Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). 29 TattvaShakti.

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२९-तत्त्वशक्तिः १३९

बाकी बहार तो घणी गडबड चाले छे. लोको आवी सत्य वातनो पण विरोध करवा लाग्या छे. तेथी दृढता माटे अहीं विशेष स्पष्ट करवामां आवे छे. आत्मामां ज्ञान, आनंद आदि अनंत निर्मळ शक्तिओ छे. ते शक्तिओनुं तेरूप परिणमन थाय ते तद्रूपमयता छे, ने रागादिरूप ने परस्वभावरूप ते न थाय ते अतद्रूपमयता छे. आ रीते रागमय परिणमन ते आत्मानी चीज छे ज नहि, ते तो अनात्मा छे, परद्रव्यना स्वभावमय छे, आवी खूब गंभीर सूक्ष्म वात छे.

बिलाडी तेना बच्चाने सात सात दिवस सुधी सात घरे फेरवे छे. तेनी आंख त्यारे बंध होय छे. ज्यारे तेनी आंख खूले छे त्यारे ते जगतने देखे छे. तेनी आंखो खूली नहोती त्यारेय जगत तो हतुं ज, अने आंखो खूली त्यारेय जगत छे. एम आ नवीन पंथ नथी, अनादिनो पंथ छे. तने खबर नहोती त्यारे पण आ वात हती, ने हवे तने खबर पडी त्यारे पण आ वात छे. ए तो अनादिनी छे. जे समजे तेना माटे ते नवीन कहेवाय, पण छे तो अनादिथी ज. वीतरागनो मार्ग तो प्रवाहरूपे अनादिथी चाल्यो आवे छे; जे समजे तेने नवो प्रगट थाय छे. भाई! तुं प्रयत्न करीने आ तत्त्व समज. स्वस्वरूपथी छुं, ने परथी नथी-एवुं तत्त्व समज; तारुं अविनाशी कल्याण थशे. इति.

आ प्रमाणे अहीं विरुद्धधर्मत्वशक्ति पूरी थई.

२९ः तत्त्वशक्ति

‘तद्रूप भवनरूप एवी तत्त्वशक्ति. (तत्स्वरूप होवारूप अथवा तत्स्वरूप परिणमनरूप एवी तत्त्वशक्ति आत्मामां छे. आ शक्तिथी चेतन चेतनपणे रहे छे-परिणमे छे.)’

आ समयसार शास्त्र छे; तेमां शक्तिना अधिकार पर व्याख्यानो चाले छे. आत्मामां अनंत शक्तिओ छे. ते अनंतनुं वर्णन थई शके नहि; तेथी अहीं आचार्यदेवे ४७ शक्तिओनुं वर्णन कर्युं छे. प्रवचनसारमां नय अधिकारमां ४७ नयनुं वर्णन कर्युं छे. भैया भगवतीदासजी एक विद्वान कवि थई गया. तेमणे निमित्त-उपादानना दोहा बनाव्या छे तेमां पण ४७ संख्या छे. अने चार घाति कर्मनी प्रकृति पण ४७ छे. तेनो नाश करवानो आमां उपाय बताव्यो छे. द्रव्यसंग्रहनी ४७मी गाथामां आम वर्णन कर्युं छेः-

दुविहं पि मोक्खहेउं झाणे पाउणदि जं मुणी णियमा।
तह्मा पयत्तचित्ता जूयं भक्ताणं समब्भसह।।

शुं कह्युं गाथामां? के पोताना आत्माना अनुभवरूप जे निश्चय मोक्षमार्ग छे ते ध्यानमां प्राप्त थाय छे. उपर उपरथी कोई धारणा करी ले एवी आ चीज नथी बापु! अहाहा...! ध्रुव द्रव्यने ध्येय बनावी ध्रुवना आश्रये निर्विकल्प ध्याननी दशामां आनंदनो अनुभव प्रगट करवो ते मोक्षमार्ग छे, तेनुं नाम धर्म छे. आ ध्याननी दशा ते निश्चल एकाग्रतानी स्वरूप-रमणतानी दशा छे.

रात्रे प्रश्न थयेलो के-ज्ञाता, ज्ञान अने ज्ञेय शुं छे? उत्तरः– ज्ञाता-ज्ञान-ज्ञेय त्रणे आत्मा छे. ज्ञाता पण आत्मा, ज्ञान पण आत्मा, ने ज्ञेय पण आत्मा ज छे. आवी ध्यान-दशा छे.

कळश टीकामां लीधुं छे के-ज्ञेय एक शक्ति छे, ने ज्ञान पण एक शक्ति छे. भगवान आत्मा ज्ञातृ द्रव्य छे; तेनी ज्ञेय एक शक्ति छे, ने ज्ञान पण एक शक्ति छे. ज्ञातृ द्रव्यनी एकाग्रताना परिणमनमां बन्नेनुं परिणमन भेगुं ज छे. आम ज्ञान-ज्ञाता-ज्ञेय अने ध्यान-ध्याता-ध्येय-बधुं आत्मा ज छे. सूक्ष्म वात छे भाई!

भगवान आत्मा अनंतगुणनिधान पूर्णानंदनो नाथ प्रभु छे. शक्ति अने शक्तिवान-एवो जेमां भेद नथी एवी अभेद द्रष्टि करी अभेद एक ज्ञायकस्वरूपमां एकाग्र थई तेमां ज लीन थवुं ते ध्यान छे, अने ते धर्म छे. तेमां हुं