शरीरमां रोग छे.
अहा? मारो आत्मा मारी पर्यायोमां ज व्यापक छे, बीजे नहि, ने मारी पर्यायोमां एक शुद्ध आत्मा व्यापक छे. बीजो नहि-एवो निर्णय करे तेनी द्रष्टि ज बदलाई जाय छे. आवो निश्चय थतां तेने पराश्रयपणानी बुद्धि मटी जाय छे, ने स्व-आश्रयनी भावना जाग्रत थाय छे. हवे ते स्वद्रव्यनुं एकनुं ज आलंबन करीने शुद्ध पर्यायोरूपे निरंतर परिणम्या करे छे. पर्याये पर्याये तेने एकत्वस्वरूप निज आत्मद्रव्यनुं ज आलंबन वर्ते छे, ने शुद्ध आत्मद्रव्यना आलंबने प्रगट थती पर्यायो तेने निर्मळ निर्मळ ज थाय छे. अहा! धर्मी पुरुषनी बधी पर्यायो एक शुद्ध आत्मद्रव्यने ज उपादेय करीने परिणमे छे, तेनी पर्यायमां व्यवहाररत्नत्रयनो विकल्प आदि बीजुं कांई उपादेय नथी.
तो मुनिराजने पंचमहाव्रतादि व्यवहार चारित्र होय छे ने? हा, मुनिराजने पंचमहाव्रतादि व्यवहार आचरण होय छे, पण ए तो विकल्प-राग छे; मुनिराजने ते उपादेय नथी, हेय छे. उपादेय तो एक शुद्ध आत्मद्रव्य ज छे. अध्यात्म पंचसंग्रहमां आवे छे के-
ये हु पर जानै नांहि, इनमें उमैया है।
अज्ञानी जीव दया, दान, व्रत आदि शुभभाव पर छे एम जाणतो नथी, ते एमां ज उल्लसित थाय छे. हुं कांईक (धर्म) करुं छुं एम ते माने छे. ज्यारे ज्ञानी पुरुष-
जुओ आ भगवाननी वाणीनो निचोड! शुं? के शुभाशुभनी रीतिने त्यागी, हुं पुण्यपाप ने क्रियाकांडना रागथी भिन्न शुद्ध एक चिदानंदमय भगवान आत्मा छुं एम ज्ञानी अनुभवे छे, अरे, अज्ञानी पोताना स्वरूपने भूलीने भिखारीनी जेम मारे पैसा जोईए, ने बंगला जोईए, ने आबरू जोईए-एम तृष्णावंत थईने शुभाशुभ आचरण कर्या करे छे. पण एथी शुं? ज्ञानदर्पणमां द्रष्टांत आपी कह्युं छे के-जटा वधारवाथी जो सिद्धि थती होय तो वडने मोटी जटा होय छे. “मूंडनतें उरनी, नगन रहते पशु; कष्ट सहन करते तरु”-वळी वाळ तो घेटां पण कपावे छे, नग्न तो पशु पण फरे छे अने वृक्षो टाढ-ताप सहे छे. तथा ‘पढनते शुक’ -पोपट मोढेथी पाठ करे छे अने ‘खगध्यान’ -बगला पण ध्यान करे छे. परंतु तेथी शुं थयुं? तेओ कोई धर्म पामता नथी. एटले के एमां आत्माने शुं आव्युं? कांई ज नहि. भाई! अंदर चैतन्य चिंतामणि एवो भगवान चिदानंदस्वरूप आत्मा छे तेना आश्रये निर्विकल्प आनंदनो अनुभव करवो ए ज पोताना हितरूप धर्म छे.
आत्मानी आ एकत्वशक्ति छे ते त्रिकाळी ध्रुव उपादान छे, ने तेना परिणमनरूप पर्याय प्रगट थाय छे ते क्षणिक उपादान छे. शक्ति तो त्रिकाळ छे, पण तेनुं परिणमन थया विना शक्ति छे एनी प्रतीति थती नथी. शक्ति साथे भळीने -एकमेक थईने शुद्धतारूपे परिणम्या विना शक्तिनो ने शक्तिवान आत्मानो वास्तविक स्वीकार थतो नथी. सत्तानो स्वीकार कयारे थाय? के स्वाभिमुख-स्वसन्मुख थईने सत्द्रव्यना आश्रये परिणमे त्यारे; ज्यां सत्तानो स्वीकार थाय के (स्वीकारनारी) पर्याय तेमां एकमेक भळी जाय छे, ने ते पर्याय निर्मळ निर्मळ अपूर्व-अपूर्वभावे प्रगट थाय छे. आ धर्म छे, आ मोक्षनो पंथ छे. आ सिवाय बधुं थोथेथोथां छे. समजाणुं कांई...?
आ प्रमाणे अहीं एकत्वशक्तिनुं वर्णन पूरुं थयुं.