Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१२८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ त्रीजा बोलमां ज्ञेय-ज्ञायकनी निकटता सामे चैतन्यशक्तिनुं असंगपणुं लीधुं छे. आ तो त्रणलोकना नाथनी वाणीनो सार छे.

अहाहा! जे पंथे प्रयाण करतां अनंत आनंद प्रगटे ते भगवान श्री जिनेश्वरदेव-कथित पंथ अपूर्व छे. आवा अपूर्व मार्गनी वात जेने सांभळवा पण न मळे ते प्रयोग शी रीते करे? जेना फळमां सादि अनंत अनंत समाधि-सुख प्रगटे ते मोक्षमार्गनो महिमा केटलो करीए? भाई! परपदार्थनो संयोग मळवो ए तो पूर्वनां पुण्य-पापने आधीन छे. पण जो अंदरमां पुरुषार्थ करे तो आ मोक्षमार्ग प्रगट थया विना रहे नहि. अहो! आचार्य अमृतचंद्रदेवे टीकामां अमृतनी धारा वहेवडावी छे.

केवळीनी वाणीमां पण जेनुं वर्णन पुरेपुरुं आवी शकयुं नथी एवी अमूल्य चीज आत्मा छे. एवा आत्माने स्वयमेव अंतरमां अनुभवमां आवता असंगपणा वडे इंद्रियोना विषयोथी जुदो कर्यो. जेणे परथी अधिकपणे-भिन्नपणे पूर्ण आत्माने जाण्यो, संचेत्यो अने अनुभव्यो तेणे इंद्रियोना विषयोने जीत्या. जड इंद्रियो, भावेन्द्रिय अने तेना विषयभूत पदार्थो ए त्रणेय ज्ञाननुं परज्ञेय छे. ए त्रणेयने जेणे जीत्या एटले ए सर्वथी जे भिन्न पडयो ते जिन थयो, जैन थयो. स्वपरनी एक्ताबुद्धि वडे ते अजैन हतो. हवे परथी भिन्न पडी निर्मळ पर्यायने प्रगट करी ते जीतेन्द्रिय जिन थाय छे.

प्रश्नः– आ गाथामां ‘सर्वथा जुदा कर्या’ एम आवे छे. पण जैनमां तो ‘सर्वथा’ न होय ने?

उत्तरः– जेम नाळियेरमां छालां, काचली अने उपरनी रातड से सर्वथी अंदर जे सफेद गोळो छे ते सर्वथा भिन्न छे. तेम भगवान आत्मा-चैतन्यगोळो शरीर, कर्म अने पुण्य-पापना (रातड) भावथी सर्वथा भिन्न छे. अने ते अनुभवमां आवतां परथी सर्वथा भिन्न पडे छे, कथंचित् भिन्न अने कथंचित् एक एम नहीं. समयसार कलशटीकामां श्लोक १८१ मां पांचवार ‘सर्वथा’ आवे छे. दाखला तरीकेः ‘शुद्धत्वपरिणमन सर्वथा सकळ कर्मोना क्षय करवानुं कारण छे,’ ‘आवुं शुद्धत्वपरिणमन सर्वथा द्रव्यना परिणमनरूप छे, निर्विकल्परूप छे,’ ‘शुद्ध स्वरूपना अनुभवरूप छे जे ज्ञान ते, जीवना शुद्धत्वपरिणमनथी सर्वथा सहित छे,’ इत्यादि. ज्यां जे अपेक्षा लागे त्यां ‘सर्वथा’ ज होय. जेमके द्रव्य अपेक्षाए आत्मा नित्य ज छे अने पर्याय अपेक्षाए अनित्य ज छे. आवो मार्ग छे ते जाणे नहि अने बहारथी व्रत करे अने तप करे पण ए तो बाळव्रत अने बाळतप छे, भाई!

आ प्रकारे जे कोई मुनि द्रव्येन्द्रिय, भावेन्द्रिय अने तेना विषयभूत परपदार्थोने जीते छे तेने सघळो ज्ञेय-ज्ञायकसंकरदोष दूर थाय छे. जणावा योग्य चीज ज्ञायकनी छे अने जाणनार ज्ञायक जणावायोग्य चीजनो छे एम जाणवुं ए अज्ञान छे, ज्ञेयज्ञायकसंकरदोष