Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 4106 of 4199

 

४१-कर्मशक्तिः १८७

केवळज्ञान पर्याय प्रगट थई एम कारण-कार्य नथी. वर्तमान केवळज्ञान पर्यायनी प्राप्ति स्वतंत्र द्रव्यना आश्रये थाय छे. आवी सूक्ष्म वात वीतरागना मार्ग सिवाय बीजे कयांय नथी. अहो! आमां तो बधुं क्रमबद्ध ज छे एम समजाई जाय छे.

आत्मा त्रिकाळ ध्रुवस्वरूप छे. ते स्वरूपनी अस्तिनो स्वीकार निर्मळ पर्यायमां थाय छे. पर्यायमां ध्रुवनी कबूलात करी, अने पर्यायमां निर्मळता थई-ते निर्मळ क्रमवर्ती पर्याय अने अक्रमवर्ती गुणो-ए बेनो एकसाथे समुदाय ते आत्मा छे. अहीं राग ते गुणनुं कार्य-कर्म नथी, तेथी तेनी कोई गणतरी नथी. हवे केटलाक कहे छे-आ सोनगढवाळाए नवुं काढयुं. पण आ समयसार शास्त्र कयां सोनगढनुं छे? ए तो वीतरागनी वाणी आचार्य कुंदकुंददेवे समयसाररूपे वहावी छे.

अहाहा...! एकेक शक्ति पारिणामिकभावे छे, अने तेनुं कार्य छे ते उपशम, क्षयोपशम के क्षायिकभावे छे. उदयभाव ते शक्तिनुं कार्य नथी. द्रव्य शुद्ध, तेना गुण शुद्ध, अने तेनुं कार्य पण शुद्ध पवित्र ज छे. उदयभाव तेनुं कार्य छे ज नहि. ए तो पर्यायनी योग्यताथी उदयभाव छे, पण धर्मी तेने पोतानुं कर्म गणता नथी; धर्मीने ते परज्ञेयपणे छे.

अरे! अज्ञानी जीवो रातदि’ संसारनी मजूरी करीने मरी जाय छे. एमां य कोई पुण्योदये बे-पांच करोडनुं धन मळी जाय तो माने के मोटी बादशाही मळी. अरे भाई! बादशाही शुं छे तेनी तने खबर नथी. निराकुळतारूप साची बादशाही तो तारी अंदर पडी छे. तुं अंदर अनाकुळ ज्ञानानंदस्वरूप बादशाह छो. त्यां न जोतां बहारमां अहींथी सुख मळशे के त्यांथी सुख मळशे एम झावां नाखे छे पण ए तो तारुं भिखारापणुं छे. अरे! अनंतगुणचक्रनो स्वामी मोटो चक्रवर्ती बादशाह थईने तुं भिखारीनी जेम रखडे छे! ने पुण्यनी-विकारनी भीख मागे छे!! अरे भाई, बहारथी कयांयथी तने सुख नहि मळे. मोटो बादशाह तुं अंदर बिराजे छे त्यां अंतर्मुख थईने जो. तेमां बादशाही शक्तिओ पडी छे तेनुं निर्मळ परिणमन थतां तने बादशाही प्राप्त थशे. स्वभावमांथी प्राप्त थाय ते बादशाही, ते आनंद अने ते सुख. बाकी तो बधी आकुळतानी भठ्ठी छे. समजाणुं कांई...?

आखा समयसारनो सार आ छे. शुं? के द्रव्यकर्म, भावकर्म अने नोकर्मरहित शुद्ध चैतन्यधन आत्मा ते भगवान समयसार छे. आ समयसार केम प्रगट थाय? तो कहे छे-अंतर्द्रष्टि करवाथी शुद्ध कर्मनी प्राप्तिरूप कार्यसमयसार प्रगट थाय छे, अरेरे! अनादि काळथी तारुं कार्य तुं बगाडतो आव्यो छो. पर्यायमां शुभाशुभ राग थाय ते कार्य मारुं -एम मानतो थको बहिर्मुखपणे तुं तारुं जीवन बगाडतो आव्यो छो. पण भाई रे! विकार थाय ए कोई तारा द्रव्य-गुणनुं कार्य नथी, जेम पुद्गलमां आठ कर्मनी पर्याय थाय ते तारा द्रव्य-गुणनुं कार्य नथी तेम तारी पर्यायमां पुण्य-पापरूप विकार थाय ते तारा द्रव्य-गुणनुं कार्य नथी. पर्यायमां तेना षट्कारकना परिणमनथी अद्धरथी विकल्परूप मलिनता थाय छे, पण मलिन विभावरूप परिणमवानो तारामां कोई गुण नथी. विभावरूपे न परिणमवुं एवो गुण छे, पण विभावरूपे थवुं एवो आत्मामां कोई गुण नथी. ल्यो, आवुं तत्त्व शुं? तेना गुण शुं? अने तेनुं कर्म शुं? -अरे! अज्ञानी जीवोने कांई खबर नथी.

“सत् साहित्य” प्रचारमां एक मुमुक्षुए लाख रूपिया आप्या छे, एम बीजाए एंसी हजार आप्या छे. अमे तो कह्युं-आमां शुभभाव छे, धर्म नहि; पुण्यबंध थशे. वास्तवमां ए शुभभावरूपे न परिणमवुं एवो तेनो (- आत्मानो) गुण छे, ने ते विकाररूपे न परिणमवुं एवो तेनो गुण छे. हवे पोताना स्वघरनी-स्वभावनी खबर न मळे ने परघरना-परभावना आचरणमां कोई धर्म मानी ले, पण ए केम चाले? ए तो मिथ्या शल्य छे. व्यवहार समकित ते समकित, ने द्रव्य चारित्र ते चारित्र एम जे माने छे तेने धर्मना वास्तविक स्वरूपनी खबर नथी. तेनी द्रष्टि जूठी-विपरीत छे, तेना अंतरमां मिथ्यात्वनुं शल्य पडयुं छे. अरे भाई, ते तने भारे नुकशान करशे, अनंत जन्म-मरण करावशे.

अनंतगुणरत्नाकर प्रभु आत्मा छे. तेमां एक कर्म नामनो गुण छे. आ कर्म नामनो गुण छे. आ कर्म गुणना कारणे द्रव्यद्रष्टिवंतने पोतानुं सम्यग्दर्शनादिरूप निर्मळ कर्म प्राप्त थाय छे. आम धर्मीने पोतानुं कार्य समये समये सुधरे छे. पण ए तो समये समये तेनी उत्पत्तिनो काळ छे, ए एनी जन्मक्षण छे. गुणना कारणे ते पर्याय उत्पन्न थई एम कहेवुं ए तो उपचार छे. हवे आम छे त्यां व्यवहारना रागथी निश्चय (वीतराग परिणति) थाय ए वात कयां रही? भाई, जो तारी द्रष्टि न पलटी तो आम ने आम रखडवानो तारो रस्तो नहि मटे. अरेरे! मरी-मरीने नरक-निगोदमां जवुं पडशे. शुं थाय? वस्तुस्थिति एवी छे. एम शरीरमां अनंत आत्मा, अनंतनो एक श्वास, अनंतनुं आयुष्य भेगुं,