Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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३प-भाव-अभावशक्तिः १६३

वळी निश्चयनय तेने ज यथावत् निरूपण करे छे, तथा कोईने कोईमां मेळवतो नथी तेथी एवा ज श्रद्धानथी सम्यक्त्व थाय छे माटे तेनुं श्रद्धान करवुं.” भाई, वस्तु जेवी छे तेवो ज्ञानमां सम्यक् निर्धार-निर्णय करवो जोईए. अहीं निर्णय करनार समकितीनी पर्यायनी वात चाले छे.

अहाहा...! धर्मी पुरुषनी वर्तमान निर्मळ रत्नत्रयनी, आनंदनी विद्यमान दशा छे ते व्ययरूप थई बीजे समये अपूर्व अपूर्व दशा प्रगट थाय छे त्यां वर्तमान दशाना व्ययनुं कारण शुं? तो कहे छे-आत्मामां वर्तमान दशाना व्यय थवारूप एक भाव-अभाव स्वभाव-शक्ति छे. समजाय छे कांई...? समजाय एटलुं समजवुं बापु! आ तो केवळीनां कहेण आचार्य लईने आव्यां छे. जेणे अंतरमां स्वीकार कर्यो ए न्याल थई जाय एवी वात एमां छे. शुं? के पर्यायनी स्थिति एक समयनी छे, ते लंबाईने बीजे समये रहे एम कदीय संभवित नथी, केम? केमके एवो ज वर्तमान पर्यायनो अभाव थवारूप आत्मानो भाव-अभाव स्वभाव छे.

प्रश्नः– हा, पण ते पर्याय व्यय थईने जाय छे कयां? उत्तरः– जळना तरंग जळमां समाय छे तेम पर्याय द्रव्यमां समाय छे. पछी ते पर्यायरूप न रही, पण पारिणामिकभावरूप थई जाय छे. पर्याय तो उपशम, क्षयोपशम, क्षायिकभावरूप छे, ते बीजे समये व्यय पामतां- द्रव्यमां विलीन थतां पारिणामिकभावरूप थई जाय छे. दया, दान आदि भाव छे ते उदयभाव छे. बीजा समये ते व्यय पामतां द्रव्यमां विलीन थईने पारिणामिकभावरूप थई जाय छे.

मोक्षमार्ग प्रकाशकमां बे जग्याए आवे छे के शुद्ध-अशुद्ध पर्यायोनो पिंड ते आत्मा छे. ए तो जे भूतकाळनी अशुद्धताने मानतो नथी तेने समजाववा माटे ए वात करी छे; अशुद्धता एटले अंदर द्रव्यमां अशुद्धता छे एम नहि. द्रव्य तो शुद्ध पारिणामिकभावरूप ज छे. आ प्रमाणे उदयभावरूप अशुद्ध पर्याय, ने उपशमादि शुद्ध पर्याय व्यय पामीने अंदर जतां शुद्ध-अशुद्ध पर्यायरूप रहेती नथी, पण पारिणामिकभावरूप थई जाय छे. अहा! तारा सत्नुं स्वरूप जो तो खरो!

वर्तमानमां जीवने संसारदशानो सद्भाव छे; पण ते ‘भाव’नो ‘अभाव’ करी नाखे एवुं सामर्थ्य अंदर एना द्रव्यमां पडयुं छे. धर्मी पुरुष तेने प्रतीतिमां लई द्रव्यना आश्रये अपूर्व अपूर्व निर्मळ दशाओने प्राप्त थई संसारनो अभाव करी क्रमे मोक्षदशाने प्राप्त थाय छे. आवो मारग छे. लोको तो, दिगंबरमां जन्म्या छे तेय, व्रत, तप, भक्ति इत्यादि राग करवामां धर्म माने छे, पण ए मार्ग नथी. भगवाननो कहेलो सत्य पंथ अहीं दिगंबर आचार्योए स्पष्ट कर्यो छे.

अहीं शक्तिनी व्याख्या करतां कहे छेः भवत्पर्यायव्ययरूपा भावाभावशक्तिः भवता पर्यायना व्ययरूप भावाभाव-शक्ति छे. आमां तो अनंत पर्यायोनो खुलासो करी दीधो छे. आत्मामां अनंत शक्तिओ छे. तेनी निर्मळ पर्यायो सम्यग्द्रष्टिने प्रगट वर्तमान विद्यमान होय छे. ते पर्यायोनो व्यय थवो ते भावाभावशक्तिनुं कार्य छे. तेने करवुं पडतुं नथी; हुं एने करुं ए तो विकल्प छे, ने विकल्पथी कांई साध्य थतुं नथी. ए तो चैतन्यचिंतामणि एवो पोते शक्तिवान द्रव्य छे. तेने अंतर्मुख द्रष्टिमां लेतां दरेक शक्तिनी पर्यायमां तेनुं कार्य थाय छे. साधकने संसारदशानो अभाव थईने पूर्ण दशानी प्राप्तिना पुरुषार्थनो आवो अलौकिक मार्ग छे. भाई! आ समजवामां जेने उल्लसित वीर्य होय तेना माटे आ वात छे. बाकी तो बधी रझळपट्टी छे.

अहा! पर्यायमां संसार छे तेनो अभाव करी पूर्ण दशाने पहोंचवुं छे; पण ते केम थाय? संसारनो अभाव थई पूर्णता केम थाय? तो कहे छे-तारा द्रव्यमां पूर्णता भरी छे. तेना आलंबने पर्यायमां पण पूर्णता प्रगटी जशे, ने अपूर्णतानो अभाव थशे. साधकनी द्रष्टिमां द्रव्यनुं ज आलंबन छे. अहा! निज द्रव्यनी सन्मुख थईने तेनी सेवना- उपासना-लीनता रमणता करीने ते पूर्ण दर्शन-ज्ञान-चारित्रने प्राप्त थई सिद्धदशाने पामे छे. आ मार्ग छे, बाकी बधुं (व्रतादिना विकल्प) थोथां छे.

लोकोने थाय के एकला निश्चयनी वात करे छे. भाई, निश्चय ज सत्य छे, व्यवहार तो आरोपित छे, उपचार छे, कथनमात्र छे, लौकिक छे.

आ प्रमाणे अहीं भाव-अभावशक्तिनुं वर्णन पूरुं थयुं.