Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१६८ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ हता, छतां शुभभावनी प्रकर्षता वडे तीर्थंकर गोत्र बांध्युं छे. भाई! शुभभाव पापबंधनुं कारण छे एम नथी, तथा ते अबंध भाव छे एम पण नथी, ए बंधभाव ज छे, ने एनाथी पुण्यबंध थाय छे. माटे शुभनी द्रष्टि छोडी, अंदर तारुं चैतन्यनिधान पूर्ण ज्ञान ने आनंदना अमृतथी भर्युं छे तेने देख, तुं न्याल थई जईश, तारी पर्यायमां अतीन्द्रिय आनंदनुं अमृत झरशे. ल्यो, आचार्यदेवे पोताना चैतन्यनिधानने घोळी घोळीने तेनो सार आ समयसारमां भर्यो छे. अहा! जेने अंतर्द्रष्टि थई छे, ने अंदर आनंदरसना अमृतनो स्वाद आव्यो छे तेने आ छ शक्तिओनुं वर्णन लागु पडे छे; अज्ञानीने तो शक्तिनुं भान ज कयां छे?

जुओ, पहेलां भावशक्ति कही तेमां वर्तमान विद्यमान अवस्था होवानी वात करी छे. विद्यमान- अवस्थावाळापणारूप भावशक्ति छे, जेथी धर्मीने वर्तमान शुद्धपर्यायनी विद्यमानता होय छे. तेमां अशुद्धता होती नथी. किंचित् अशुद्धता होय तेनो ते स्वामी नथी, मात्र जाणनार छे. जाणवानी पर्याय पोतामां छे, पण अशुद्धता पोतामां छे ए वात हवे द्रव्यद्रष्टिवंतने नथी.

बीजी अभावशक्ति लीधी छे. शून्यअवस्थावाळापणारूप अभावशक्ति छे. राग अने पुण्यना अभावस्वभावरूप अभावशक्ति छे. निर्मळ पर्याय अस्तिपणे विद्यमान छे ते भावशक्ति, अने रागना अभावरूप परिणमन ते अभावशक्तिनुं कार्य छे. अहा! वीतरागदेवे प्ररूपेलो मार्ग बहु सूक्ष्म छे. पण एकवार मूळ वस्तु हाथ लागी जाय पछी मार्ग खूली जाय छे. अहा! त्रिकाळी स्वभावनी साथे एकताबुद्धि थई के अंदरथी कमाड खूली गयां, खजानो खूली गयो. रागनी रुचि छूटीने स्वभावनी रुचि थई के सम्यग्दर्शनरूप चावी हाथ लागी गई, अने भरपूर चैतन्यनो खजानो खूली गयो; आनंदनुं परिणमन थयुं.

त्रीजी भावअभावशक्तिमां वर्तमान निर्मळ पर्यायनो नियमथी अभाव थई जशे एम बताव्युं छे; केमके पर्यायनी स्थिति एक समयमात्र छे, बीजे समये भावनो नियमथी व्यय-अभाव थई जाय छे.

चोथी अभावभावशक्ति कही छे. वर्तमान जे निर्मळ पर्याय नथी, ते पछी प्रगट थशे ज एवी आ अभावभावशक्ति छे. पछीनी निर्मळ पर्यायनो वर्तमानमां अभाव छे तेनो वर्तमान निर्मळ पर्यायनो व्यय थई भाव थशे ए आ अभावभावशक्तिनुं कार्य छे.

हवे आ भावभावशक्तिनुं वर्णन छे. कहे छे-भवता पर्यायना भवनरूप भावभावशक्ति छे. वर्तमान ज्ञाननी पर्याय भवनरूप छे, ते एवी ने एवी भवनरूप थया करशे-एवा स्वरूपे भावभावशक्ति छे. अहा! वर्तमान वर्तमान वर्ततो भाव त्रिकाळी भाव साथे एक थईने निरंतर वर्ते एवी आ भावभावशक्ति छे. त्रिकाळी द्रव्य ज्ञानस्वभाव छे. तेनी वर्तमान वर्तमान वर्तती दशा त्रिकाळी ज्ञानस्वभाव साथे एक थईने सदाय वर्ते. अहा! एवो आ आत्मानो भावभाव स्वभाव छे. आ तो गजबनी वातु प्रभु!

अहा! भगवान आत्मामां एक भावभावशक्ति छे. तेनुं स्वरूप शुं? तो कहे छे-आत्माना द्रव्य, गुण अने पर्यायमां ज्ञान छे ते भावरूप छे; द्रव्यमां भाव छे, गुणमां भाव छे, ने तद्रूप भवनरूप पर्यायमां पण समयेसमये भाव छे. आनुं नाम भावभावशक्ति छे. ज्ञाननी पर्याय वर्तमान छे, एवी ने एवी (सम्यग्ज्ञानरूप) पर्याय बीजे बीजे समये पण रहेशे. ज्ञाननी एनी ए पर्याय न रहे, पण ज्ञाननी जाति एवी ने एवी रहेशे. वर्तमानमां मति- श्रुतज्ञाननी निर्मळ पर्याय छे ते आ भावभावशक्तिना कारणथी एवी ने एवी भाव... भाव... भावरूपे-निर्मळ ज्ञानरूपे-रहेशे. द्रव्यगुणमां तो निर्मळता छे, पर्यायमां पण ज्ञाननी दशा एवा ने एवा निर्मळभावपणे रहेशे. सूक्ष्म विषय भाई! विचार-मंथन करीने ख्यालमां लेवानी चीज छे. जेम ज्ञाननी तेम समकितनी, चारित्रनी वर्तमान निर्मळ पर्याय निर्मळ समकित अने चारित्ररूप रहेशे-आवी भावभावशक्ति छे. अहा! आवुं पोतानुं तत्त्व छे तेनुं भावभासन थया विना धर्म थई जाय एम कदी बनतुं नथी.

समकिती तिर्यंचने नाम भले बोलतां न आवडे, तो पण तेने अंतरमां स्वतत्त्वनुं भावभासन थयुं होय छे. लोकमां साधकदशा पामेला जीवो तिर्यंचगतिमां पण असंख्याता छे. तेओ अंदर एम नथी जाणता के हुं तिर्यंच छुं, तेओ वास्तवमां एम अनुभवे छे के-शुद्ध चैतन्य ज हुं छुं, चैतन्यथी अन्य बीजा कोई भावो हुं नथी, ल्यो, आवुं अंदर भावभासन थयुं होय छे.

शास्त्रमां एक शिवभूति मुनिनी कथा आवे छे. तेमनी यादशक्ति ओछी हती. तेमने गुरुए आटलुं ज कह्युं के