भवन-परिणमन थाय. ल्यो, आ बधुं आ अडधी लीटीनी टीकामां भर्युं छे.
अंदरनी जे वात छे ते आ कहेवाय छे. अहा! भावशक्तिनुं क्रमवर्ती परिणमन ते पर्याय, त्रिकाळ अक्रमे वर्तती शक्ति ते गुण, ने ते गुण-पर्यायने धरनारुं द्रव्य ते द्रव्य-एम त्रणे मळीने आत्मा छे. अहा! अनंतगुणस्वभावथी भरेलो भगवान आत्मा छे. ते वीतरागताना भावे परिणमे एवुं तेना भाव गुणनुं कार्य छे. अहा! रागरूपे न परिणमवुं, राग रहित परिणमवुं एवुं तारुं स्वरूप छे भाई! अरे प्रभु! आमां तुं तकरार-विवाद शुं काम करे छे? आमां तो तारा हितनी परमार्थरूप वात छे. विकार सहित परिणमवुं, ने विकारमां सुखबुद्धि थवी ए तो अज्ञानी मिथ्याद्रष्टिने होय छे. ज्ञानी तो पर्यायमां किंचित् जे आसक्तिना परिणाम छे, व्यवहारना परिणाम छे-तेनाथी रहित पोतानुं परिणमन साधे छे. ल्यो, आ साधना-आराधना छे, ने आनुं नाम धर्म छे.
हवे आमां केटलाक कहे छे-तमो क्रियाकांड उथापो छो. पण एम नथी प्रभु! क्रिया तो कारको अनुसार पर्यायमां थाय छे; पण तेने अनुसरीने नहि, पण तेनाथी रहित भवनमात्रमयी आत्मानी भावशक्ति छे. गंभीर वात छे भाई! आत्मा सच्चिदानंद प्रभु अंदर परमात्मस्वरूप छे. आ काळे अहीं बहारमां परमात्मानी हाजरी नथी, पण अंदर तारो प्रभु तो तारी पासे छे के नहि? अहाहा...! तारी प्रभुता एकेक शक्तिमां पडी छे, जेथी तारी भावशक्ति प्रभु छे; तेनुं परिणमन थतां आत्मा स्वयमेव राग रहित निर्मळभाव वडे शोभाने प्राप्त थाय छे. आ भगवाननी वाणी छे. हवे आमां व्यवहारथी-क्रियाकांडथी गुण प्रगटे, ने निश्चय थाय एम वात कयां रहे छे? बहारमां व्यवहार हो, निमित्त हो, पण एनाथी स्वभावनुं परिणमन थाय छे एम त्रणकाळमां सत्य नथी. व्यवहारनुं-क्रियाकांडनुं होवुं जुदी वात छे, ने एनाथी गुणनुं प्रगटवुं थाय, धर्म थाय-एम मानवुं ए जुदी वात छे. व्यवहारथी-क्रियाकांडथी धर्म थई जशे एवी तारी प्रतीति महा शल्य छे भाई! ए तने अनंत जन्म-मरण करावशे. तने आकरी लागे पण आ सत्य वात छे, तारा हितनी वात छे.
अहाहा...! ! आचार्य अमृतचंद्रदेवे शक्तिनुं कोई अद्भुत वर्णन कर्युं छे. अहीं भावशक्तिनुं वर्णन चाले छे. ‘भाव’ तो द्रव्यने पण कहे छे, गुणने पण भाव कहे छे, निर्मळ पर्यायने पण भाव कहे छे, ने शुभाशुभ रागनी मलिन दशाने पण भाव कहे छे. अहीं बीजी वात छे. अहीं तो ‘भाव’ नामनी आत्मानी एक शक्ति-एक गुण- स्वभाव छे एनी वात छे. केवो छे ते स्वभाव? तो कहे छे-कारको अनुसार जे क्रिया-विकृति-राग-तेरूपे न थवुं एवो आ आत्मानो स्वभाव छे. हवे ओला रागनी होंशवाळा कायरोनां काळजां कंपी जाय एवी आ वात छे. शुं थाय? आ तो मारग ज आवो छे.
प्रथम पहेलां मस्तक मूकी, वळतां लेवुं नाम जो ने... हरिनो
आमां हरि एटले अज्ञान अने रागने हरवानो जेनो स्वभाव छे ते भगवान आत्मा समजवो. विकारने हरे ते हरि एम वात छे. विकारने हरे एम कहीए एय कथनमात्र छे. स्व-आश्रये आत्मानी जे पवित्र, निर्मळ निर्विकार परिणति थई तेमां ज्ञाननी, श्रद्धानी, आनंदनी परिणतिनुं ज्ञान समाई जाय छे, ने पोताना स्वपर प्रकाशक ज्ञानना कारणे परनुं-रागनुं ज्ञान पण तेमां आवी जाय छे. अहीं कहे छे-ज्ञाननी निर्मळ, निर्विकार परिणति जे प्रगट थई ते पोताना गुणनुं कार्य छे. अहा! वर्तमान रागथी रहित थवुं-परिणमवुं ते आ भाव गुणनुं कार्य छे. आवी वात! ल्यो,
आ प्रमाणे अहीं भावशक्तिनुं वर्णन पूरुं थयुं.
‘कारको अनुसार थवापणारूप (-परिणमवापणारूप) जे भाव ते-मयी क्रियाशक्ति.’ जुओ, पहेलां ३९मा बोलमां कारको अनुसार जे विकृत अवस्थारूप क्रिया तेनाथी रहित परिणमवानी वात हती. अहीं निर्मळ अभेद कारको अनुसार अविकृत निर्मळ क्रियाथी सहित परिणमवानी वात छे. अहाहा...! कर्ता, कर्म, करण