Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). 32 AnekatvaShakti.

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१प२ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११

३२ः अनेकत्वशक्ति

‘एक द्रव्यथी व्याप्य (व्यपावा योग्य) जे अनेक पर्यायो ते-मयपणारूप अनेकत्वशक्ति.’ भगवान आत्मा जे त्रिकाळ एकत्वस्वरूप द्रव्य छे तेनाथी व्याप्य अनेक पर्यायो छे, ते-मयपणारूप आत्मानी अनेकत्व शक्ति छे. द्रव्यपणे आत्मा एक होवा छतां अनेक पर्यायोपणे पण पोते ज थाय छे एवी तेनी अनेकत्वशक्ति छे. आम एकत्वनी जेम अनेकत्व पण आत्मानो गुण-स्वभाव छे. वेदांतवाळा बधुं मळीने एक माने छे, अनेक मानता नथी, पण तेमनी एवी मान्यता खोटी-विपरीत छे. तेओ कहे छे-“आत्मा अनुभवो”-एमां तो बे चीज थई गई, आत्मा अने तेनो अनुभव-एम बे चीज थई गई; आम तेओ अनेकपणानो निषेध करे छे, पण ए तो द्रष्टि मिथ्या छे. भक्तामर स्तोत्रमां (२४मा श्लोकमां) आवे छेः

तुं आद्य अव्यय अचिन्त्य असंख्य विभु,
छे ब्रह्म ईश्वर अनंत अनंगकेतु;
योगीश्वर विदितयोग अनेक एक,
के’, छे तने विमळ ज्ञानस्वरूप संत.

हे नाथ! आप आद्य छो, कदी नाश न थाय एवा आप अव्यय छो, विकल्प वडे चिंतवतां पार न पमाय एवा आप अचिन्त्य छो, असंख्य छो, विभु छो, ब्रह्म छो; लौकिकमां ब्रह्म कहे छे ते नहि हों, आ तो केवळज्ञाननी ज्योति झळहळती प्रगट थई छे एवा आप ब्रह्म छो-एम वात छे. आप योगीश्वर छो, विदितयोग छो, अनंत छो, अनंगकेतु छो, एक छो, अनेक छो. जुओ, अहीं पण आव्युं ने? के आप एक छो, अनेक पण छो. भाई! एकपणुं अने अनेकपणुं -एम बन्ने गुणो-शक्तिओ आत्मामां त्रिकाळ एकसाथे ज छे. वळी आप विमळ ज्ञानस्वरूप छो. - एवुं कोण कहे छे? के संतो-मुनिवरो-गणधरो. अहाहा...! एकला ज्ञानना पुंज प्रभु आप छो. आ बधा परमात्माना गुण ते आत्माना ज छे भाई! आ तो प्राप्तनी प्राप्तिरूप अहीं स्तुतिमां वर्णव्या छे. तत्त्वज्ञान तरंगिणीमां दरेक श्लोकमां आवे छे“चिद्रूपोडहं” हुं एकला ज्ञानस्वरूप छुं. ल्यो, आवी वात! आ तो समजीने अंदर ठरवानो- रमवानो, सुखी थवानो मारग छे. भावदीपिकामां लख्युं छे के-

अचल अखंड अबाधित अनुपम महा,
आत्मिक ज्ञानका लखैया सुख करै हैं.

आत्मिक ज्ञानना जाणवावाळा सुख पामे छे, बाकी तो बधा भव-क्लेशमां छे. जुओ, अहीं अनेकत्वशक्तिनी वात चाले छे. एक द्रव्यथी व्याप्य अनेक पर्यायोरूप पोते आत्मद्रव्य थाय छे एवी आत्मानी अनेकत्वशक्ति अहीं सिद्ध करी छे. जीवमां एकत्वशक्तिनी जेम अनेकत्वशक्ति पण त्रिकाळ वर्ते छे. एकपणे रहेवुं, अने अनेकपणे थवुं-ए बन्ने स्वभाव भगवान आत्मामां साथे ज रहेला छे. जो एकलुं एकत्व होय तो द्रव्य शेमां प्रसरे? एक पर्याय पलटीने बीजी निर्मळ पर्यायरूपे केम थाय? अने जो एकलुं अनेकत्व होय तो अनेक पर्यायो कोना आश्रये थाय? आम आत्मामां एकीसाथे एकत्व अने अनेकत्व बन्ने शक्तिओ त्रिकाळ होवापणे सिद्ध थाय छे.

अहा! आत्मानी सम्यग्दर्शन आदि निर्मळ पर्यायोमां कोण व्यापे छे? परद्रव्य नहि, कोई निमित्त नहि, विकार-रागादि पण नहि; अहाहा...! शुद्ध चैतन्यमूर्ति एवो आत्मा ज पोते परिणमीने सम्यग्दर्शनादि पर्यायोमां व्यापे-ते रूप थाय एवी एनी अनेकत्वशक्ति छे. माटे हे भाई! सम्यग्दर्शन आदि निर्मळ पर्यायनी सिद्धि माटे तुं सिद्ध समान निज आत्मद्रव्यमां जो; शुद्ध एक स्वरूपनुं आलंबन कर. एक आत्मा ज बधी निर्मळ पर्यायोमां प्रसरी जाय छे एवी तारी अनेकत्वशक्ति जाणी, निमित्तने भेदनुं लक्ष मटाडी शक्तिवान ध्रुव एक आत्मद्रव्यनो आश्रय कर, स्वसन्मुखता कर; तेम करतां ज पर्यायो क्रमे निर्मळ निर्मळ प्रगट थाय छे; आनुं ज नाम धर्म छे; ने आ ज मारग छे. समजाय छे कांई...?

प्रवचनसार, नय प्रज्ञापन अधिकारमां क्रियानय अने ज्ञाननयथी मोक्ष थाय एम वात आवे छे. ते आ प्रमाणेः

“आत्मद्रव्य क्रियानये अनुष्ठाननी प्रधानताथी सिद्धि सधाय एवुं छे, थांभला वडे माथुं भेदातां द्रष्टि उत्पन्न