Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 4074 of 4199

 

३३-भावशक्तिः १पप

एम नहि, पण पर्याय ध्रुवनी सन्मुख थई तो तेने एकता थई एम कहेवामां आवे छे. हवे आवुं सत्य अंदर बेसे नहि, अंतर-अनुभव करे नहि ने खाली व्रतादि वडे कल्याण थई जवानुं माने, पण ए तो भ्रान्ति छे, मिथ्यादशा छे.

भगवान आत्मा चैतन्य गुणरत्नोथी भरेलो रत्नाकर प्रभु छे. तेमां एक भावशक्ति नामनो गुण छे. आ भावशक्ति वर्तमान विद्यमान अवस्थाने प्रगट करे छे, प्रगट करे छे शुं? शक्ति परिणमतां वर्तमान विद्यमान अवस्था होय ज छे. भावशक्तिनुं भवन-परिणमन होतां आत्माने वर्तमान विद्यमान-अवस्थायुक्तपणुं होय ज छे; अवस्था करवी पडे एम नहि. अहीं निर्मळ अवस्था लेवी, मलिन अवस्था शक्तिना कार्यरूप नथी.

प्रश्नः– आत्मा अने तेनी अवस्था पोताथी विद्यमान छे ए तो मान्युं, पण अमारी अवस्थामां मिथ्यात्व वर्ते छे ने?

उत्तरः– अरे भाई! आत्मानी अवस्था पोताथी ज छे एम तें कोनी सामे जोईने मान्युं? जो आत्मानी सामे जोईने मान्युं होय तो पर्यायमां-अवस्थामां मिथ्यात्व रहे ज नहि. पोतानी अवस्था पोताथी ज विद्यमान छे एवो द्रव्यस्वभाव जेणे स्वीकार्यो तेने निर्मळ अवस्थानुं ज विद्यमानपणुं होय छे. ओघे-ओघे, ज ‘आत्माना भाव पोताथी छे’ एम जो तुं माने छे तो द्रव्यस्वभावनी सम्यक् प्रतीति विना तने मिथ्यात्वादि विकार ज विद्यमान छे; तेमां अमे शुं करीए? आवी मिथ्यादशा तने अनादिथी छे, ते स्वभावनी-स्वद्रव्यनी सन्मुख थई परिणमतां टळी जाय छे, ने निर्मळ पर्यायोनो क्रम शरू थाय छे.

अरे! जीवे सम्यग्दर्शन कदी प्रगट कर्युं नहि! अनंतकाळमां बहारनी माथाकूट करीने मरी गयो. एक तो संसारनां-पापनां काम आडे एने फुरसद मळी नहि, ने कदाचित् फुरसद मळी तो व्रत, तप, भक्ति आदि रागनी मंदतानी क्रियामां रोकाई गयो, शुं करीने? धर्म मानीने. पण भाई! रागनी क्रिया मंद हो तो पण ते बंधनुं ज कारण छे, संसाररूप छे अने संसारनुं कारण छे; भेगुं मिथ्याभावनुं महापाप तो ऊभुं ज छे, जे अनंत संसारनुं कारण छे. ज्यारे जीवनशक्तिनी विद्यमान पर्याय छे ते अबंध छे. मोक्षमार्ग-के मोक्षरूप छे; तेमां विकारनो-विकल्पनो अभाव छे. शुं कीधुं? जेमां भावशक्तिनुं रूप छे एवी भावशक्तिनुं रूप छे एवी जीवन शक्ति परिणमतां जीवननी वर्तमान निर्मळ अवस्था नियमथी विद्यमान होय छे, तेमां विकारनो अभाव छे. वस्तुमां विकार नहि, ने तेना परिणमनमां य विकारनो अभाव छे. आ अनेकान्त अने स्याद्वाद छे. स्वभावना अस्तिरूप परिणमनमां विकारनी नास्ति छे; आ अनेकान्त छे.

प्रश्नः– एक भाई प्रश्न करता के अमे आ व्रत, तप, भक्ति आदि करीए छीए, ने घरबार-कुटुंबने छोडी निवृत्ति लीधी छे ते शुं धर्म नहि? जो ए धर्म न होय तो अमारे शुं करवुं?

उत्तरः– एनी तो अहीं वात छे. शुं? के रागथी भिन्न हुं एक ज्ञायकस्वरूप छुं-एम स्वसन्मुख थई भेदज्ञान प्रगट करवुं ते धर्म छे. दया करुं, ने व्रत करुं, ने तप करुं-एम करवानुं माने छे ए तारुं नियमथी मरण छे. सोगानीजीए कह्युं छे के ‘करना सो मरना है.’ हुं राग करुं ए अभिप्रायमां तारुं भावमरण थाय छे. अनंत चैतन्यशक्तिओनो पिंड ते हुं नहि, पण रागना कर्तास्वरूप हुं छुं एम माननार पोतानी चैतन्यशक्तिनो घात करे छे, पोताना स्वभावनी हिंसा करे छे. अहा! आवो आत्म-घात महापाप छे.

अरेरे! एणे पोतानी दरकार करी नहि. पचास-सो वर्षनां आयुष्य तो जोतजोतामां वीती जाय भाई! ने त्रसमां रहेवानी स्थिति उत्कृष्ट बे हजार सागरोपम छे. त्यां सुधीमां जो धर्म प्रगट न कर्यो तो समजवुं के स्थिति पूरी थये जीव नियमथी निगोदमां चाल्यो जशे, पछी अवसर नहि रहे. आ बैरां-छोकरां, धन-संपत्ति इत्यादि काम नहि आवे, ने तेना लक्षे एकलुं पाप ज थशे. कदाचित् पुण्यना भाव कर्या होय तो य तेना फळरूपे भव मळशे. पुण्यना भाव पण संसार छे ने तेनुं फळ पण संसार छे.

अहीं कहे छे-प्रभु! तारी शक्तिमां संसार नथी. ए शक्ति वर्तमान विद्यमान अवस्था सहित छे, ते अवस्थामां पण संसार नथी. संसारनो जे विकल्प छे तेनो भावशक्ति अने विद्यमान अवस्थामां अभाव छे. हवे आवी चोख्खी वात छे, छतां लोको राड नाखे छे के-व्यवहार करीए छीए ते साधन छे. अरे भाई! निमित्तनुं ज्ञान कराववा तेने उपचारथी साधन कह्युं छे, ते कांई खरेखर साधन नथी. लोकोने एम लागे छे के-अहीं निश्चय... निश्चय... ने निश्चयनी ज वात करे छे, पण भाई! निश्चय एटले सत्य अने व्यवहार एटले उपचार. आम निश्चय- व्यवहार यथार्थ