Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). 36 AbhavBhavShakti.

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३६ः अभावभावशक्ति

‘नहि भवता (नहि वर्तता) पर्यायना उदयरूप अभावभावशक्ति.’ जुओ, पहेलां वर्तमान विद्यमान अवस्थानो बीजे समये अभाव थाय छे एवी भावअभावशक्ति कही. तो बीजे समये पर्याय रही नहि? ल्यो, आ प्रश्नना समाधानरूप कहे छे- ‘नहि भवता पर्यायना उदयरूप अभावभावशक्ति’ छे. बीजे समये जे वर्तमान पर्यायमां अभावरूप छे ते पर्यायनो उदय थाय ते रूप आत्मामां अभावभावशक्ति छे. आ तो भगवान आत्मानी भागवत कथा छे बापु! आ बहु धीरज ने उल्लासथी सांभळवी. पद्मनंदी पंचविशतिकामां एक श्लोक द्वारा श्री पद्मनंदी स्वामी कहे छे-

तत् प्रति प्रीतिचित्तेन, येन वार्ता पि हि श्रुता।
निश्चित्तं स भवेद्भव्यो, भाविनिर्वाण भाजनम्।।

अहा! जेणे प्रसन्न चित्तथी, उल्लसित वीर्यथी निज अंतःतत्त्वनी वात सांभळी छे, ते कहे छे, अवश्य भविष्यनी मुक्तिनुं भाजन छे, भव्य छे.

आ पद्मनंदी स्वामीए ब्रह्मचर्यनो एक अधिकार लख्यो छे. शरीरथी ब्रह्मचर्य पाळे ते ब्रह्मचर्य नहि, ने ब्रह्मचर्यनो विकल्पे य राग छे. परंतु भगवान आत्मा ब्रह्म नाम नित्यानंदस्वरूप आनंदकंद प्रभु छे तेमां लीन थवुं ते ब्रह्मचर्य छे. पछी छेल्ले कह्युं छे के-हे युवानो! आ ब्रह्मचर्यनो अमारो उपदेश तमने ठीक न लागे तो क्षमा करजो, अमे तो मुनि छीए. (एम के अमारी पासे आ सिवाय बीजी वात न होय). विषयभोगमां लीन एवा तमने अमारी आ वात न रुचे तो माफ करजो. अरे, ब्रह्मचर्य एटले शुं? ब्रह्म नाम शुद्ध चिदानंद प्रभु आत्मा-तेमां चरवुं, रमवुं, ठरवुं एनुं नाम ब्रह्मचर्य छे ने ए चारित्र छे. समजाणुं कांई...?

समयसारमां अनेकान्तनुं वर्णन कर्युं छे. त्यां चौद बोलमां एकांतवादी मिथ्याद्रष्टिने पशु कह्यो छे. रागथी लाभ थवानुं माने ते एकांत छे; तेवुं माननारने पशु कह्यो छे. केम पशु कह्यो छे? ‘पश्पति, बध्यति इति पशुः’ मिथ्यात्वथी बंध पामे छे, नाश पामे छे माटे अज्ञानी एकांतवादीने पशु कह्यो छे. जीव मिथ्यात्वना फळमां क्रमे करीने निगोदमां जाय छे माटे एकान्तवादी अज्ञानी जीवने शास्त्रमां पशु कह्यो छे.

आचार्य कुंदकुंदस्वामीए शास्त्रमां (अष्टपाहुडमां) एम कह्युं छे के-वस्त्रनो एक टुकडो राखी जे पोताने मुनिपणुं मानशे-मनावशे ते निगोदमां चाल्यो जशे. एम केम कह्युं? केमके वस्त्रनो टुकडो पण राखी मुनिपणुं त्रणकाळमां होई शके नहि. वस्त्र राखवानो विकल्प शरीर प्रत्येनी ममता-मूर्च्छा विना होय नहि, अने ममता-मूर्च्छा होय त्यां चारित्र केवुं? एने चारित्र मानवुं ए तो मिथ्यात्वभाव छे, ने मिथ्यात्वनुं फळ परंपरा निगोद छे. शुभभाव होय तो स्वर्ग मळी जाय, ने तीव्र अशुभभाव होय तो जीव नरके जाय, पण तत्त्वनी विराधनानुं फळ तो निगोद छे. अहा! तत्त्वनी आराधनानुं फळ अनंतसुखधाम एवुं मोक्ष छे, ने तत्त्वनी विराधनानुं फळ अनंत दुःखमय निगोद छे. आवी वात! समजाय छे कांई...?

अहीं कहे छे-भविष्यनी पर्याय जे वर्तमानमां नथी, बीजा समये जे थवानी छे तेनो बीजा समये उदय थाय एवी आत्मामां अभावभावशक्ति छे. वर्तमानमां जे उदयरूप नथी, अभावरूप छे ते पर्यायनो बीजे समये भाव- उत्पाद थई जाय तेरूप अभावभावशक्ति जीवमां त्रिकाळ छे. आम वर्तमानभावनो बीजे समये अभाव थतां, जेनो वर्तमान अभाव छे तेनो ते समये भाव-उत्पाद थई जाय छे, एवो आत्मानो त्रिकाळी अभावभाव स्वभाव छे.

जेम वर्तमान क्षयोपशम समकित छे, तेमां क्षायिक समकितनो अभाव छे. तो कहे छे-भले वर्तमान क्षायिकनो अभाव होय, पण क्षयोपशम समकितनो अभाव थईने पछी जे अभावरूप छे ते क्षायिकनो भाव-उत्पाद थई जशे.

हा, पण केवळी-श्रुतकेवळीनी समीपतामां क्षायिक समकित थाय ने? केवळी श्रुतकेवळीनी समीपतामां क्षायिक समकित थाय ए तो निमित्तनुं व्यवहारनयथी कथन छे. शास्त्रमां आवां बधां कथनो निमित्तनुं ने व्यवहारनुं ज्ञान कराववा माटे होय छे. बाकी केवळी-श्रुतकेवळीनी समीपताथी ज जीवने क्षायिक थई जाय छे एम वस्तु नथी. खरेखर तो वर्तमान पर्यायमां जे क्षायिक समकितनो अभाव छे, तेनो भाव-उत्पाद थशे ते अभावभावशक्तिना कारणथी थशे. वर्तमान जे