Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१३० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ जाणे छतां परज्ञेयरूप थतो नथी. राग, शरीर, वाणी आदि परद्रव्योने ज्ञायक जाणे छे, छतां ते परद्रव्यरूप थतो नथी. पुण्य-पापना भावो राग छे, अचेतन छे. तेमां ज्ञान- स्वभावनो अंश पण नथी. ज्ञानस्वभाव चैतन्य भगवान छे. अनंत तेनो महिमा छे. बहु ज टूंकी पण घणी महत्त्वनी वात छे.

विश्व एटले समस्त पदार्थो-लोकालोक. ते उपर तरतो अर्थात् समस्त पदार्थोने- लोकालोकने जाणे छतां पण ते-रूप नहि थतो एवो भिन्न रहे छे. अहाहा! आवो ज्ञानस्वभाव छे. भावशक्तिने कारणे ज्ञानगुणनुं विकाररहित जे निर्मळ परिणमन थाय छे तेमां समस्त विश्व जाणवामां आवे छे छतां ज्ञाननी पर्याय विश्वरूप थती नथी. केवळ ज्ञाननी पर्याय आखा लोकालोकने जाणे छे. लोकालोक छे माटे ते पर्याय जाणे छे एम नथी. परंतु पोतानी पर्यायनी एवी ज शक्ति अने सामर्थ्य छे. लोकालोकने जाणे छतां ज्ञाननी पर्याय ज्ञेयरूप थई नथी अने ज्ञेय छे ते ज्ञाननी पर्यायरूप थयुं नथी. आवो ज वस्तुनो सहज स्वभाव छे. एना महिमानी शी वात! अहो! आचार्यदेवे खूब गंभीर वात करी छे. तेवी रीते श्रुतज्ञाननी पर्याय पण विश्वने जाणे छे, छतां ते पर्याय विश्वथी भिन्न रहे छे. श्रुतज्ञाननी पर्याय भले परोक्षपणे जाणे, पण जाणवामां कोई चीज बाकी न रहे. केवळज्ञान अने श्रुतज्ञानमां प्रत्यक्ष-परोक्षनो फेर छे, बीजो कोई फेर नथी. बीजी रीते कहीए तो जे रागनी मंदता छे तेने ज्ञान जाणे छे, छतां ज्ञाननुं परिणमन रागथी भिन्न रहे छे एटले के विश्व उपर तरे छे.

वळी ते ज्ञानस्वभाव प्रत्यक्ष उद्योतपणाथी सदाय अंतरंगमां प्रकाशमान छे. एटले के पर, मन के रागनी सहाय विना पोताना अनुभवमां ते प्रत्यक्ष थाय छे. अंतरंगमां प्रकाशमान वस्तु त्रिकाळ छे. तेथी एवो अनुभव पर्यायमां थतां ते पर्याय पण सदा प्रकाशमान रहे छे. शक्तिमांथी व्यक्ति प्रकाशमानरूप ज होय छे. ज्ञानस्वभाव पोताथी प्राप्त थाय छे, रागनी मंदताथी नहि. आने एकान्त कहो तो ते एकान्त ज छे. सम्यक् एकान्त विना अनेकान्तनुं ज्ञान पण यथार्थ थतुं नथी. सम्यक् एकान्तमां आव्या विना पर्याय, राग अने निमित्तनुं अनेकान्तपणानुं ज्ञान यथार्थ थतुं नथी. श्रीमद् राजचंद्रे पण कह्युं छे के-‘अनेकान्त पण सम्यक् एकान्त एवा निजपदनी प्राप्ति सिवाय अन्य हेतुए उपकारी नथी’ भाई! आ करवुं सरळ छे कारण के (पोते) जे वस्तु छे तेने प्राप्त करवी छे. राग पोतामां नथी तेथी ते प्राप्त करवो सुलभ नथी.

अहाहा! आ ज्ञानस्वभावने जेणे जाण्यो, अनुभव्यो तेने ते केवो जणाय छे? के ते अविनश्वर छे. नाश न थाय एवो त्रिकाळ शाश्वत ज्ञानस्वभाव छे. ते स्वतःसिद्ध छे, एटले तेनुं कोई र्क्ता नथी. वळी ते परमार्थरूप छे. आवो भगवान ज्ञानस्वभाव अनुभवमां जणाय छे. जोयुं? ‘भगवान ज्ञानस्वभाव’ एम शब्दो वापर्या छे. जेम आत्मा भगवान