Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 410 of 4199

 

गाथा ३१ ] [ १२९ छे. जड इंद्रिय, भावेन्द्रिय अने भगवान तथा भगवाननी वाणी इत्यादि इंद्रियना विषयो परज्ञेयरूप होवाथी पोताथी भिन्न छे. छतां अज्ञानी तेमने पोतानी माने छे, कारण के जेनाथी लाभ थवो माने तेने पोतानी मान्या वगर रहे नहि. परंतु जो ते पोताना अतिसूक्ष्म चैतन्यस्वभावने अवलंबे, अखंड एक ज्ञायकनो आश्रय ले, असंग एवा निज चैतन्यने अनुभवे तो ए सघळो दोष दूर थाय छे.

समजाववा कथन करे एमां क्रम पडे छे. पण ज्यारे आश्रय लेवामां आवे छे त्यारे एकसाथे बधी इंद्रियो (द्रव्येन्द्रिय, भावेन्द्रिय अने तेना विषयभूत पदार्थो) जीताय छे. अतिसूक्ष्म चैतन्यस्वभावना अवलंबनना बळ वडे ज्यारे द्रव्येन्द्रियने जीते छे त्यारे भावेन्द्रिय अने इंद्रियोना विषयोनुं लक्ष छूटी गयुं होय छे. भावेन्द्रियने जीते त्यारे पण अखंड एक चैतन्यशक्तिनी प्रतीति थतां द्रव्येन्द्रिय अने परपदार्थोनुं लक्ष छूटी जाय छे. तेवी ज रीते ज्यारे पर विषयोने जीते छे त्यारे द्रव्य उपर ज लक्ष होवाथी जड इंद्रियो अने भावेन्द्रिय जीताई जाय छे. समजाणुं कांई? भाई! आ तो समजणनो मार्ग छे. समजवुं, समजवुं ए शुं करवानुं नथी? ज्ञानस्वरूप भगवान आत्मा छे ते जाणवा सिवाय बीजुं करे शुं?

जेम टांकणाथी कोतरेली पत्थरनी मूर्ति होय तेम आ भगवान आत्मा एक अखंड टंकोत्कीर्ण ज्ञानस्वभावरूप छे. राग अने परथी भिन्न पडतां ते जेवो छे तेवो देखाय छे. ज्ञानी समाधिकाळमां ज्ञानस्वभाव वडे सर्व इन्द्रियोथी परमार्थे जुदा आत्माने अनुभवे छे. द्रव्यसंग्रह, गाथा ४७ मां आवे छे के निश्चयरत्नत्रयस्वरूप निश्चय मोक्षमार्ग अने व्यवहार-रत्नत्रयात्मक व्यवहार मोक्षमार्ग एम बन्ने प्रकारनो मोक्षमार्ग निर्विकार स्वसंवेदनस्वरूप परम ध्यानमां मुनिने प्रगट थाय छे. अंदर ध्यानमां जतां ज्ञेय-ज्ञायकनी भिन्नता थतां इन्द्रियो जीताय छे त्यारे जे अबुद्धिपूर्वकनो राग रहे छे ते व्यवहार मोक्षमार्ग छे. आ रीते जे पोताना आत्माने (सर्व इन्द्रियोथी भिन्न) अनुभवे छे ते जीतेन्द्रिय जिन छे.

द्रव्येन्द्रिय, भावेन्द्रिय अने इन्द्रियना विषयो ए त्रणेयने इन्द्रिय कहे छे. ते सर्वनुं लक्ष छोडीने पोताना ज्ञानस्वभाव वडे परथी अधिक-भिन्न एवा निज पूर्ण शुद्ध चैतन्यनो जे अनुभव करे छे तेने निश्चयनयना जाणनार गणधरदेव जितेन्द्रिय जिन अने धर्मी कहे छे. राग होय छे पण ते आत्मानो परमार्थ स्वभाव नथी. ते रागथी- पुण्य-पापथी पृथक् थईने ज्यारथी ज्ञायकस्वभावनो अनुभव थाय छे त्यारथी जिनपणानी धर्मनी शरूआत थाय छे, ज्ञानस्वभाव-जाणनस्वभाव रागमां के पर अचेतन पदार्थोमां नथी तेथी ज्ञानस्वभाव वडे आत्मा ते सर्वथी भिन्न-अधिक छे.

हवे कहे छेः-केवो छे ज्ञानस्वभाव? विश्व उपर तरतो छे अर्थात् ज्ञायक परज्ञेयने