेनी ओळखाण कर्या विना तुं कोना जोरे तरीश? उंधी मान्यता ने कुदेव-कुगुरु- कुधर्मनुं सेवन तो तने संसार समुद्रमां डुबाडनार ज छे. हे भाई! तुं पोते ज कल्याणस्वरूप छो, पोते ज पोतानी निर्मळ पर्यायोनी सृष्टिनो स्रष्टा छो, ने पोते ज पोतानो रक्षक छो. भगवान तो कहे छे-अमारा जेवा बधाय धर्मो तारा स्वरूपमां भर्या छे, तेनो अंतरमां स्वीकार कर ने भगवान थई जा. ल्यो, आवो मारग छे. अंदरमां स्वस्वरूपनो स्वीकार ते मारग छे, ने अस्वीकार ते अमार्ग छे.
अहीं शक्तिना वर्णनमां शक्तिने धरनारुं द्रव्य ते पवित्र छे, शक्ति पवित्र छे, ने तेनी परिणति पण पवित्र छे. निर्मळ पर्यायने ज अहीं शक्तिनी पर्याय गणवामां आवी छे, ने शुभाशुभ रागनो-विकारनो तेमां अभाव छे. आनुं नाम अनेकान्त छे. लोको समज्या विना विरोध करे छे. पण निश्चयथी अर्थात् शुद्धभावथी पण पर्याय शुद्ध थाय ने शुभरागरूप व्यवहारथी पण शुद्ध पर्याय प्रगट थाय एवुं वस्तुस्वरूप नथी, ए अनेकान्त नथी, पण मिथ्या अनेकान्त छे. मोक्षमार्ग प्रकाशकना सातमा अधिकारमां निश्चयाभास अने व्यवहाराभासनुं वर्णन कर्युं छे तेमां आ वात बहु स्पष्ट आवी छे. अनेकान्त पण बे प्रकारे छेः सम्यक् अनेकान्त अने मिथ्या अनेकान्त. तेवी रीते सम्यक् एकान्त अने मिथ्या एकान्त एम एकान्त पण बे प्रकारे छे.
भाई! एकेक शक्तिना परिणमनमां व्यवहारनो-रागनो अभाव छे, आ अनेकान्त छे. आ ख्यालमां राखवा जेवी वात छे. गामे गाम अने घेरघेर आ वात पहोंचाडवा जेवी छे. स्वरूपना परिणमननी अस्तिमां रागादि विकारनी नास्ति छे.
अहीं कहे छे-स्वाभिमुख परिणमन थतां जीवना अनंतधर्मत्व स्वभावनुं भेगुं ज निर्मळ परिणमन थाय छे,