१८०ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ आदि निर्मळ अभेद कारको अनुसार थवारूप जे भाव-निर्मळ परिणति थवारूप जे भाव-ते-मयी क्रियाशक्ति छे. अंदर त्रिकाळ निर्मळ षट्कारक पडया छे ते अनुसार निर्मळ परिणति थवी एवो भगवान आत्मानो क्रिया गुण छे. समजाय छे कांई...?
हुं चेतनारो चेतक छुं, हुं मने चेतुं छुं, हुं मारी चेतना वडे चेतुं छुं-एम स्वसंवेदनमां अभेदपणे छए कारको समाई जाय छे; तेमां कारकभेदना विकल्प होता नथी; निर्मळ निर्विकार क्रियामां छए कारकरूप आत्मा परिणमी जाय छे, त्यां कारकभेदना विकल्प नथी. अहा! विकल्पनी क्रियानी अपेक्षा विना ज तेना भावनुं भवन थाय एवो आत्मानो भाव गुण छे, ने पोताना निर्मळ अभेद षट्कारको अनुसार निर्मळ क्रियारूपे भवन थाय एवो आत्मानो आ क्रिया गुण छे, भाई, पोताना निर्मळ षट्कारकोने अनुसरीने निर्मळ परिणतिए थवुं एवो आत्मानो स्वभाव छे, ने रागपणे न थवुं एवो पण आत्मानो स्वभाव छे. आ अनेकान्त छे. अहाहा...! पररूपे न थाय, विकाररूपे न थाय, भेदना आलंबने न परिणमे, परंतु अभेद निर्मळ षट्कारको अनुसार निर्मळ निर्विकार परिणतिरूपे परिणमे एवो दिव्य शक्तिमान चैतन्यचिंतामणि प्रभु आत्मा स्वयमेव देव छे. हवे भेदरूप-व्यवहाररूप क्रियाने ते अनुसरतो ज नथी पछी ते व्यवहार निश्चयनुं साधन केम थाय? भाई, व्यवहार निश्चयनुं यथार्थ साधन छे ज नहि, एने साधन कहेवुं ए तो उपचारमात्र छे.
भाई, ज्ञाननी क्रिया ने रागनी क्रिया-एम बे थईने मोक्षनो मार्ग छे एम नथी. संप्रदायमां अमे हता त्यारे प्रश्न थयेलो के-
प्रश्नः– ‘ज्ञानक्रियाभ्याम् मोक्षः’ एम कह्युं छे तेनो शुं अर्थ छे.
उत्तरः– त्यारे कहेलुं के-ज्ञान एटले स्वसंवेदन ज्ञान, आत्मानुं संवेदन ते ज्ञान, अने राग रहित वीतरागी भाव ते क्रिया-आम ज्ञान अने क्रिया मळीने मोक्ष छे. आनुं नाम ‘ज्ञानक्रियाभ्याम् मोक्षः’ छे. परंतु पोतानुं ज्ञान ने रागनी क्रिया-एवो कोई मोक्षमार्ग के मोक्ष नथी. अहा! निर्मळ षट्कारको अनुसार निर्मळ शुद्ध रत्नत्रयनी परिणति थवी ते मोक्षनुं कारण छे. आ निर्मळ परिणतिरूपे परिणमवारूप क्रियाशक्ति छे.
शक्ति एटले गुण. एकेक गुण-एम अनंत गुण द्रव्यना आश्रये रहेला छे. त्यां आ गुण ने आ गुणी- एवा भेदनी द्रष्टि छोडीने त्रिकाळी शुद्ध अभेद एक द्रव्यनी द्रष्टि करवी ते सम्यग्दर्शन छे. अहा! त्रिकाळी एक द्रव्यस्वभावनी द्रष्टि करतां द्रव्य निर्मळपणे परिणमी जाय छे ने तेमां गुणनुं परिणमन भेगुं ज समाय छे, गुणनुं कांई जुदुं परिणमन थाय छे एम नथी. आमां न्याय समजाय छे? ध्यान दईने समजवुं प्रभु!
शक्तिनुं एकरूप ते द्रव्य छे. द्रव्य परिणमतां भेगा गुणो परिणमे छे. आमां रहस्य छे. गुण उपर द्रष्टि देवाथी गुणनुं परिणमन थतुं नथी, पण गुणनो आश्रय जे एक द्रव्य छे ते द्रव्य उपर द्रष्टि देवाथी द्रव्यनुं परिणमन थाय छे, ने तेमां भेगुं गुणनुं परिणमन समाई जाय छे, द्रव्यथी अलग गुणनुं स्वतंत्र परिणमन थतुं नथी, अर्थात् द्रव्य (निर्मळ) न परिणमे अने गुण परिणमी जाय एम बनतुं नथी.
गुणभेदनी द्रष्टि करवाथी गुणनुं परिणमन सिद्ध थतुं नथी. गुणना लक्षे गुण (निर्मळ) परिणमतो नथी, भेदना लक्षे तो राग ज थाय छे. प्रवचनसारमां ‘ज्ञाननो आश्रय’ एम वात आवे छे, पण त्यां ‘ज्ञान’ शब्दे ‘अभेद एकरूप आत्मा’ एम अर्थ छे. भाई, आ तो धीरजथी समजवानी अंतरनी वातु छे.
‘चिद्विलास’मां परिणमनशक्तिनुं वर्णन छे. त्यां कह्युं छे के-आ परिणमनशक्ति द्रव्यमांथी उठे छे, गुणमांथी नहि. एनी साक्षी सूत्रजीमां (तत्त्वार्थसूत्रमां) दीधी छे के- ‘द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः’ एटले के द्रव्यना आश्रये गुण छे, गुणना आश्रये गुण नथी. वळी त्यां ज ‘गुणपर्ययवत् द्रव्यम्’ गुण-पर्यायवाळुं द्रव्य छे एम पण कह्युं छे. पर्यायवाळुं द्रव्य ज कह्युं, पण गुण न कह्यो. मतलब द्रव्यनी परिणमनशक्ति द्रव्यमांथी उठे छे, गुणमांथी नहि. शक्ति-गुण ए तो द्रव्यनी त्रिकाळी विशेषता छे, ने ते विशेषतारूप द्रव्य परिणमी जाय छे, कांई विशेषता-गुण स्वतंत्र परिणमे छे एम नथी.
द्रव्यमां अनंत शक्तिओ छे. तेथी द्रव्य परिणमतां शक्ति परिणमी एम कहेवामां आवे छे. मतलब के अभेद एक त्रिकाळी शुद्ध द्रव्यनी द्रष्टि करवाथी, द्रव्यनी सन्मुख थई परिणमवाथी आखुं द्रव्य निर्मळ परिणमे छे. गुणनुं स्वतंत्र परिणमन थतुं नथी, पण द्रव्यनी परिणति भेगी गुणनी परिणति उठे छे. आम-आ रीते गुण-गुणीना भेदनी द्रष्टि