Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 4073 of 4199

 

१प४ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ विद्यमान होय छे. अहाहा...! जे समयमां भावशक्तिनुं परिणमन थाय छे ते समये निर्मळ पर्याय विद्यमान होय छे. अहा! विद्यमान-पर्यायवाळापणे भावशक्ति छे. निर्मळ पर्यायने हुं करुं तो ते होय एवी वात नथी.

अहाहा...! अनंतगुणनुं चैतन्यनिधान प्रभु आत्मा छे. तेमां जेम ज्ञानशक्ति छे, आनंदशक्ति छे, श्रद्धाशक्ति छे, तेम एक भावशक्ति छे. भावशक्तिनुं स्वरूप शुं? तेनुं कार्य शुं? तो कहे छे-भाव नाम भवन-निर्मळ परिणमनना भवनरूप पर्याय वर्तमान विद्यमान होय छे. अनंत गुणोनी निर्मळतारूप पर्याय वर्तमान विद्यमान होय ज छे एवुं आ शक्तिनुं स्वरूप छे. अहीं शक्तिनुं जेने परिणमन थयुं छे एवा सम्यग्द्रष्टिनी वात छे, मिथ्याद्रष्टिनी वात नथी, मिथ्याद्रष्टिने तो शक्तिनी प्रतीति ज नथी. भावशक्ति अने शक्तिवान आत्मा-तेनो जेने अनुभव वर्ते छे तेने, कहे छे, निर्मळ पर्याय वर्तमान विद्यमान होय ज छे. अहाहा...! जेने भगवान आत्मानी अंतर-प्रतीति थई, ज्ञानमां निज ज्ञायक जणायो, ने निर्मळ ज्ञान साथे अनाकुळ आनंद प्रगट थयो तेने भावशक्तिनुं परिणमन थयुं छे जेथी तेने वर्तमान निर्मळ अवस्था विद्यमान ज छे. आवी सूक्ष्म वात! समजाय छे कांई...?

हवे भावशक्तिनुं आवुं स्वरूप छे त्यां पर निमित्तथी थाय, ने व्यवहार-रागथी थाय एम कयां रह्युं? अरे, पूर्वनी पर्याय निर्मळ हती माटे वर्तमान पर्याय निर्मळ थई एमे य नथी. वर्तमान विद्यमान पर्यायने पूर्वनी पर्यायनी अपेक्षा नथी. धीरजथी समजवुं बापु! आ शक्तिना अधिकारमां द्रष्टिनी प्रधानता छे. आत्मानो भावशक्तिमय स्वभाव ज एवो छे के तेमां वर्तमान निर्मळ पर्याय विद्यमान होय ज छे.

‘स्वामी कार्तिकेय अनुप्रेक्षा’मां कार्तिकेय स्वामीए कह्युं छे के-प्रत्येक द्रव्यनी पर्यायमां काळलब्धि होय छे. एटले शुं? के जे समये जे पर्याय थाय ते तेनी काळलब्धि छे. प्रवचनसारनी गाथा १०२मां पर्यायनी उत्पत्तिनी जन्मक्षण होवानी वात आवी छे. मतलब के वर्तमानमां जीवनी मोक्षदशा छे ते तेनी काळलब्धि छे, पूर्वनी मोक्षमार्गनी पर्याय तेनुं वास्तविक कारण नथी. (कारण कहेवुं ते व्यवहार छे.)

हा, तो पछी तेनुं कारण शुं? ए ज अहीं कहे छे; वर्तमान अवस्था विद्यमानपणे होय ज एवी आत्मानी भावशक्ति तेनुं कारण छे. वर्तमान वर्तमान वर्तती प्रतिसमयनी अवस्था तेना स्वकाळे विद्यमान थाय एवी आत्मानी भावशक्ति छे ते कारणे छे.

हवे आम छे त्यां रागनी क्रियाथी-व्यवहार-रत्नत्रयना रागथी आत्मानुं ज्ञान प्रगट थाय, व्यवहारथी निश्चय थाय ए वात कयां रही? राग तो बापु! बंधनुं ज कारण छे. तेनाथी अबंधस्वरूप एवो मोक्षमार्ग अने मोक्ष कदी य प्रगट थतो नथी. मोक्षमार्गथी मोक्ष प्रगटे छे एम नथी, त्यां रागनी शुं कथा? अहाहा...! अबंधस्वरूप नित्यानंद प्रभु आत्मा छे तेना आश्रये क्रमे मोक्षमार्ग अने मोक्ष प्रगटे छे. ए तो पहेलां आवी गयुं के ज्ञानमात्र वस्तुनुं परिणमन थतां भेगी अनंत शक्तिओ निर्मळपणे ऊछळे छे. आवी स्वानुभवनी दशा होय छे. ए स्वानुभवनी दशा कांई विकल्पथी के निमित्तथी उत्पन्न थाय छे एम नथी. स्वकाळे विद्यमान ए दशा, अहीं कहे छे, भावशक्तिनुं कार्य छे, ने पोताना द्रव्यस्वभावनी सन्मुख थतां ते प्रगट थाय छे.

जो के आ आत्मा शरीरप्रमाण छे, तथापि ते शरीरथी तद्न भिन्न छे. शरीर तेनुं कांई संबंधी नथी. आवो भगवान आत्मा असंख्यप्रदेशी वस्तु अनंत गुणोथी विराजमान मोटो (सर्वोत्कृष्ट) चैतन्य बादशाह छे, असंख्य प्रदेश तेनो देश छे, तेमां व्यापक अनंत गुण तेनां गाम छे, ने एकेक गाममां अनंती निर्मळ पर्यायरूप प्रजा छे. आ पर्यायरूप प्रजा केवी रीते प्रगट थई? तो कहे छे-अनंत गुणमां भावशक्तिनुं रूप छे, तेथी प्रत्येकने वर्तमान विद्यमान अवस्थावाळापणुं छे. आवी झीणी वात छे. (मतलब के उपयोगने झीणो करतां समजाय तेम छे).

जुओ, आकाशमां ध्रुवनो तारो होय छे. तेने लक्षमां राखीने समुद्रमां वहाण चाले छे. ध्रुव तारो तो ज्यां छे त्यां छे, तेनुं स्थान फरतुं नथी, पण मोटां वहाणो होय छे ते आ ध्रुवना ताराने लक्षमां राखी निश्चित स्थान प्रति गति करे छे. तेम भगवान आत्मा ध्रुव, चिदानंद प्रभु, आनंदरस, ज्ञानरस, शांतरस, वीतराग रस, जीवनरस-एवा अनंत गुणना निजरसथी भरपूर भरेलो ध्रुव-ध्रुव-ध्रुव छे. आवा ध्रुवना लक्षे वर्तमान पर्यायने अंदर ऊंडे (सन्मुख) लई जतां पर्यायनी ध्रुवमां एकता थाय छे. राग अने पर निमित्त साथे एकता हती ते पलटीने ध्रुवना लक्षे ध्रुवमां एकता थाय छे; आनुं नाम सम्यग्दर्शन अने धर्म छे. एकता एटले शुं? ध्रुव ने पर्याय कांई परस्पर भळीने एक थई जाय छे