तुं पोते ज छो. माटे दीन थईने बहारमां फांफां कां मारे? अंतर्द्रष्टिना बळे तारां अंतरनां चैतन्यनिधान खोली दे; तारी दीनता टळीने परमानंदनी प्राप्ति थशे.
अहा! कारको अनुसार जे भाव छे तद्अनुसार सम्यग्दर्शन आदि धर्म प्रगट थाय छे. तेना अनुसार चारित्र होय छे, पंचमहाव्रतना आश्रये चारित्र होय छे एम नथी. लोको कहे छे-आ तो निश्चय, निश्चयनी वात छे. हा, आ निश्चय छे, पण निश्चय एटले ज सत्य.
व्यवहारी लोको माने छे के-सामायिक करो, व्रत करो, सवार सांज प्रतिक्रमण करो एटले बस थई गयो धर्म. अरे भाई, ए बधी शी चीज छे तेनी तने खबर नथी. ए तो बधो विकल्प-राग छे बापु! तेनुं परिणमन षट्कारकथी धर्मीनी पर्यायमां होय छे, पण तेनाथी रहित परिणमवुं एवा स्वभावनो तेमने आश्रय छे. धर्मी तेनो (रागना परिणमननो) स्वामी नथी. शुं कीधुं? आ व्यवहाररत्नत्रयनो जे विकल्प उठे छे तेनाथी रहित धर्मीनुं निर्मळ निर्मळ परिणमन होय छे, अने धर्मी ते रागना स्वामीपणाथी रहित छे. अहाहा...! त्रिकाळी शुद्ध द्रव्य, शुद्ध गुण अने द्रव्यना आश्रये थयेलुं शुद्ध परिणमन ते पोतानुं स्व, अने धर्मी तेनो स्वामी छे, पण रागनो स्वामी धर्मी नथी; व्यवहाररत्नत्रयनो स्वामी धर्मी नथी. आ परम सत्य छे भाई! भगवान सर्वज्ञदेवना श्रीमुखेथी नीकळेली आ वाणी छे. अहाहा...! जेने द्रव्यनो आश्रय वर्ते छे तेने निर्मळ कारको अनुसार निर्मळ भावमयी क्रियाशक्तिनुं परिणमन थयुं छे, ते राग सहित परिणमन जे थाय तेनो स्वामी नथी. समजाणुं कांई...?
चार घातिकर्मोनो नाश थवाथी केवळज्ञान थाय छे एम तत्त्वार्थ सूत्रमां आवे छे ए तो निमित्तथी कथन छे. बाकी अहीं कहे छे-भाई, निर्मळ कारको अनुसार थवारूप तारामां निर्मळ भावमयी क्रियाशक्ति छे, जेथी तुं पोते ज स्व-आश्रये निर्मळ निर्मळ भावरूप परिणमतो थको केवळज्ञानरूपे परिणमी जाय छे. बाह्य कारकोनी तने शुं गरज छे? कर्मनो अभाव तो रजकणनी दशा छे, तेमां चैतन्यद्रव्यने शुं छे? अहा! कर्मना अभावथी नहि, व्यवहार रत्नत्रयथी नहि, ने केवळज्ञान थवा पहेलां मोक्षमार्गनी दशा छे तेनाथी पण नहि, पण त्रिकाळी शुद्ध कारको अनुसार स्व आश्रये केवळज्ञाननी पर्याय उत्पन्न थाय छे. आवी वात छे.
अनंतगुणभंडार प्रभु आत्मा छे. तेना प्रत्येक गुणमां क्रियाशक्तिनुं रूप छे. तेथी त्रिकाळी शुद्ध द्रव्यनो आश्रय करतां द्रव्य साथे दरेक गुणनी पर्याय स्वतः स्वयं निर्मळ परिणमी जाय छे. कर्मनो अभाव थवाथी ते पर्याय प्रगट थाय छे एम नहि, ने पूर्वनी मोक्षमार्गनी पर्यायनो अभाव थयो माटे केवळज्ञान प्रगट थयुं एम पण नहि. हवे आवी वात बिचारा लोकोने कयां सांभळवा मळे? एम ने एम तेओ जिंदगी व्यतीत करे छे. शुं थाय? मार्ग तो आवो स्पष्ट छे भाई! तेने समजीने तारुं कल्याण कर.
आ प्रमाणे अहीं क्रियाशक्तिनुं वर्णन पूरुं थयुं.
‘प्राप्त करातो एवो जे सिद्धरूप भाव ते-मयी कर्मशक्ति.’ जुओ, आ सत्यनो पोकार! अंदरथी सत् ऊभुं (प्रगट) थाय छे तेने, कहे छे, असत् विकारना शरणनी कोई जरूर नथी. शुं कीधुं? व्यवहार रत्नत्रयनी निर्मळ परिणतिनी प्राप्तिमां कोई जरूर-गरज नथी. केमके पोतामां आत्मद्रव्यमां ज कारको अनुसार थवारूप निर्मळ भावमयी क्रियाशक्ति होतां द्रव्यना आश्रये स्वयं ज निर्मळ दर्शन- ज्ञान-चारित्ररूप छे. तेनाथी अंदर भाव-चारित्र प्राप्त थाय छे एम कदी य नथी. आम अज्ञानीनी दरेक वातमां मोटो फेर छे.
अहीं कहे छे-‘प्राप्त करातो एवो सिद्धरूप भाव...’ -सिद्धरूप भाव एटले शुं? सिद्धरूप भाव एटले आत्माना कर्मरूप एवो प्राप्त-प्रगट निर्मळ भाव-पर्याय. अहाहा...! आत्मा पोते ते कर्मरूप थाय छे एवी तेनी कर्मशक्ति छे. अहीं सिद्ध पर्यायनी वात नथी, पण सिद्ध एटले निर्मळ पर्यायरूप जे भाव प्रगट थाय तेने अहीं सिद्धरूप भाव कहेल छे. स्वद्रव्यना आश्रये प्राप्त करातो जे भाव ते सिद्धरूप भाव छे. अहाहा...! सम्यग्दर्शननी पर्याय, सम्यग्ज्ञाननी पर्याय,