Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). 38 Abhav-AbhavShakti.

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३८ः अभाव–अभावशक्ति

‘नहि भवता (नहि वर्तता) पर्यायना अभवनरूप (नहि वर्तवारूप) अभावाभावशक्ति.’ समयसारनो आ शक्ति-अधिकार छे. आत्मामां संख्याए अनंत शक्तिओ छे. तेनुं कथन क्रमथी थाय छे, पण ते बधी भगवान आत्मामां एकसाथे त्रिकाळ व्यापेली छे. अहाहा...! चैतन्यस्वरूपी आत्मामां अनंत शक्तिओ छे ते तेनो स्वभाव छे. ‘शुद्ध एक चैतन्यमात्र ज्ञायकस्वरूपी हुं छुं’ -एम जेने अंतरमां द्रष्टि थाय तेने ते द्रष्टिमां अनंत शक्तिओनी प्रतीति समाई जाय छे. समजाय छे कांई...? अहीं छ बोलमां-

प्रथम कह्युं के-आत्मामां वर्तमान निर्मळ विद्यमान अवस्था होय छे ते -रूप भावशक्ति छे.

पछी कह्युं के-आत्मामां वर्तमान विद्यमान अवस्था छे तेमां पूर्वोत्तर अवस्थाओ अविद्यमान छे, तथा

रागना परिणमनरूप अवस्था अविद्यमान छे-एवी अभावशक्ति छे.

वळी त्रीजी भाव अभावशक्ति छे तेना कारणे वर्तमान जे निर्मळ अवस्था विद्यमान छे तेनो व्यय थईने

भावनो अभाव थाय छे.

चोथी अभावभावशक्तिने लीधे वर्तमान विद्यमान अवस्था छे तेमां पछीनी विशेष निर्मळ अवस्थानो

अभाव छे तो तेनो पछी ना समये भाव-उत्पाद थई जशे.

पांचमा बोलमां भावभावशक्ति कही. भावभावशक्तिना कारणे प्रत्येक गुणनी वर्तमान पर्याय जे निर्मळ

भावरूप छे ते निर्मळ निर्मळ भावरूप ज रहेशे.

हवे अहीं अभाव-अभावशक्तिनी वात छे. अहा! धर्मीने वर्तमान विकारना अभावरूप जे परिणमन थयुं छे ते विकारना अभावरूप ज रहेशे एम कहे छे. कह्युं ने के-‘नहि भवता पर्यायना अभवनरूप अभावाभाव शक्ति छे.’ व्यवहाररत्नत्रय राग-विकार छे, तेना अभावस्वभावरूप धर्मीनुं वर्तमान परिणमन छे ते तेना अभावस्वभावरूप ज रहेशे एम कहेवुं छे.

पहेलां अभावशक्तिमां एटली ज वात हती के धर्मीने वर्तमान व्यवहारना-रागना अभावरूप परिणमन छे; अहीं अभाव-अभावशक्तिमां एम कहे छे के वर्तमान व्यवहारना-रागना अभावरूप परिणमन छे ते हवे पछी पण अभावरूप रहेशे. वर्तमान छे एवुं भविष्यमां रहेशे.

धर्मीने वर्तमान पर्यायमां उदयभावना अभावरूप परिणमन छे. उदयभावनो तेनी वर्तमान पर्यायमां अभाव छे. अभावशक्तिना कारणे उदयभाव तेनी पर्यायमां छे ज नहि. द्रव्य-गुणमां उदयभाव नथी, ने धर्मीनी पर्यायमां पण तेनो अभाव छे. अहीं कहे छे-ते उदयभावना अभावरूप जे तेनुं परिणमन छे ते हवे पछी पण उदयभावना अभावरूप रहेशे. आ अभाव-अभावशक्ति छे. अहा! मुनिराज-भावलिंगी संतने चारित्रना परिणमनमां वर्तमान निर्मळ रत्नत्रयनी परिणति प्रगटी छे; तेमां अचारित्रना परिणमननो अभाव छे. हवे भविष्यमां पण ते अचारित्रना परिणमननो अभाव रहेशे. धीरजथी समजवुं बापु! आ तो अंदरना त्रिलोकीनाथने जगाडवानी वातो छे. पर्यायबुद्धिने लईने पर्यायमां राग छे, पण ज्यां द्रव्यद्रष्टि प्रगट थई तो वर्तमान तेने रागना अभावरूप परिणमन थयुं; हवे ते रागना अभावरूप परिणमन कायम रहेशे-एवी आ आत्मानी अभाव-अभाव शक्ति छे. अहाहा...! धर्मीने सिद्धदशा पर्यंत ने सिद्धमां य रागना अभावरूप परिणमन कायम रहेशे.

सिद्धने केम विकार थतो नथी? तो कहे छे के-आत्मामां एवी अभाव-अभाव शक्ति छे जेना सामर्थ्यथी तेने विकारना अभावरूप परिणमन सदाय रहे छे. सिद्धमां शक्ति संपूर्णतः खीली गई छे, तेथी तेमने विकार ने विकारनुं परिणमन थतुं नथी. कर्म नथी माटे सिद्धने विकार थतो नथी एम कहेवुं ए तो निमित्तनुं कथन छे. खरेखर तो विकाररूप थवानो आत्मानो स्वभाव ज नथी, अने आ स्वभाव सिद्धने पूर्ण प्रसिद्ध थई गयो छे, तेथी तेमने विकार थतो नथी. अहाहा...!

‘चेतनरूप अनूप अमूरत, सिद्ध समान सदा पद मेरो.’

अहाहा...! सिद्धनी जेम वस्तु चैतन्य चिदानंद प्रभु परथी ने रागथी उदास उदास छे. वस्तु परथी अभावस्वभावे छे. पर शब्दे शरीर, मन, वाणी, इन्द्रिय, कर्म, नोकर्म, भावकर्म इत्यादि-परना अभावस्वभावे भगवान आत्मा छे.