Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१४०ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ आवो छुं-एवा विकल्पनो पण अभाव छे. अहा! आवी स्वस्वरूपनी निश्चल ध्यान-दशामां स्वाश्रित निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप निश्चय मोक्षमार्ग प्रगट थाय छेः अने ए ध्यानमां ज व्यवहार मोक्षमार्ग पण साथे- सहचर होय छे. ध्यानमां जेटलो स्व-आश्रय थयो तेटलुं दर्शन-ज्ञान-चारित्रनुं परिणमन निर्मळ छे, बाकी जे राग सहचर रह्यो तेने उपचारथी व्यवहार मोक्षमार्ग कहेवामां आवे छे. आ रीते ध्यानमां बन्ने मोक्षमार्ग प्राप्त थाय छे.

अहीं शक्तिना वर्णनमां थोडा शब्दोमां आखो भंडार भर्यो छे. कहे छे-‘तद्रूप भवनरूप एवी तत्त्वशक्ति.’ अहाहा...! सच्चिदानंद सहजात्मस्वरूप भगवान आत्मा छे ते पोताना स्वद्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावमां तद्रूप छे. आवो आत्मानो तत्त्व स्वभाव छे. त्यां-

त्रिकाळी एक ज्ञायकभावरूप निर्विकल्प वस्तु ते स्वद्रव्य,

असंख्यप्रदेशी वस्तुना आधारमात्र पोतानो प्रदेश ते स्वक्षेत्र,

त्रिकाळ वस्तुमात्रनी मूळ अवस्था-स्थिति ते स्वकाळ, अने

वस्तुनी मूळ सहज शक्ति ते स्व-भाव. अहा! आवी पोतानी अभेद अखंड निर्विकल्प चीजनुं वलण करीने तद्रूप थईने परिणमवुं ते धर्म छे. आवो मार्ग सूक्ष्म छे बापु! आ अलौकिक वात छे.

अरे, लोकोए तो दया, दान, व्रत, भक्तिमां ने लाखोनुं खर्च शुभकार्योमां करे एमां धर्म मान्यो छे. पण ए धर्म नहि बापु! ए तो बधा विकल्प छे, ने धर्म तो निर्विकल्प छे. अने पैसा वगेरे तो जड वस्तु छे. ए जड मारी चीज छे एम मानीने दानमां आपे ए तो मिथ्यात्वनुं सेवन छे. अहा! जेवो एक ज्ञायकभाव छे तेवुं तेनुं तद्रूप परिणमन थवुं ते धर्म छे. ज्ञायकना तद्रूप भवनरूप तत्त्वशक्ति छे तेमां रागनो-विकल्पनो अभाव छे. मार्ग तो आवो छे बापु!

अहाहा...! भगवान आत्मा एक ज्ञायकस्वरूप, शुद्धतास्वरूप, आनंदस्वरूप परम पवित्र प्रभुत्वशक्तिस्वरूप प्रभु छे. तेमां तद्रूप थवुं, ते रूपे भवन थवुं ते तत्त्वशक्तिनुं स्वरूप छे. भवन एटले परिणमन सहितनी शक्तिनी आ वात छे. तद्रूप भवन एटले परिणमन थवुं ते शक्तिनुं कार्य छे. अहाहा...! शुद्ध ज्ञानरूपे, शुद्ध आनंदरूपे, शुद्ध समकितरूपे, पवित्र वीतरागतारूपे, शुद्ध प्रभुत्वरूपे, पोताना द्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावथी भगवान आत्मा जेवो छे तेरूपे तेनुं परिणमन थवुं ते तत्त्वशक्तिनुं कार्य छे; तेमां रागनो अभाव छे. आत्मा एकलुं चैतन्यनुं दळ छे, तेना तद्रूप परिणमनमां राग समातो नथी. आम रागपणे-व्यवहार रत्नत्रयरूपे थवुं ते पोतानो स्वकाळ नथी, ते आत्मा नथी. अरे! लोकोने निवृत्ति मळे नहि, पोताना स्वरूपनी कांई दरकार नहि ने आखो दिवस संसारना-पापना कार्योमां, विषयकषायमां वीती जाय छे. अरे भगवान! तारे कयां जवुं छे? अहीं कहे छे-जेमां तद्रूप परिणमन थाय त्यां जवुं छे, जेमां परद्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावनो अभाव छे एवा स्वद्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावमां तद्रूप थवुं छे. ल्यो, आ धर्म करवानी रीत छे.

जुओ, पहेलो सौधर्म देवलोक छे तेमां ३२ लाख विमान छेः एकेक विमानमां असंख्य देवता होय छे, कोई विमान नाना छे तेमां संख्यात देवो होय छे. आ देवलोकनो स्वामी इन्द्र समकिती ने एकभवतारी छे; तेने हजारो इन्द्राणीओ होय छे, तेमां जे एक मुख्य इन्द्राणी छे तेय समकिती ने एकभवतारी छे, एक भव करीने तेओ मोक्ष पामशे. तेमने बहारमां अढळक समृद्धि-संपदा छे. पण ते समृद्धि-संपदा पोताना स्वरूपथी-स्वद्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावथी बाह्य छे, स्वस्वरूपभूत नथी एम तेओ माने छे, अनुभवे छे. अहा! सम्यग्दर्शन शुं चीज छे, अने तेनो विषय निज अंतःतत्त्व एक ज्ञायकमात्र वस्तु केवी अद्भुत अलौकिक चीज छे एनी लोकोनेखबर नथी.

अरे, लोको तो लाखोनो खर्च करी मंदिर बंधावो ने प्रतिष्ठा करावो इत्यादि बहारमां रोकाई गया छे, पण ए तो मंदकषायना परिणाम छे भाई! ए कांई धर्म नथी. निज शुद्ध चैतन्यनी द्रष्टि करवी ते धर्म छे, ते तद्रूप परिणमन छे. धर्मीने ते वखते जे शुभराग छे तेनाथी पुण्य ज बंधाय छे. ते पुण्यबंध अने तेनुं फळ जे आवे तेनुं लक्ष छोडी स्वरूपमां स्थिर थई जशे त्यारे ते मोक्ष पामशे. समजाणुं कांई...?

अहीं तो आ स्पष्ट वात छे के-कोई करोडो रूपिया दानमां खर्ची मंदिर आदि बनावे तो त्यां जो रागनी मंदता होय तो पुण्य बंधाय, पण धर्म न थाय. दया, दान, व्रत, भक्ति आदिना परिणाम ते आस्रव भाव छे, तेनाथी पुण्य बंधाय, ने तेना फळमां संयोग मळे, कदाचित् तेना फळमां वीतराग सर्वज्ञदेवनी वाणी सांभळवा मळी जाय, पण भगवान कहे छे-अमारी वाणी सांभळवामां लक्ष जाय एय राग छे, दुःख छे; ७२मी गाथामां अनेक प्रकारना