छोडवानुं प्रयोजन सिद्ध थाय छे. भाई! तारा चैतन्यनिधानमां अनंतां गुणनिधान भर्यां छे तेने जाणी अनंतगुणनिधान एवा शुद्ध चैतन्यनिधानमां द्रष्टि कर, तेथी तने सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप निर्मळ निर्मळ परिणति प्रगट थशे. आवो मारग अने आ धर्म छे, बाकी बधुं थोथेथोथां छे.
द्रव्य-गुणमां निर्मळ षट्कारको छे. तो पर्यायमां विकार कयांथी आव्यो? पंचास्तिकायनी ६२मी गाथामां पर्यायना षट्कारकनी वात करी छे. मतलब के पर्यायमां पर्यायना अशुद्ध षट्कारको अनुसार विकार थाय छे, तेमां परनी अपेक्षा नथी, ने द्रव्य-गुण पण कारण नथी. एक समयनी रागनी पर्यायमां ते पर्याय कर्ता, ते पर्याय कर्म, ते पर्याय करण, ते पर्याय संप्रदान, ते पर्याय अपादान, ने ते पर्याय अधिकरण-एम एक ज पर्यायमां तेना षट्कारकना परिणमनथी विकृत अवस्था उत्पन्न थाय छे. ‘कारको अनुसार जे क्रिया...’ एम कहीने ३९मी शक्तिमां पण आ वात सिद्ध करी छे. परंतु वस्तुनो-चैतन्यवस्तुनो गुण एवो छे के कारको अनुसार विकारनी जे क्रिया छे तेनाथी रहितपणे ते परिणमे. कारको अनुसार पर्यायमां जे मलिन परिणमन थयुं छे ते तो ज्ञाननुं ज्ञेय थई रहे छे. जेम परद्रव्य ज्ञेय छे तेम पर्यायनी विकृत दशा पण ज्ञानीना ज्ञाननुं ज्ञेय छे; अने तेनाथी रहित भवनमात्रमयी जे भावशक्ति तेनुं परिणमन तेने सिद्ध थाय छे.
अहीं ४०मी शक्तिमां ‘कारको अनुसार थवारूप’ कह्युं एमां त्रिकाळी निर्मळ कारको लेवाना छे. ३९मी शक्तिमां पर्यायना (अशुद्ध) षट्कारकोनी वात हती. अहीं द्रव्य-गुणना निर्मळ कारकोनी वात छे. ‘कारको अनुसार’-मतलब के त्रिकाळी निर्मळ कारको अनुसार थवापणारूप जे भाव ते-मयी क्रियाशक्ति छे. भाई, आत्मा स्वयं छ कारकरूप थईने निर्मळ निर्मळ भावपणे परिणमे एवी एनी क्रियाशक्ति छे. अहो! स्वयमेव छ कारकरूप थईने केवळज्ञानादिरूपे परिणमे एवो भगवान आत्मानो स्वभाव छे. अहा! आत्माने पोताना निर्मळ भावरूपे परिणमवा कोई पर कारकोनी गरज-अपेक्षा नथी, तेम ज आत्मा कारक थईने जडनी क्रिया करे के विकारने करे एवो पण एनो स्वभाव नथी. पोताना ज निर्मळ कारकोने अनुसरीने पोताना वीतरागभावरूपे परिणमवानी क्रिया करे एवो आत्मानो स्वभाव छे. आ क्रियाशक्ति छे.
भाई, धर्मनुं स्वरूप आवुं बहु झीणुं छे बापु! हवे आ वाणियाने आवुं समजवानी फुरसद न मळे, आखो दि’ रळवा-कमावामां, विषय भोगमां ने बैरां-छोकरां साचववामां चाल्यो जाय ए कयारे आ समजे? पण भाई, निवृत्ति लईने समजवानो आ मार्ग छे. अहा! दर्शनशुद्धि जेनुं मूळ छे एवो आ कोई अलौकिक मार्ग छे.
पहेलां (३९मी शक्तिमां) जे कारक अनुसार क्रिया कही ते एक समयनी पर्यायना (अशुद्ध) षट्कारकनी वात हती. अहीं जे कारक अनुसार क्रिया कही छे ते त्रिकाळी पवित्र कारकनी वात छे. आ निर्मळ कारकोनो आश्रय अभेद एक द्रव्य छे. एटले ‘कारको अनुसार’ कह्युं एमां एक अभेद द्रव्यनो ज आश्रय छे; एमां पर साथे के राग साथे कांई ज संबंध नथी. हवे आमां लोको राड नाखे छे के-आमां व्यवहारनो लोप थई गयो. अरे प्रभु! तुं सांभळ तो खरो, तारो व्यवहार व्यवहारमां रह्यो छे, पण एनाथी मोक्षमार्ग थशे एवी तारी मान्यतानो आमां जरूर भुक्को थई गयो छे; अने ते यथार्थ ज छे, केमके व्यवहारथी-रागथी रहितपणे निर्मळ निर्मळ परिणमे एवो ज भगवान आत्मानो स्वभाव छे. अभ्यास नहि एटले आवी वात कठण पडे, पण आ सत्य वात छे, भगवाननी वाणीमां आवेली वात छे. समजाणुं कांई...?
अहीं क्रियाशक्तिमां जे कारकोनी वात करी ते द्रव्यमां जे निर्मळ कारको त्रिकाळ शक्तिरूप छे तेनी वात छे. अहा! त्रिकाळी द्रव्यमां जे निर्मळ अभेद षट्कारको पडयां छे ए कारकोना अनुसार थवापणारूप, परिणमवापणारूप क्रियाशक्ति त्रिकाळ जीवद्रव्यमां पडी छे. आ सर्वज्ञ जिनेन्द्रदेवनुं फरमान छे. प्रभु! तारी पर्यायमां द्रव्य-गुणना आश्रय विना, पर्यायना षट्कारकथी जे विकृतभावरूप क्रिया थाय छे तेनाथी रहित थवुं-भववुं एवो तारो भाव गुण छे, ने निर्मळ निर्मळ रत्नत्रयरूपे थवारूप तारो क्रियागुण छे. मलिन परिणाम सहित थवानो कोई गुण तारामां छे ज नहि. तेथी ज्यां द्रव्य उपर द्रष्टि मूके के तरत ज मलिन परिणामथी रहित निर्मळ निर्मळ रत्नत्रयरूप परिणमन थाय छे. आवो मारग छे.
पण आ तो मोटा पंडित होय तेने समजाय!