जळमां स्नान करवाथी जो लाभ थतो होय तो जळचर प्राणीओ जळमां डूबकी मारे छे तेमने लाभ थवो जोईए. नग्न रहेवाथी जो मुक्ति थती होय तो पशुओ नग्न ज रहे छे, तेमने मुक्ति थवी जोईए. केशलुंचनथी जो धर्म थतो होय तो घेटाना वाळ बारे महिने कापे छे तेने धर्म थवो जोईए. परंतु आ बधी तो जडनी क्रिया बापा! एनाथी धर्म न थाय, ने रागथी य धर्म न थाय. एक द्रव्य बीजा द्रव्यमां कांई करे ए तो वस्तुस्थिति ज नथी.
आ शक्तिना वर्णनमां पर्यायना परिणमन सहितनी वात छे. परिणमनमां एकेक शक्ति अने शक्तिवान द्रव्यनी प्रतीति थाय छे. शुद्ध परिणमन विना त्रिकाळी शुद्ध द्रव्यनी प्रतीति-सिद्धि थती नथी. पर्यायरूप परिणमन विना कोनी प्रतीति? शेमां प्रतीति? वर्तमान सहित त्रिकाळी द्रव्य अने शक्तिनी प्रतीति पर्यायमां थाय छे. जीवने ज्यां सुधी द्रव्य उपर द्रष्टि न होय त्यां सुधी तेने शक्तिनुं परिणमन नथी, तेथी तेनी प्रतीतिमां त्रिकाळी द्रव्यनी हयाती नथी, तेने तो रागनी ज हयाती छे. मलिन रागनी रुचिमां तेने आत्मा भासतो नथी, तेने राग ज-मलिन अवस्था ज विद्यमान छे. वास्तवमां जेने पुण्यनी-रागनी मीठाश छे तेने निज ज्ञानस्वभावनी अरुचि-द्वेष छे. ‘द्वेष अरोचक भाव’-परनी रुचि ने स्वरूपनी अरुचि ते निज आत्मद्रव्य प्रत्येनो द्वेष छे. धर्मीने रागनी रुचि-प्रेम होतां नथी. राग हो, यथासंभव राग होय छे, पण धर्मी पुरुषने तेनी रुचि होती नथी; ते तो रागनो ज्ञाता-द्रष्टा ज छे. समजाणुं कांई...?
दरेक शक्ति वीतराग स्वरूप छे. शक्ति अने शक्तिवानने ओळखी ज्यां द्रव्य-द्रष्टि करे त्यां वीतरागी पर्याय पण विद्यमान थाय छे; राग एमां विद्यमानपणे छे ज नहि. धर्मी तो रागने मारा जाणे छे बस; ते जाणे छे एम कहीए ए य व्यवहार छे, केमके राग छे तो रागने जाणनारी ज्ञाननी दशा थई छे एम नथी. पोताने जाणे ने रागने-परनेय जाणे एवो सहज ज एनो स्वपर प्रकाशक स्वभाव छे, ते ज्ञाननी दशा पोताथी प्रगट थई छे, रागने लीधे नहि, तेमां रागनो तो अभाव ज छे. ल्यो, आवुं वर्तमान निर्मळ अवस्थाना होवारूपे भावशक्ति छे तेनुं वर्णन पूरुं थयुं.
आ प्रमाणे अहीं भावशक्तिनुं वर्णन पूरुं थयुं.
‘शून्य (-अविद्यमान) अवस्थावाळापणारूप अभावशक्ति’ (अमुक अवस्था जेमां अविद्यमान होय एवापणारूप अभावशक्ति)’
आ समयसारनो शक्तिनो अधिकार छे. शक्ति एटले गुण; आत्मा गुणी शक्तिवान छे. भगवान आत्मा त्रिकाळी सत् अविनाशी वस्तु छे, गुणा तेनुं सत्त्व छे, सामर्थ्य छे. अहाहा...! गुण कहो, शक्ति कहो, स्वभाव कहो- बधुं एक ज छे.
अहीं अभावशक्तिनुं वर्णन छे. शुं कहे छे? के ‘शून्य अवस्थावाळापणारूप अभावशक्ति छे.’ अहाहा...! आत्मा चैतन्य द्रव्य छे, तेनी आ शक्ति त्रिकाळ ध्रुव छे. तेनुं स्वरूप शुं? तो कहे छे-तेनी विद्यमान अवस्था पर नाम आठकर्मना अभावरूप अवस्था छे, अने ते वर्तमान विद्यमान अवस्थामां पूर्वोत्तर अवस्थाओनो पण अभाव छे.
अहा! भावशक्तिनी जेम आत्मामां अभावशक्ति त्रिकाळ छे. जेने अंतर्द्रष्टि-आत्मद्रष्टि थई तेने भावशक्तिनुं परिणमन थयुं, अभावशक्तिनुं पण परिणमन थयुं; तेथी तेने जे वर्तमान निर्मळ अवस्थानी विद्यमानता थइ तेमां, अहीं कहे छे, आठ कर्मनी अवस्थानुं अविद्यमानपणुं-शून्यपणुं छे. अहा! आत्माना अनंतगुणनी निर्मळ अवस्थानुं वर्तमान विद्यमानपणुं छे ते, कहे छे, आठ कर्मनी अवस्थाथी शून्य छे.
अज्ञानीओ पोक मूके छे के-अरे! कर्मनुं जोर घणुं! कर्म महा बळवान! तेने कहे छे-भाई, तारी पर्यायमां कर्मनो तो अभाव छे, ते तने शुं करे? आठ कर्मथी आत्मा शून्य छे, ने तेना निमित्ते थता विकारथी-भावकर्मथी पण तेनी विद्यमान निर्मळ अवस्था शून्य छे; भावकर्मनी अवस्था अविद्यमान छे. शुं कीधुं? आ दया, दान, व्रत, भक्ति इत्यादि जे विकल्प छे तेनाथी आत्मानी विद्यमान अवस्था शून्य छे. अरे, लोकोने पोतानी शक्ति अने शक्तिवाननी तथा तेना परिणमननी खबर नथी, ने कर्मनुं जोर छे एम खाली राडो पाडे छे.