१८२ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११
एम नथी भाई, आ समजवामां पंडिताईनी जरूर नथी. पंडित कोने कहेवा? परमार्थने जाणे-अनुभवे ते पंडित छे. बाकी तो मोक्षमार्ग प्रकाशकमां आवे छे के-
“हे पांडे! हे पांडे! हे पांडे! तुं कणने छोडी मात्र तुष ज खांडे छे, अर्थात् तुं अर्थ अने शब्दमां ज संतुष्ट छे पण परमार्थ जाणतो नथी माटे मूर्ख ज छे.”
आ समजवामां तो अंतरनी रुचिनी जरूर छे, बहारनी पंडिताईनी नहि. समयसार, गाथा १प६मां पण कह्युं छे के-
पण कर्मक्षयनुं विधान तो परमार्थ–आश्रित संतने.
जुओ, षट्कारकथी पर्यायमां जे विकृतिरूप व्यवहार तेमां विद्वत् जनो-पंडितो वर्तन करे छे, पण निश्चय निज परमार्थ वस्तुमां वर्तन करता नथी. भाई, तारी बहारनी पंडिताई शुं काम आवे? एय संसार ज छे. समजाय छे कांई...?
कोईए अहीं आत्मसिद्धि शास्त्रनी एक गाथा-
आ गाथाना स्पष्टीकरणनी मागणी करी छे.
वात एम छे के आमां श्वेतांबर शैलीनी जरा वात आवी गई छे. खरेखर केवळी भगवान छद्मस्थनो विनय करे एवो व्यवहार त्रणकाळमां संभवित नथी. केवळी भगवानने अपूर्णताय नथी, ने विकल्पेय नथी; पछी ते बीजानो विनय केवी रीते करे? श्वेतांबर शास्त्रोमां एवी वात भरपुर आवे छे, तेनी थोडी झलक आमां रही गई छे. बाकी त्रणलोकना नाथ केवळी परमात्माथी मोटा कोण छे के तेओ बीजानो विनय करे? विनयनो विकल्प केवळीने होतो नथी, केमके तेओ पूर्ण वीतराग थया छे. भाई, कसोटीए चढावीने मार्गनी सत्यतानो निर्णय करवो जोईए, मात्र ओघे-ओघे मानी लेवुं ए कोई चीज नथी.
त्यां बीजी पण गाथा आवी छेः-
साधे ते मुक्ति लहे, एमां भेद न कोय.
आ कथन पण सत्यथी फेरवाळुं छे. गमे ते जाति अने गमे ते वेशथी मुक्ति थाय एम आमां कह्युं लागे छे, पण वास्तवमां एम नथी. बहारनी जाति ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि ए ज होय, अने शरीरनुं नग्नपणुं ए ज बाह्यमां वेश होय, कोई बीजी रीते माने के संप्रदाय चलावे तो ते सत्य छे एम नथी. (आ प्रमाणे विपरीत अर्थनुं निराकरण कर्युं)
अरे! भरतक्षेत्रमां अत्यारे कोई केवळी ने विशेष ज्ञानी रह्या नहि, ने लोको मार्गने बीजी रीते मानी तत्त्वनो विरोध करे छे. पण ते महा अन्याय छे. तेनुं फळ बहु आकरुं छे भाई! तत्त्वनी विराधनाना फळमां ताराथी सहन नहि थाय एवुं अनंतु दुःख आवी पडशे. कोई जीव दुःखी थाय ते प्रशंसालायक नथी. पण शुं थाय? मिथ्या शल्यनुं फळ एवुं ज आकरुं छे. माटे चेती जा प्रभु! ने सत्नो जेम छे तेम स्वीकार कर.
अहा! आचार्यदेवे शक्तिनुं वर्णन करीने निर्मळ मोक्षमार्ग केम प्रगट थाय ते सिद्ध करी दीधुं छे. मलिन परिणति हो, छतां मलिनता रहित परिणमन-निर्मळ ज्ञानभावमय परिणमन-थाय ए ज ज्ञानीनी परिणति छे. दया, दान, व्रत, तप, भक्ति इत्यादिना परिणाम होय, पण ते ज्ञानीनुं मूळ स्वरूप नथी, केमके ए तो राग-विकल्प छे, पुण्यबंधनुं कारण छे. ज्ञानी तेने परज्ञेयपणे जाणे छे बस. आवो मारग छे. अरे! एणे सत्यार्थ मार्गने सांभळ्यो नथी, ने एनो कदी परिचय पण कीधो नथी! बहार ने बहार गोथां खाधा करे छे; पण पोतानी चीज बहारमां छे नहि तो कयांथी मळे?
अरे भाई! तारा हितने माटे तुं अंदर तारामां ज जो, बहारमां कारणोने मा शोध; केमके तारा हितनां कारको बहारमां नथी. पोताना ज निर्मळ छ कारकोने अनुसरीने पोते ज परमात्मदशारूपे परिणमी जाय एवो भगवान! तारो स्वभाव छे. तुं भगवानस्वरूप ज छो प्रभु! तारी प्रभुता माटे बाह्य सामग्री (निमित्तादि) ने शोधवानी व्यग्रता मा कर. बाह्य सामग्री विना ज पोते एकलो पोताना निर्मळ कारकोरूप परिणमीने केवळज्ञानरूपे थई जाय एवो स्वयंभू भगवान