क्षयोपशम समकित छे तेनो अभाव थाय ते भावनो अभाव छे, ने वर्तमान जे क्षायिक समकित नथी तेनो बीजे समये भाव थाय ते अभावनो भाव छे. आ रीते भाव-अभाव अने अभाव-भाव ए आत्मानी बन्ने शक्तिओ एक समयमां एकसाथे वर्ते छे.
वर्तमान स्वरूपाचरण चारित्र प्रगट छे, तेमां विशेष स्थिरतानी दशानो अभाव छे; पण तेनो पछीना समये भाव थई जशे एवुं आत्मानुं अभाव-भावशक्तिरूप सामर्थ्य छे. अहीं (व्याख्यामां) ‘उदय’ शब्द वापर्यो छे. ‘उदय’ एटले उत्पाद थवो, प्रगट थवुं एम अर्थ छे. श्रीमदे पण ‘उदय’ शब्द वापर्यो छे.
अहाहा...! शक्तिनो अर्थ छे द्रव्यनुं सामर्थ्य. जीवनी अनंत शक्तिओमां एक अभावभावशक्ति छे. तेनाथी वर्तमान नहि भवता भावनो उदय थाय छे. वर्तमान ज्ञानदशामां क्षयोपशम ज्ञान-कमीवाळुं ज्ञान छे तेनो अभाव थईने बीजे समये पूर्ण केवळज्ञान प्रगट थाय छे. अहा! आवो चमत्कारिक आत्मस्वभाव छे. चार कर्मनो नाश थईने केवळज्ञान प्रगट थयुं एम तत्त्वार्थसूत्रमां आवे छे ए निमित्तनुं व्यवहारनयथी कथन छे.
अहा! आत्मानो आ एवो गुण छे के वर्तमान पर्यायमां जेनो अभाव छे तेनो बीजे समये उदय थाय छे. ल्यो, आमां निमित्तना कारणे नैमित्तिक दशा थाय एवी मान्यतानो निषेध छे.
तो शुं निमित्त कांई ज नथी? निमित्त छे, हो; पण तेनाथी कार्य नीपजे छे एम नथी. खानिया चर्चामां आ विषय चर्चायो हतो. शंकाकार पक्षनी दलील हती के चार घातीकर्मनो नाश थवाथी केवळज्ञान आदि अनंत चतुष्टय प्रगट थाय छे. पं. फूलचंदजीए तेनुं समाधान करतां कह्युं छे के-चार घातीकर्मरूप पर्यायनो नाश थईने त्यां तेनी अकर्मरूप दशा थाय छे. कर्मनी पर्यायनो व्यय थईने ‘भाव’ शुं थयो? के अकर्मरूप दशा थई. माटे तेमांथी (कर्मना अभावमांथी) केवळज्ञान आदि जीवनी पर्याय प्रगट थई एम नथी. भाई, विशेष चिंतन-मनन करी यथार्थ निर्णय करवो जोईए. निमित्त छे, होय छे, पण उपादाननुं कार्य करवामां निमित्त कांई ज नथी. आवी गंभीर सूक्ष्म वात छे.
ज्ञाननी पर्यायमां हानि के वृद्धि थाय ते पोतानी तत्कालीन पर्यायनी योग्यताथी थाय छे, तेमां ज्ञानावरणीय कर्मनुं निमित्त भले हो, पण निमित्तथी ज्ञाननी पर्याय थाय छे एम नथी. द्रव्यनी शक्तिमां ज एवुं सामर्थ्य छे के नवी (अपूर्व) पर्याय प्रगट थाय. कर्मना अभावथी थाय एम छे ज नहि. आगम, युक्ति अने अनुभव-त्रणे प्रकारे आम ज सिद्ध थाय छे.
पोतानी पर्याय पर-निमित्त वडे थती नथी, केमके निमित्त छे ते निमित्तनी पोतानी पर्याय करे छे, तो पछी बीजानी पर्याय ते केवी रीते करे? निमित्तनो-परनो तो पोतामां (आत्मद्रव्यमां) अत्यंत अभाव छे. आ युक्ति छे. वळी वर्तमान अल्पज्ञाननी दशामां विशेषज्ञान अभाव छे ते अभाव-भावशक्तिना सामर्थ्यथी पछीना बीजा समये भाव-उत्पादरूप थशे; अभावनो भाव थशे. आवो वस्तु-स्वभाव छे, तेथी निमित्तथी के गुरुगमथी विशेष ज्ञान थाय एम छे नहि. भगवान! आ सत्य वात छे, ने आ हितनी वात छे.
पण आमां करवानुं शुं? अहा! चिदानंद चिद्रूप प्रभु पोते छे तेनो अंतर्मुख थई स्वीकार करवो, ने तद्रूपस्वरूप परिणमवुंः बस आटलुं करवानुं छे. भाई, आ समजीने आटलुं करे तेने निमित्तथी थाय, ने व्यवहारथी थाय-ए बधा गोटा ऊडी जशे. एक वात पण जो यथार्थ समजे तो बधा गोटा ऊडी जाय. आवी वात! समजाणुं कांई...?
अत्यारे तो आ विषयमां मोटी गरबड चाले छे. जुओ, इंदोरवाळा पंडित देवकीनंदन अहीं विद्वत् परिषदमां आव्या हता. तेमणे पंचाध्यायीनुं संपादन कर्युं छे. तेमां एक जग्याए तेमणे जे अर्थ लख्यो हतो ते भूलवाळो हतो. तेमां आम छपायुं हतुं के-छठ्ठा गुणस्थानमां बुद्धिपूर्वकनो राग होय छे, अने सातमा गुणस्थाने अबुद्धिपूर्वकनो राग होय छे. तेमने अमे कहेलुं, -पंडितजी, आमां भूल छे. खरेखर एम छे के -छठ्ठा गुणस्थानमां बुद्धिपूर्वक अने अबुद्धिपूर्वक-एम बन्ने प्रकारना राग होय छे, ज्यारे सातमा गुणस्थानमां एकलो अबुद्धिपूर्वकनो राग होय छे. चोथा गुणस्थाने पण ख्यालमां आवे एवो बुद्धिपूर्वकनो, ने ख्यालमां न आवे एवो अबुद्धिपूर्वकनो पण राग होय छे. अहीं